पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/२५१

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...गृहाम्ल .... घर का: नाश । ३. घर की सेंध । ४. गृह या संस्था का विफल गहवासी--संच पुं० [सं० गृहवासिन्] १.गृहस्य । २.सदा घर होना, गिर जाना या नष्ट होना [को०] । _में रहनेवाला। घर में घुसा रहनेवाला किो०] । , गहभद्रक-संशा पु० [सं०] सभाकक्ष । बैठक [को०] । गृहवासी२- वि० १. गुही । घरवाला। २.घर में घुसा रहनेवाला। नहर्ता-संवा पुं० [पुं० गृहमतुं] घर का स्वामी [को०] । __ घरघुसुवा [को०)। गृहभूमि-संशा सी० [सं०] वह भूमि जिसपर मकान बना हो या गृहविच्छेद-संवा पुं० [मं०] घर का वरवाद होना (को०] ! - वननेवाला हो (को०)। गृहवित्त- संध्या पुं० [सं०] घर का मालिक [को॰] । गृहभेद-संज्ञा पुं० सं०] १. घर में झगड़ा होना । २. घर में सेंध गृहवत-वि० [सं०] गृह या गृहस्थ आश्रम में स्थित (को०)।

लगना [को॰] ।

गृहशायी-संवा पुं० [सं० गृहशायिन् ] कबूतर [को०] । .. गृहभेदी-संचा पुं० सं० गृहमेदिन्] [वि० बी० गृहनेदिनी] १. घर में गृहशुक-संक्षा पुं० [सं०] १.पालतू शुक । २. घर का कवि [को०] । .. झगड़ा लगानेवाला । २. घर में सेंध लगानेवाला (को। गृहसंवेशक- संज्ञा पुं० [सं०] घर बनाने का धंधा करनेवाला . ग्रहमोज-संचा पुं० [सं०] गृहप्रवेश के अवसर पर होनेवाला या किया व्यक्ति [को०] । - जानेवाला भोज। गृहसचिव-संज्ञा पुं० [सं० गृह सचिव] १० 'स्वराष्ट्र सचिव' ।

गृहभोजी-वि० [सं० गृहनोजिन् उसी घर में रहने या खाने गृहसार- संज्ञा पुं० [सं०] संपत्ति । जायदाद [को॰] ।

... वाला को गृहस्तां संज्ञा पुं० [सं० गृहस्य] दे॰ 'गृहस्य' । गृहमंत्री-संशा पुं० [सं० गृहमन्त्रिन्] राज्य अथवा देश का वह मंत्री गृहस्थ' संज्ञा पुं० [सं०] १.ब्रह्मचर्य के उपरांत विवाह करके दुसरे ...जिसके ऊपर प्रांतरिक सुरक्षा तथा शासन का भार हो। (अं० आश्रम में रहनेवाला व्यक्ति । ज्यठाश्रमी। २. घरवारवाला। ... होम मिनिस्टर)। वाल बच्चोंवाला आदमी । ३.बाने पीने से खुश आदमी। वह मनुष्य जिसके यहाँ खेती आदि होती हो। किसान । गृहमरिण-संज्ञा पुं० सं०] दीपक । चिराग। गहस्थ-वि० [सं०] घर में रहनेवाला । गहवासी [को०] । गृहमाचिका-संवा की० [सं०] चमगादड़ [को०] । गृहस्थाश्रम-संज्ञा पुं० [सं०] चार प्राथमों में से दूसरा आश्रम - गृहमार्जनी-देश० बी० [सं०] घर की नौकरानी । गृहदासी [को०] । जिसमें ब्रह्मचर्य अर्थात् विद्याध्ययन आदि के उपरांत लोग - गृहमुखी-संज्ञा पुं० [सं० गृहमुख+ई (प्रत्य॰)] जो अपना घर विवाह करके प्रवेश करते थे और घर का कामकाज देखते .. छोड़कर बाहर (विदेश) न जाना चाहता हो। उ०-समुद्र- - तट के अधिवासी साधारणतः मछुए, साहसी नाविक तथा थे। जीवन की वह अवस्था जिसमें लोग स्त्री पुत्र आदि के .. कुशल व्यापारी और अंतर्वर्ती देशों जैसे चीन आदि के लोग साथ रहते और उनका पालन करते हैं। -. : गृहमुखी होते हैं-भारत नि०, पृ० १० । गृहस्थाश्रमी-वि० सं० गृहस्थाश्रम+ई (प्रत्य०)] गृहस्थाश्रम में ___रहनेवाला [को०)। ... गृहमृग-संज्ञा पुं० [सं०] मृग।।

गृहमेघ-संज्ञा पुं० सं०] गह की पंक्ति । मकानों का समह कोगा गृहास्थन-संश्चा स्त्री॰ [सं० गृहस्य+हिं० इन (प्रत्य॰) गहिणी।

घर की मालकिन । उ०-लेखक ने शुरू में उसे बिलकुल .. गृहमेध-सशा पुं० [सं०] १. गृहस्य । २. पंचयज्ञ [को०] । मामूली गृहस्थिन के रूप में उतारा है।-सुनीता, पृ० १३ । - गृहमेघ-वि० १. गृहस्याश्रमी । २. पंचयज्ञ करनेवाला [को॰] । र गृहस्थी-संज्ञा ची० [सं० गृहस्थ+ई (प्रत्य॰)] १. गृहस्थाधन । - गृहमेवी-वि० [सं० गृहमेधिन] १. गृहस्थाश्रमी। २. पंचयज्ञ करने गृहस्थ का कर्तव्य । २. घर वार ! गृह व्यवस्था । ३. कुटु'। · वाला [को। लड़के वाले । जैसे,—वे अपनी गृहस्थी लेने गए हैं। गृहमेविनो-संवा श्री० [सं०] १. गृहस्थ की पत्नी। २.सत्यगुण मुहा०-गृहस्थी सँभालना=घर का कामकाज देखना । कुटव . की दुद्धि को०] का पालन पोषण करना। .. गृहमोचिका-संवा बी० [सं०] चमगादड़ [को०] । ४.घर का सामान । माल असवाब । जैसे,—इतनी गहस्थी कौन .गृहयंत्र-संच पुं० [सं० गृहयन्त्र] वह डंडा जिसपर उत्सवादि के समय ढोकर ले जाय । ५. खेतीवारी । कामकाज । - ... झंडा फहराया जाता है [को॰] । गृहाक्ष-संज्ञा पुं० [सं०] झरोखा। गवाक्ष को०] । गृहयज्ञ-संवा पुं० [सं०] दे॰ 'गहमेघ' को०] गृहागत-वि० [सं०] घर माया हुआ (प्रतियि) (को०] । गृहयालु-वि० [सं०] पकड़ने या धरने का इच्छुक [को०] । गहाधिपति-संज्ञा पुं० सं०] १. मकान का मालिक । मकानदार। गृहयुद्ध-संश पुं० [सं०] वह युद्ध जो एक ही देश या राज्य के .२. राजभवन का प्रधान अधिकारी। निवासियों में आपस में हो। अंतःकलह । गृह का कलह ! विशेष-शुक्रनीति में कहा गया है कि वह राजकर्मचारी जिसका गृहरंध्र-संधः पुं० [सं० गहरन्ध्र पारिवारिक कलह या झगड़ा [को०]। काम राजभवन की देखभाल करना होता था, गहाधिपति गृहलक्ष्मी-संवा स्त्री० [सं०] सुशीला पत्नी । कहलाता था। गृहवाटिका, गहवाटी-संधा बी. [सं०] घर से सटा हुआ वाग या गृहापरण-संज्ञा पुं० [सं०] हाट । घाजार [फोग। वाटिका [को॰] । ..महाम्ल-संचा पं० [सं०] कांजी (को०] ।