पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/२५७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१३३४ गैरवाजिन - विशेष-इसके डने, छाती और पीठ सफेद, दुम काली तथा गैरखी-संक्षा नी० [हिं० गर रखी] हेतुली ।-(सुनारों की बोली)। 'चोंच और पैर लाल होते हैं। गैरजलरो-वि० [अ० गैर+जरूर+फा० ई (प्रत्य॰)] अनावश्यक । गवर पुं० [हिंगैवर ] दे० 'गैवर' । उ०—धीर सघन गैरजिम्मेदार-वि० [अ० गैर+फा० जिम्मेदार] अनुत्तरदायी। .. बन मांझह, गुरु उर गैबर लि ।-नंद ग्रं०, पृ० १५५। अपनी जिम्मेदारी न समझनेवाला। गैबाना@- वि० [अ० गब] अदृश्य । गुप्त । उ०-पाँच पसीस अहँ गैरजिम्मेदारी-मंगा सी० [अ० गर+फा० जिम्मेदारी ] अनुत्तर- .... संन वाती ते तो हहिं नैवाना । जग० वानी, पृ० ६७ । दायित्व । जिम्मेदारी न समझने का भाव । गैबी- वि० [अ० गैव+फा०६ (प्रत्य॰)] १. गुप्त । छिपा हुआ। २. गैरत--संज्ञा स्त्री० [अ० ग रत ' लज्जा । शर्म हया। उ०-इंद्री बस अजनवी । अज्ञात । अवोधगम्य । उ०—(क) गयी तो गलियाँ . गुन गैरत माई ।--- घट०, पृ० २८१ । फिर, अजनवी कोइ एक । अजगैबी कोसों लखे, जाके हृदय यौ औरतदार।। विवेक |---कबीर (शब्द॰) । (ख) गैबी जामें प्राय समाना गैरतदार-वि० [फा०] १. लज्जाशील । २. स्वाभिमानी। ।

नरियर में जस दूध झके । जश भूमि सरजू उत्तर दिसि ए गैरतमंद-वि० [फा० दे० ' रतदार'।।

तीनों जहँ पाइ नकै ।-देवस्वामी (शब्द०)। गैरमजरूपा--वि० [अ०] परती या बिना जोती वोई गई जमीन । __गैयर-संवा पु० [सं० गजबर[ हाथी । गज । उ०—बहु नागन गैरमनकला-वि० [अ० गरमनकूला] जिसे एक स्थान से उठाकर .. पर नौवत वाज। तिनके गुरु गैयर गन गाजें। . दूसरे स्थान पर न ले जा सकें। स्थिर । अचल । गया-संत्रा ली [सं० गो] गाय । गऊ। उ०-धनि वह बृदावन विशेप इस शब्द का प्रयोग जायदाद शब्द के साथ कानुनी ... की रेनु । नंदकुमार चराई गैयाँ मुखन बजाई वैनु ।—सूर० कार्रवाइयों में विशेषकर होता है। जायदाद गैरमनकूना ऐसी (शब्द०)। संपत्ति को कहते हैं जो या तो भूमि हो या भूमि में बिलकुल - गैर-वि० [अ० गर] १ अन्य । दूसरा 1 २. अजनवी । अपने कुटव गड़ी हुई हो, जैसे,—घर, खेत, पेड़ इत्यादि । . या समाज से बाहर का (व्यक्ति)। पराया । जैसे,—(क) गैरमर्द-संज्ञा पुं० [अ० गर+फा मद] १. अजनवी व्यक्ति । २.

चीनी लोग गैर आदमी को अपने देश में नहीं आने दे

पति मे farन तिन । ...थे । (ख) पाप कोई गैर तो हैं नहीं, फिर आपसे क्यों बात। " गैरमामूली-वि० [अ० गरमामूली] १.असाधारण । २. नित्यनियम छिपा। के विरुद्ध 'विशेष- इस शब्द का प्रयोग विरुद्ध अर्यवाची उपसर्ग के समान Farm uar के पहले यह लगाया जाता गैरमिसिल:-वि० [अ० गर-नफा मिताल] अयोग्य या अनुचित है उसका अर्थ उलटा हो जाता है, जैसे,-चौरमुमकिन, गैर . (स्थान में) । उ०--भूपण कुमिस गैरमिसिल खरे किए को मुनासिब, गैरहाजिर । -भूपण ग्रं॰, पृ० २१ । पर-संञ्चा ली [अ० गर] अत्याचार । अनुचित वर्ताव। अंधेर। गैरमकम्मल--वि० [अ० गैर-+ मुकम्मल] जो पूर्ण न हो । अधूरा।

उ०--(क) मेरे कहे मेर कर, सिवा जी सों वैर करि गैर . अपूर्ण।

करि नैर निज नाहक उतारे ते।-भूगरण (शब्द०)। (ख) गैरमनासिव-वि० [अ० ग रमुनासिब] अनुचित । प्रायोग्य । ...आबत हैं हम कछ दिन माहीं । चल गैर तिनकी तव गैरसमकिन-वि०freरममकिन मन नाहीं । --विधान (शब्द०)। गैरमुल्की-वि० [अ० गर+मुल्की+फा० ई (प्रत्य०)] दूसरे देश ..क्रि०प्र०-करना। .: का। विदेशी। गैर--संज्ञा पुं॰ [हिं० गैगर] दे० 'गयर'। गैरमुस्तकिल-वि० [अ० गरमुस्तकिल] जो हमेशा के लिये न हो। गैर-संथा सी० [हिं० गैल] दे० 'गैल' । उ०-पड़े गैर गैर माहि .. रोस रस अकसै ।-शिखर०, पृ० ३३१॥ ..अस्यायो । गैर-संज्ञा स्त्री० [हिं० घर] दे० 'धेर'। गैरमौरूसी-वि० [अ० गरमौल्सी] वह जमीन या जायदाद जो गर-वि० [सं०11रि० स्त्री० गरी] १.गिरि संबंधी। २. गिरि परं पैतृक न हो या जिसपर मौल्सी हक न लागू होता हो। : उत्पन्न [को०)। गैररस्मी-वि० [अ० गर+फा० रस्मी] जो रस्म रिवाज के अनुसार - गैरयावाद-वि०पिगैर-फा० श्राबाद] जो न बसा हुया हो। न हो। अनौपचारिक। उजाड़ । परती (भूमि)। गैरवसली-संशा श्री० [अ० गरबसली] कच्चे मकानों की छत छाने गैरइनसाफी संशा श्री० [म गर-इंसाफ-फा० १ (प्रत्य०) . की वह क्रिया जिसमें बांस की पतली कमाचियों को दंढता- अन्याय । वेइनसाफी । अन्याय ।। पूर्वक केवल वुन देते हैं और उन्हें रस्सियों से नहीं बाँधते। गरइलाका-संया पुं० [५० गर+इलाकह ] १. दूसरे का इलाका। गैरवसूल-वि० [अ० गरवसूल] जो वसूल न किया गया हो। अप्राप्त दूसरे का क्षेत्र । २. देश । मुल्क। . .. गरवाजिब वि० [म. गरवाजिब] अयोग्य । अनुचित । बेजा।