पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/२६

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क्षीरपुष्पी, . क्षुद्रजंतु क्षीरपुप्पी संज्ञा स्त्री० [सं०] शंखपुष्पी [को०] 1... :: .. क्षीरोदतनया-संवा स्रो० [सं०] लक्ष्मी जो समुद्र की कन्या और - क्षीरभृत-संगा पुं० [सं०] मनु के अनुसार वह ग्वाला या चरवाहा जो उससे उत्पन्न या निकली हुई मानी जाती है। .. अपने वेतन स्वरूप . केवल दूध ही ले । क्षीरोदधि-संशा पुं० [सं०] क्षीरसागर । क्षीरसमुद्र । क्षीरवल्ली-संशा स्त्री० [सं०] क्षीरविदारी [को०] । क्षीरोदन-संशा पुं० [सं०] दूध में पकाया चावल ।सीर । . क्षीरविदारी-संथा की० [सं०] विदारी कंद से मिलती जुलती एका क्षीव-वि० [सं०] मदोन्मत्त । मतवाला। उत्तेजित । मत्त [को०] । . .. प्रकार की जड़ी जिसमें मे दूध निकलता है। यह शूल और क्षण-संवा पुं० [सं०] ठेरी का पेड़ । रीठा (को०] | प्रमेह रोगों में उग्कारी मानी जाती है।. . क्षुणी-संज्ञा स्त्री॰ [सं०] धरती। भूमि [को०] । ' - पर्या०-इसगया। क्षीरवल्ली। : पय:कंवा । पयोलता। क्षुण्ण-वि० [सं०] १. अभ्यस्त । २.८कड़े टुकड़ें या चूर्ण किया हुमा । क्षीरवक्ष-संशा पुं० [सं०] १.उदुघर । गूलर । २.महा। ३. ३. जिसका कोई अंग टूट या वाट गया हो। खंडित । ४. अश्वत्य। ४. खिरनी। .. अनुपत । ५. परामित (को०)। . . क्षीरव्रत-संशा पुं० [सं०] केवल दूध पीकर रहने का व्रत ..... क्षणक-संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का ढोल जो अंत्येष्टि के समय . क्षीरशर- संज्ञा पुं० [सं०] मलाई । साढ़ी [को०] । बजाया जाता है [को०] 1 क्षीरशाक-संवा ० [सं०] कच्चा फटा हुया दूध । वंद्यक में इसे बहुत " क्षुत-संज्ञा स्त्री० [सं०] १. छींक । २. मुख । क्षुधा। . : वलकारक माना गया है। . . . यौ०-क्षरक्षाम: भूख कृश' क्षुप्तिपासा= भूख प्यास । १०- क्षीरपष्टिक-संथा पुं० [सं०] दूध में पकाया हुया साठी चावल का भाव मन की वेगयुक्त प्रवस्या विशेष है, वह सुपिपासा, काम .. भात, जो ग्रहयज्ञ में बुध ग्रह को अर्पित किया जाता है। वेग यादि शरीर वेगों से भिन्न है।-रत०, पृ० १६४ . .. क्षीरसंतानिका-संमा श्री० [सं० क्षीरसन्तानिका] एक प्रकार का संज्ञा पं० [सं०] ठीक । ....... विगड़ा हुपा दूध। . .. , .... क्षत -संशा कौ० [सं० क्षुद, क्षुत् ] भूख 1 30--छूटे सर्व सयनि क्षीरस-संज्ञा पुं० [सं०] दूध ग दही पर की मलाई । के सुख क्षुत पिपासा ! विद्वद्विनोद गुणगीत विधान वासा :- '. क्षीरसागर--संज्ञा पुं० [सं०] पुराणानुमार सात समुद्रों में से एक, जो केशव (शब्द) . .. दृध से भरा हुण माना जाता है। नारायण इसी समुद्र में क्षुतक-संज्ञा पुं० [सं०] काली सरसों या राई [को०] 1. पगय्या पर सोते हैं।..::::

क्षतपियास--संशश मौ० [क्षत +पिपासा भूख प्यास । उ०- क्षीरसार-संज्ञा पुं० [सं०] नवनीत-1 मस्खन [को०] 1. ... . हरि यरु मृग जहँ इक सँग चरं । क्षुतपियास नैक न संचर।-- क्षीरस्फटिक-संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का बढ़िया स्फटिका

"नंद००,०२६७ । .

क्षीरहिंडोर-संश पुं० [सं०क्षीरहिण्डीर] - दूध का फेन - [को०] । क्षति-संमा मी० [सं०] छींकना । छींक [को०] । क्षीरा-संज्ञा सी० [सं०] काकोली नाम की जड़ी। ":: क्षीराद-- संज्ञा पुं० [सं०] दुध मुहाँ बच्चा [को०] 1 क्षुद-संज्ञा पुं० [सं०] पिया हुप्रो गोधूमचूर्ण । चूर्ण । पाटा [को०

. ..:

क्षीराधि-संज्ञा पुं० [सं०] क्षीरसागर । दूध का समुद्र । क्षुद्र'-वि० [सं०] १. कृपण । कंजूस 1 २.अधम । नीच । ३. अल्प।

क्षीरिक-संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का सर्प ।", . : ..

... . छोटा या थोड़ा ४, क्रूर । खोटा ५. दरिद्रा निधन। या क्षुद्र-संज्ञा पुं० [सं०] १. चावल का करण । १. मधमक्खी रेरिका-संशा श्री०सं०] १.पिंड खज़र । २. बंशलोचन। ३. '.", से बना खाद्य पदार्थ (को०)। ४:खिरनी का पेड़ (को०)। बर [को०] 1 क्षीरिणी-संघा की मैं०] १.क्षीर : काकोली। २.खिरनी । ३. क्षद्रक'-संज्ञा पुं० [सं०] १.एक प्राचीन देश का नाम जो वर्तमान दुधी नाम की लता। ४. वराहांता . ... पंजाब के अंतर्गत है। २. क्षुद्र व्यक्ति । ३. नोना। एक - . क्षीरी--वि० [सं०] दूध देनेवासा । दूधयुक्त जिसने दूध परिमारण । ४. एक प्रकार का वाण (को०)। क्षद्रक-वि० इंद्र। निम्न ! क्षीरी-संत्रा मी० [सं०] खीर। .. . क्षुद्रकुलिश-संज्ञा पुं० [सं०] वक्रांतमणि किना । '. क्षीरोद-संश[सं०] भीरसमुद्र । : . .. क्षद्रघंटिका--संज्ञा सी० [स० क्षुद्रघण्टिका] १ एक प्रकार का ... यो०-क्षीरोदतनय, क्षीरोवंदन - चंद्रमा। लीरोदतनया, प्राचीन प्राभूषण जो कमर में पहना जाता था। इसमें घुघल

क्षीरोक्सुता लक्ष्मी। यो घंटियां लगी रहती थीं, जो चलने में बजती थीं। घुघरूवार क्षीरोदक-संशा पुं० [सं०] प्राचीन काल का एक प्रकार का ३शमी " कर धनी । २. घुधरू। करड़ा 1 क्षद्रचंच-संश पुं० [सं० क्षद्रचञ्च] एक प्रकार का झाड़ किो०] कीरोदननय-संश.पुं० [सं०] चंद्रमा जो समुद्र का पुत्र और उससे - क्षुद्रचंदन-संशा पुं० [सं० क्षुद्रचन्दन] लाल चंदन ! ... उत्पन्न माना जाता है। . . . . नद्रजंतुसंधा पु० [सं० क्षुद्रजन्तु] बहुत छोटा और विना हद्दी का उनुगकीड़ा मकाड़ा! . .