पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/२६३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

- गोचंदन १३४० गोजीत विशेष प्राचीन काल में किसी अतिथि के आने पर गोहत्या गोछ--संज्ञा पुं० [हिं० गाँछ] दे० 'गो'। ऊ-मौछ गोछ शिर _ करने की प्रथा थी, इसी से 'अतिथि' को 'गोन' कहने लगे। मुडि विरूपी कीन्हेठ ।-अकवरी, पृ० ३४४ । . ३.गाय के लिये हानिकर या विनाशक (को०)। गोज-संशा पुं० [फा० गोज़ अपानवायु । पाद । गोचंदन-संका पुं० [सं० गोचन्दन ] मुश्रुत के अनुसार एक प्रकार क्रि० प्र०-करना। . का चंदन। गोज-- वि० [सं०] १. धरती से उत्पन्न (चावल आदि) । २. दूध से - गौचंदना-संवा श्री० [सं गोचन्दना ] एक प्रकार की जहरीली बनाया गया (पदार्थ) कि। . जोंक। गोज--संज्ञा पुं० १. दूध से बना हुआ एक पदार्थ । २. एक प्रकार के ' विशेप-इसको दुम कुछ मोटी और प्रायः दो भागों में बेटी सी क्षत्रिय जो अभिषेक के अनधिकारी होते हैं [को०] । मालम होती है। सुश्रुत के अनुसार इसके काटने से कटा हुमा गोजई-संज्ञा स्त्री० [हिं० गोहू+जव] गोह और जो मिला हुग्रा ....... स्थान सूज आता है, शरीर सुन्न हो जाता है और मनुष्य को अन्न । जो और गेहूं की मिलावर । .' के और मच्छी होती है। गोजर'--संज्ञा पुं० [सं०] बूढ़ा बैल । गोचना –क्रि० स० [पू० हिं० अगोछना ] रोकना । कना। गोजर--संवा पुं० [सं० खजू या हिं. गुजगुजा] कनखजूरा नाम का

. किसी वस्तु की गति रोकना ।

कीड़ा । शतपदी । एक विला कीड़ा जिसके बहुत से पांव - गोचना--संज्ञा पुं० [हिं० गों-1 चना] चना मिला हुमा गेहूं। होते हैं। . गोचना : क्रि० स० [देश॰] किसी चीज को उछालकर फेंकना। गोजरा-संथा पुं० [हिं० गोह+जव] जो मिला हुघा गेहू। गोचनी-संशा स्त्री० [हिं०] दे० 'गोचना'। गोजल-संश पुं० [सं०] गोमूत्र [को॰] । - गोचर-वि० [सं०] १. जिसका ज्ञान इंद्रियों द्वारा हो सके । २. गोजा--संचा पुं० [सं० गवाजन ] १. छोटे पौधों का नया कल्ला गायों द्वारा चरा हुना (को०)। ३.रहनेवाला । विचरनेवाला जो सीधा निकलता है। २. सेहड़ को कल्ला जिसे भीतर पोला . (को०)। ४. पृथ्वी पर रहने या चलनेवाला (को०) 1 ५. गम्य । करके गलका आदि होने पर उंगली में पौषधि के रूप में पहन . बोध्य (को०)। लेते हैं। गोचर-संवा पुं० [सं०] १.वह विषय जिसका ज्ञान इंद्रिया द्वारा गोजा-संघा पुं० [देश॰] [स्त्री० गोजी] वह लकड़ी जो चरवाहे हो सके । वह वात जो इंद्रियों की सहायता से जानी जा सके। अपने साथ पशुओं को हांकने के लिये रखते हैं। . जैसे,-रूप, रस, गंध, ग्रादि । २. गोनों के चरने का स्थान। गोजागरिक--संवा पुं० [सं० गोसजागरिकम १. पानंद । प्रसन्नता। चरागाह । चरी। ३. देश । प्रांत । ४. ज्योतिप में किसी पाचक । रसोइया [को०] । मनुष्य के प्रसिद्ध नाम की राशि के अनुसार गरिणत करके गोजाति--संज्ञा स्त्री० [सं०] गौसमष्टि । गायों की जाति [को० निकाले हए ग्रह जो जन्मराशि के ग्रहों से कुछ भिन्न हति और गोजाह--संशा पुं० [हिं० गोजा दे० 'गोजा'-१. 1 उ०-जंगल गया स्थल माने जाते हैं । ५. वासस्थान । निवासभूमि (को०] । ६. और दातोन के लिये नीम का एक गोजाह लेकर लौटा।- ज्ञानेंद्रियों के संचार का क्षेत्र या विषय जैसे श्रवणगोचर, काले०, पृ० १०। ... नयनगोचर । ७. क्षितिज (को०)। गोजाही'-संश सी० [हिं० गोजाह] नया कल्ला या कनखा। गोचरभमि संज्ञा स्त्री० [सं० गोचर+भूमि ] वह भूमि जो गायो गोजाही-संशसी० [हिं० गोजा] १. गोजी। लाठी। २. लाठी के चरने के लिये होती है। चरागाह। का युद्ध । लाठियों की मारपीट । . गोचरी-संवा सी० [हिं० गो+चरा ] १. भिक्षावृत्ति। २.हठयान गोजिया-संश स्त्री० [सं० गोजिह्वा] गोभी या बननोभी नाम की , की पांच मुद्रानों में से एक । पास । वि० दे० 'गोभी' । - गोचर्म-संज्ञा पुं० [सं० गोचर्मन् ] १. गौ का चमड़ा जिसपर कुछ गोजिहा-संशा श्री [सं०] गोभी या गरमगोभी नाम की घास जो नया विशेष कर्मयादि करने के समय वैठते हैं। २. जमीन, खेत ___ौषधि के काम माती है। दे० 'गोभी' । आदि की एक प्राचीन काल की नाप, जो २१०० हाथ लंबी विशेप-कुछ लोग भूल से गावजवां को भी गोजिह्वा कहते हैं। और इतनी ही चौड़ी होती है। इसे चरस या चरसा भी गोजी-संबो बी० [सं० पवाजन] १. गौ हांकने की लकड़ी । २. कहते हैं। गोचर्या-संश स्त्री० [सं०] गायों की तरह आहार के लिये घूमना .. बड़ी लाठी। लछ। . को। मुहा०--गोजी चलना = लाटियों से मारपीट होना। गोचारक-संधा पुं० [सं०] गाय चरानेवाला । ग्वाला (को०)। ३. एक प्रकार का खेल जिसमें पटे, बनेठी आदि की तरह गोचारण-संशा पुं० [सं०] गाय चराना फो। लकड़ी भांजते हैं। गोचारी-संवा पुं० [सं० गचारिन्] ग्वाला। गोचारक (को०)। कि.प्र.-खेलना। गाची-संवा स्त्री० [सं०] १. एक प्रकार की मछली। २.हिमालय की. : गोजोत-वि० [सं० गो+जित जिसने इंद्रियों को जो - स्त्री का नाम ।

..:. जितेंदिप ।