पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/२६५

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लश.)। करता था। गोड़... १३४२ गोड़ो -. गोड़ा-था. पुं० [सं० गम, गो] १. पैर । पावें । उ०—(क) गोड़ गोड़वाना-क्रि० अ० [हिं० गोड़ना का प्रे म ]. गोड़ने का नमूड़ न प्राण अधारा । तामे भरमि रहा संसारा।-कबीर . काम कराना। (शब्द॰) । (ख) मकर महीधय सो भावि के मतंगज को बस्यो गोड़वारी-संवा बी० [हिं० गोड़+वारी(प्रत्य॰)] पायताना । पैताना। ... गांसि गाड़ो गौड़े गयरं त्रिकारचो है।-रघुराज (शब्द०) गोड़सँकरा-संज्ञा पुं० [हिं० गोड़साकर] पैरों में पहनने का मुहा०-गोड़ भरना=(१) पैर में महावर लगाना। (२) स्त्रियों का एक गहना। - व्याह की एक रसम जिसमें वर की माता या चाची उसे गाड़सिहा--वि० [हिं० गोड़+सिहाना] ईप्यालु | डाह करनेवाला। गोद में लेकर मंडप में बैठती है और नाइन उसके पैर में कुइनेवाला जलनेवाला। ... महावर लगाती है। गोड़हरा संज्ञा पुं० [हिं० गोड़ +हरा (प्रत्य॰)] पैर में पहनने का २ भूजों की एक जाति । ३. जहाज के संगर' की फाल। कोई जवर, विशेषतः कढ़ा। 'गोडांगी-संज्ञा पुं० [हिं० गोड़+गिया] पायजामा। गोड़ा-संघा पुं० [हिं० गौढ़ ] दे० 'गौड़ । उ०-खइराड्या गोडांगी - संम्मा स्रो० [हिं० गोड़+सं० अङ्ग] जूता। आया खरसारण गौड चढयां गजकेसरी कछवाह कह" नीरवाण। गाड़ा-संघा पुं० [ हि मोड़ पर और जांच के बीच का जोड। -- वी० रासो, पृ०१७ । ... । .. घुटना 1. गोड़इत-संज्ञा पुं० [हिं० गोहन ऐत (प्रत्य॰)] १. गाँव में पहरा भी गाड़ा गोड़ा-संञ्चा पं० [हिं० गोड़ = पैर] १. पलंग आदि का पाया। - देनेवाला चौकीदार । २. वह हरकारा या कर्मचारी जों पुराने २. घोड़िया । उ-चाँद सूर्य दोउ गौड़ा कीन्हो माझ दीप ... जमाने में एक गांव की चिट्ठियाँ दुमरे गांव में पहुचाया ' । फिय ताना। कबीर (शब्द०)। ३. वह रस्सी जो खेतों में । पानी चलाने की दौरी से बंधी रहती है और जिसे पकड़कर गोड़ई-संवा स्त्री॰ [हि गोड़ ई (प्रत्य॰)] करघे की वे लकड़ियाँ . पानी उलीचते हैं। जो पाई करने में पाई के दोनों ओर खड़ी की जाती हैं। गोडा-संज्ञा पुं० [हिं० गोड़ना] थाला । पालबाल । -(जोलाहै)। क्रि० प्र०-बनाना।-मारना।—लगाना । गाड़गाव-संज्ञा पुं० [हिं० गोड़-+-गाव] वह छोटी रस्सी जिसे गाड़ाई “ सधा पु० [हि गाड़ना) १. गोड़ने की क्रिया। २. गोडने का भाव । ३. गोड़ने की मजदूरी। - गिरावं की तरह बनाकर और पिछाडीवाली रस्सी के सिरों . पर बांधकर घोड़े के पिछले पैर में फंसा देते हैं। गोड़ाना-क्रि० स० [हिं० गोड़ना का प्र. रूप] गोड़ने का काम ...गाडवरावन -संज्ञा पुं० [हिं० गोड़+घरावना] १. पैर पूजाना। दूसरे से कराना। - ३. अपनी महत्ता बढ़ाना। उ०—सिद्ध सिद्धई कर पता गाड़ापाही संज्ञा खी० [हि. गोड़ (-पांव+पाईं (= ताने के मत कारन जाई। गोधरावन हेतु महत उपदेस चलाई।- फैलाने का डांचा)] १. किसी मंडल में घूमने की क्रिया । - पलटू, पृ०७५ . . . पाईं। मंडल देना। २. किसी स्थान पर वार बार पाने की गाड़न-संबा पुं० [देश॰] वह किया जिसके अनुसार ऐसी मिट्टी से किया। तानापाई। भी नमक बना लिया जाता है जो नोनी न हो। गोड़ारी --संञ्चा झी [हिं० गोड़ाई! हरी घास जो अभी खोदकर गोड़ना'-क्रि० स० [हिं० कोड़ना मिट्टी की किसी भूमि को कुछ लाई गई हो। गोड़ारी - संथा त्री० [हिं० गोड़(=पर)+पारी (प्रत्य॰)] १.पलंग गहराई तक खोदकर उलट पुलट देना जिसमें वह पोली और - भुरभुरी हो जाय । कौड़ना । जैसे,—खेत गोड़ना, अबाड़ा आदि का वह भाग जिधर पर रहता है । पैताना । २. जूता। __.. नोड़ना।, .. गोडालो संशा स्त्री० [हिं० गाँडर] गांडर दूव । , विशेप-जब पेड़ गौड़ना कहेंगे तब उससे तात्पर्य होगा पेड़ की गोडिया'--संघा नी० [हिं० गोड़ (=पर) का अल्पा०] छोटा पैर । जड़ की मिट्टी को जल देने के लिये खोदकर पीली और उ-छोटी छोटी गोड़ियाँ अंगुरियाँ छवीली छोटी नख जोती ... भुरभुरी करना । जैसे,—जाम 'जाको कामतर देत फल चारि, मोती मानो कमल दलन पर। तुलसी (शब्द०)। .: ताहि तुलसी विहार के बवूर रेंड गोड़िये ।—तुलसी (शब्द०)। गोडिया--संघा पुं० [हिं० गोटी-युक्ति ] युक्ति लगानेवाला। .. गोड़ना-वि० [वि० सी० गोड़नी] १. चौपट करनेवाला । नष्ट । करनेवाला । २. गोड़नेवाला। गोड़िया - संज्ञा पुं० [देश॰] केवट । मल्लाह । उ०-गोड़िया - गोड़ली-संवा सी०, पुं० [सं० करणाँटी] वह पुरुप या स्त्री जो संगीत, पसारा जाल स्टै एक बाझो हो।-धरम०, पृ. ३६ । - विशेषतः नृत्य, में बहुत प्रवीण हो। गोड़ी-संध्य सी० [हिं० गोटी ] लाम। फायदा। लाभ का गोड़वांस-संघा हि गौड़-पर+ रस्सी] वह रस्सा जो पशुपों आयोजन । प्राप्ति का डौल । - ... के पैर में फंसाकर खटे से बाँध दिया जाता है। क्रि० प्र०-करना।