पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/२७२

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गोपुत्र १३४६ - . गोबरी गोपुत्र-संज्ञा पुं० [सं०] सूर्य के पुत्र, कर्ण । क्रि० प्र०--जोड़ना ।. .. .. .: गोपुर-संक्षा पुं० [मं०] १. नगर का द्वार । शहर का फाटक । गोफा--संज्ञा स्त्री० [हिं० गुफा] दे० 'गुफा' । उ०ऐसे कहत गए अपने पुर सहिं विलक्षण देख्यो। गोबा- संना प्रौ० [हिं० गोभ धंसान । चुभान । छेदन | वेधन । । मणिमय महल फटिक गोपुर लखि कनक भूमि अवरेख्यो।-- गोवछ---संघा पुं० [सं० गोवत्स] गाय का बच्चा । वछड़ा। ... मूर (शब्द॰) । २. किले का फाटक । ३. फाटक । दरवाजा। यो०-गोवछपद-बछड़े के पैर रखने 'से. बना हुमा गढ़ा। . ४. स्वर्ग। गोलोक । ५. सुश्रुत के अनुसार वैद्यक शास्त्र उ०-तिन कौं भवसागर भयो ऐतौं । गोवळपद को पानी के प्रणेता एक प्राचीन ऋषि । जैसी । --नंद ग्रं०, पृ० २२६ । .... . गोपुरीष-संज्ञा पुं० [सं०] गोभय । गोबर [को० । गोवना-क्रि० प्र० [हिं० गोव] चुसाना । छुभाना। छेदना। गोपेंद्र-संज्ञा पुं० [सं० गोपेन्द्र ] १. श्रीकृष्ण । २. गोपों में गड़ाना । खोंसना। श्रेष्ठ, नंद। गोबर - संघा पुं० [सं० गोमल) गाय का विष्ठा। गौ का मल। गोप्ता-वि० [सं० गौरत] रक्षा करनेवाला । रक्षक । मुहा०--गोवर' करना=(१) गौ वैल आदि का विष्ठा त्यांग ... गोप्ता-संज्ञा पुं० विष्णु। करना । (२) गौ बैल आदि के नीचे का गोबर हटाना। गोप्ता३.--संशा स्त्री० गंगा । (6) गोवर मादि से कंडे पाथना या इसी प्रकार का और कोई गोप्य'-वि० [सं०] १. रक्षणीय । २. गोपनीथ [को०)। गंदा काम करना । गोवर खाना-प्रायश्चित्त करना । गोबर गोप्य-संज्ञा पुं० सं०] १. नौकर । सेवक । २. दासीपुत्र [को०] । की चोथ होना=(१) भद्दा और बेडौल होना । (२) जड़ गोप्यक-संज्ञा पुं० [सं० दास । नौकर को। गोप्याधि-संवा श्री० [सं०] वह धन जो घर में छिपाकर रखने के और मूर्ख होना। गोवर पाथना--(१) हाथ से गोवर के लिये गिरवी रखा जाय। कंडे बनाना अथवा इसी प्रकार का और कोई गंदा काम गोप्रचार-संज्ञा पुं० सं०] चरागाह [को॰] । - करना । (२) काम को बिगाड़ना । गोवर बीजना ईधन . के लिये सूखा हुआ गोबर इकट्ठा करना। .. गोप्रवेश -संज्ञा पुं० [सं० गौत्रों के चरकर लौट पाने का समय। .. गोधूली। संध्या। गोवरकढ़ा-वि० [ गोवर+कढ़ा] [वि० सी० गोबरकदिन ].१. . गोफ' - संज्ञा पुं० [सं०] १. दास । सेवक । २. दासीपुत्र । ३. गोपियों चौपायों का गोबर इकट्ठा करके उसे नियत स्थान पर पहुचाने- का समूह । ४. रेहन या गिरवी का वह प्रकार जिसमें रेहन वाला सेवक । २. गोवर साफ करके उपले यापनेवाला। रखी हुई चीज के आयव्यय पर उसके स्वामी का ही गोबरकढ़ाई, गोवरकढ़ी--संक्षा बी० [हिं० गोबर काड़ाई] १. गोवर अधिकार रहे और जिसके पास चीज रेहन रखी जाय वह काढ़ने या साफ करने का काम । २. गोबर , काढ़ने की। केवल सूद लेने का अधिकारी हो। दृष्टबंधक । मजवूरी। गोफर-वि० १. गुप्त रखने योग्य ! छिपाने लायक । २. रक्षा गोबरगणेश-वि० [हिं० गोबर+गणेश] १. जो देखने में भला न करने के योग्य । ३. छिपाया हुग्रा । गुप्त । ___ मालूम हो । भद्दा । बदसूरत । २. मूर्ख । बैवकूफ । जो कुछ न : गोफण--संज्ञा पुं० हिं० गोफन] दे० 'गोफन'। कर सके। . गोफणा-संशा सी० [सं०] सुश्रुत के अनुसार फोड़े और जखम आदि गोबरगनेश-वि० [हिं० गोवर+संगणेश] दे० 'गोवरगणेश' । . ___ बाँधने का एक प्रकार का वंधन जिसका व्यवहार ठोड़ी, नाक, गोबरधन -संज्ञा पुं० [सं० गोवर्धन] दे॰ 'गोवर्द्धन' । उ०बहुज्यो । . ओंठ और कंधे आदि को बाँधने के लिये होता है। ___ फिरि गोवरधन धरौ ।-नंद० प्र०, पृ०..१६८ ।... गोफन-संक्षा पुं० [सं० गोफण] खेत के आसपास पक्षियों को उड़ाने . या---गायरधनधारा-श्रीकृष्ण जा! यौ.--गोबरधनधारी श्रीकृष्ण जी। .., या मारने के लिये रस्सी के एक सिरे पर वुना हमाछींके गोबरहारा-पंक्षा पुं० [हिं० गोवर+हारा (प्रत्य॰)] गोबर उठाने या के आकार का एक जाल । ढेलवाँस । फन्नी। पाथनेवाला नौकर । विशेष—इसमें खेले, पत्थर, कंकड़ आदि भरकर रस्सी की सहा- गावराना -० अ० [ह० गावर+ यता से सिर के ऊपर चारों ओर घुमाते हैं और जिसमें से बड़े गोमय से लीपना । २. कोई काम विगाड़ना या नष्ट करना । वेग से निकले हुए ढेले, कंकड़ आदि की बहुत तेज चोट लगती गोबरिया--संज्ञा पुं० [हिं० गोवर] वछनाग की जाति का एक पाधा । है । पहले कभी कभी छोटी मोटी लड़ाइयों में भी पात्रों पर विशेष--यह हिमालय पर गढ़वाल से लेकर नेपाल तक हाता मिट्टी यादि के गोले चलाने के लिये इसका व्यवहार होता था। है। इसकी जड़ विष है। गोफना-संञ्चा पुं० [सं० गोफरण] १. 'गोफन' । गोबरी'---संक्षा खी० [हिं० गोवर-+ई (प्रत्य०)] १. कुंडा । जपला । गोफा'- संघा पुं० [सं० गुम्फ] १. नया निकला हुआ मुहबंधा पत्ता। गोहरा । गोहरी । २. गोवर का लेपन । गोबर की लिपा जैसे,- केले, अरुई, सूरन आदि का गोफा । १२. एक हाथ क्रि० प्र०-करना ।--फेरना। . . " की उगलियों को दूसरे हाथ की उंगलियों के अंतर में ले महा०-गोवरी फेरना---पन्न की राशि के चारों ओर गोवरका जाकर गठना। .... चिह्न डालना। . . . "