पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/२७३

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१३५० गोवरी- सी दिन०) जहान के द का छेद।-(लग०)। . गांनी ही कहते हैं। इनका उठन, जो जमीन में गड़ा

महा... गोबरी निकालना जहाज के पद में छेद करना। . होता है। साधारण गन के बराबर नोटा होता पर एक

गोवरला-संश पुं० [हिं० गोवर+ऐला या प्रौला (प्रत्य॰)] एक बालिस्त या इससे कुछ अधिक लंबा होता है। इनकार ‘प्रकार का छोटा कीड़ा। चारी और चौड़े नोट और बड़े पत्ते होते हैं जिनके बीच में .: विशेष यह गोबर या इसी प्रकार की किसी दूसरी गंदी चीज में बहुत छोटे छोटे मुवघे फूलों का नुमा हुमा सनद रहा है। उत्पन्न होता और रहता है ! . विले हुए फूलोंवाली नोभी खराब सनकी जाती है। वह गोवरोरा-संशा पुं० [हिं० गोवर+ौरा (प्रत्य०)। दे० 'गोबरैला'। कार्तिक के अंत तक तैयार हो जाती है और जाले भर रहती . गोवरीला-संवा ० [हि गबर प्रौला (प्रत्य० ] ३० 'गोवर'। है। इसके फूल को तरकारी बनती है और मुलायम पनों का "गोविया सभा पुं० [देश॰] एक प्रकार का कोटा दांत ।। साग बनाया जाता है । यह मुवाकर भी रखी जाती है और विशेष--यह प्राताम की पहाड़ियों में अधिकता न होता है। यह दूसरी ऋतुमों में काम आती है। देखने में सुंदर होता है और इसकी ाया सबन होती है। . ३. पौधों का नोन नामक एक रोग ! .: "इनकी पत्तियां पशुमों के बारे के काम ग्राती हैं और लकड़ा गोभूक-मंचा पुं० [म.] राजा [को०] । में जंगली लोग तीर, कमान और टोकर बनाते हैं। प्रताल गोभज--- पु० म० गोनुज] राजा। के समय गरीब लोग इसके बीजों का भात भी बनाकर गोभूत संश० [सं०] पर्वत । पहाड़। . .. खाते हैं। ... गोमंडल-मा पु० [म गामडल] १. पृथ्वी मंडत । २. गावों का गोधी-संशो० [हिं० गोत्री दे० 'गोभी'। समूह कि। गोभ संश पुं० [सं० गुम्फ या हिनाफा] पौधों का एक रोग। गोमंडोर--संज्ञा पुं० [सं० गोमडीर] एक जलपक्षो को०] । विशेष-इसमें पौधों की जड़ों में नर कल्ले निकल पाते हैं गोमंत मंपा पुं० [मं० गोमन्त) १. सह्याद्रि के अंतर्गत एक पहाड़ो ... जिससे पौधे दुर्वल हो जाते हैं। कोई कोई इसे गोभी भी जहाँ गोमती देवी का स्थान है। यह सिद्धपीठ माना जाता .. कहते हैं। - है। २. कुत्ते पालने या बेचनेवाला। -- भ-संशा की [हि घाँप चा अनु०] फिती तेज नुकीले गस्त्र द्वारा गोम संशश भी दिश०] १. घोड़ों की एक भवरी जो नामि ने कार .: चुभाव । घेसन । छाती को और रहती है। इसे लोग बहुत खराब ननकते हैं। - गोमना-क्रि० म० हि० गोन] घसाना । चुभाना। गढ़ाना। २. पृथ्वी । धरती। (डि.)। ... . दिना। गोमकंट -मंशा सं० [?] गोमुखा एक वाद्य विरोप । 30-पनतंक गोभा-संच पुं० [हि गाना] ग्रंकुर । घास । उ०-पतु सुनाउ सघन घंट। फिलफत गोनकंट-गृ०रा०६१।१८४?। . ते लुबंधे लोमा लि गए चरत चरत बन गोभा।-नंद गोमक्षिका-संग्राही [सं०] डांस । मुकुरोंटो को०। गोमना--वि० [फा०] १. गोपनीय। न कहने लाया। २. . .. पृ० २८७ । जोस्पष्ट न हो। अस्पष्ट [को०। गाभिल-संशापु [0] सामवेदीय गृह्यसूत्र के रचयिता एक गोमठ-संशा पं० [सं० गो+मठ ] गोशाला। उ०-गौरिगोमठ ... प्रसिद्ध इपि। पुरिल नही, पाएरहु देवा एकठाम नहीं। कौनिक, पृ०४४ । - गोनी-संशा सी० [सं० गोजिह्वा (= बनगोनी) या गुम्न (गुच्छा)] की [मं० गोजिह्वा (= बनगाना) या गुम्म ( गोमतल्लिका-यानी मं०] वड़िया गाय । श्रेष्ठ नाय की। ... एकप्रकार की घास, जिसके पत्ते लंबे, खरखरे, फटावदार और गोमती-तंश धो [सं०] १. एक नदी जो गाहजहांपुर की .:., फूलगोभी के पत्तों के रंग के होते हैं। गोजिया । बनगोभी। एक झील से निकलकर सैदपुर के पास गंगा में मिली है। विशेष-इसमें पीले रंग के चक्राकार फूल लगते हैं और पतों वाशिष्ठी । २. टिपरा (बंगाल) की एक छोटी नदी।३. एक . के यौन में एक बाल निकलती है। इसे पशु बड़े चाव से खाते देदी जिनका प्रधान स्थान गोनंत पर्वत पर है। ४. एक .....हूँ। वचक में यह शीतल, कडु, हलकी, वातकारक मोर कफ, वैदिक मंत्र । ५. ग्यारह मात्रामों का एक छंद । ने,-पुनबंध . . पित्त, चाँसो, तधिरविकार, अचि, फोड़ा, पर और सत्र पुर। राम ब्याह के तिते । फेरि धान पाया निता मोद ...प्रकार के विप का दोष दूर करनेवाली मानी गई है। गोभी--मश प्रौ[मं कैबेज] एक प्रकार का शाक। गोमतीशिला-संघा भी सं०] हिमालय की वह चट्टान जिसपर ... विकोप-इसकी ती इधर कुछ दिनों ने भारत में अधिकता से पहुँचकर पर्जुन का शरीर गल गया था। होने लगी। वनस्पति शास्य के माता इसके पी राई नामत्स्य मं पु [सं०] मुथत के अनुसार सरकारमा मची। .यांतरसों की जाति का मानते हैं । यह तीन प्रकार की होती गोमय-संभाई [.] गोवालक। बाला है-पल नौती, गांठगोभी (१०गांठगोभी)मोरपातमीभीमा गोमय- [0] गो का गोवर । 30mint करमकल्ला (२० 'करमकल्ला')। पृजगोभी को साधारणतः चिनिय चिपति पावस-राजार