पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/२८

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| पुर्ण

क्षेत्रफल

क्षपा-संधा नी० [सं०] दे० 'क्षुपक'। . .... क्षेत्रपाल@-संवा पुं० [सं० क्षेत्रपाल] दे० 'देवपान' । उ०- ', 'क्षुब्ध-वि० [सं०] १. प्रदोलित । पचलं । अधीर । २. व्याकुल। कलियुग क्षेतरपाल है क्या भरो 'कोई भूत । कवीर मं०, | विह्वल । ६. भयमीत । डरा हा । ४. कुपित । क्रुद्ध । पृ०५८८॥ । क्षुब्ध-मंचा पुं० [सं०] १. मथानी की डंडी । २.. एक प्रकार का ' क्षेत्र--संज्ञा पुं० [सं०] १. वह स्थान जहाँ अन्न वोया जाता हो। । रतिबंध या कामशास्त्र की क्रिया! .. .. - खेत । २. समतल भूमि । ३. वह जगह जहाँ कोई चीज पैदा . . हो । उत्पत्तिस्थान ।४. स्थान । प्रदेश । जैसे,-हरिहर क्षेत्र। । क्षुभा-संवा सी० [स०] सूर्य के एक प्रकार के पारिपद् देवता। कुरुशेव। ५. पुण्यस्थान। तीर्थस्थान । ६. राशि (मेप क्षुभित-वि० [सं०]क्षुब्ध। . . आदि) । ७. स्त्री। जोरू । ८. शरीर। बदन । ६. गीता क्षमा- संथा बी० [सं०] [वि० क्षोम] १. वाण। २. एक प्रकार के के अनुसार पाँचों ज्ञानेंद्रिया, पाँचों कमेंद्रियां, मन, इच्छा, पौधों की जाति जिनकी डाली पतली और सीधी तथा छाल द्वेष, सुख, दुःख, संस्कार चेननता और धुति । १०. अतः- |... रेशेदार और दृढ़ होती है जैसे, अलसी, पटसन, सन, इत्यादि। करण । ११. वह स्थान जो रेखामों से घिरा हुआ हो। ३.अलसी। ४. सनई । ५. नील का पौधा । . यो०-क्षेत्रभक्ति = खेतों का बंटवारा। क्षेत्रमिति क्षेत्रगणित । क्षुर-संज्ञा पुं॰ [सं०] १. छुरा । उस्तरा। गरुहा= एक तरह की ककड़ी । क्षेत्रव्यवहार किसी क्षेत्र यो०-क्षुरकर्म, क्षुरक्रिया-हजामतः । क्षरचतुष्टय-हजामत के का वर्गफल मादि निकालना । क्षेत्र संन्यास= किसी स्थानविशेष . : लिये प्रावश्यक उस्तरा, जल, कुशतृण और ब्रश यादि ४ . की सीमा के अंदर रहने का व्रत। वस्तुएँ। १२. बाड़ा । घेरा (को०)। १३. गृह । घर (को०)। १२. I. २. वह बाण जिसकी गाँसी की धार छुरे के मदृश होती है । ३. . रेखाचित्र । रेखांकन (को०)। १४. अन्नसत्र. (को॰) । "..'गोखरू । ४. पशुओं के पावं का खुर । ५. शय्या का पावा। क्षेत्रकर, क्षेत्रकर्षक-संथा पुं० [सं०] किसान । खेतिहर (को०)। |.. . चारपाई का गोड़ा [को॰] । धोत्रगणित-संधाधुं० [सं०] गरिराव विद्या की वह शाखा जिसमें क्षेत्रों

क्षुरक-संवा पुं० [सं०] दे० 'क्षुर'। .

के नापने और उनके क्षेत्रफल निकालने की विधि का वर्णन क्षरधान--संज्ञा पुं० [सं०] नाई की किसबत । रहता है। ' - क्षरधार'-संज्ञा पुं० [सं०] १. पक नरक का नाम । २. एक प्रकार क्षेत्रज'-वि० [सं०] जो क्षेत्र से उत्पन्न हो। का पाए । क्षेत्रज-संवा पुं० [सं०] धर्मशास्त्रानुसार बारह प्रकार के पुत्रों में से क्षुरवार--संज्ञा पुं० [सं०] जिसकी धार छुरे की तरह तेज हो। . . एक । वह पुत्र जो किसी अयोग्य या असमर्थ पुरष की बिना क्षरपत्र'-वि० [सं०] [वि. चौ० क्षरपत्रा, क्षरपत्री] जिसके पत्तो ....सतामवाली स्त्री अथवा मूत पुरुष को बिना संतानवाली विधवा के गर्म और नियुक्त देवर आदि के वीर्य से उत्पन्न हो । इस ' छुरे की तरह धारदार हों। .. .. .. .. प्रकार का पुत्र अपनी माता के पति के स्वत्व का अधिकारी क्षरपत्र-संचा पुं० १.शर नामक गुच्छ । २.क्षुरधार नामक बाण। माना जाता है । फलियुग में इस प्रकार का पुत्र उत्पन्न करना 'क्षरपत्रा-संवा श्री० [सं०] पालकी नामक साग । पालक के . पत्रिका-संवा सी[सं०] पालकी नामक साग। पालकाशेजा-संहावी० [सं०] १. सफेद कंटकारी। २. एक प्रकार की क्षरपत्री-संचा स्रो० [सं०] बचा। बच! .. ककड़ी। ३. गोमूत्र तृण। ४. शिल्पिका। शिल्पी घास। क्षरप्र-संक्षा पुं० [सं०] १. प्रकार का बारण, जिसकी गांसी की क्षेत्रजात-वि० [सं०] परपुरुप द्वारा उत्पन्न (संतान) (को०] । 1. " . धार तेज छुरे को धार के समान होती है। २. खुरपा । . क्षेत्रज्ञ संभ पुं० [सं०] १. शरीर का अधिष्ठाता, जीवात्मा। २. क्षरभांड-संक्षा पुं० [सं० क्षुरभाण्ड] दे० 'क्षुरधान' 1 . परमात्मा-1 ३. किसान । सेठिहर । ४. साक्षी। क्षरिका-संथा औ• [सं०] १. छुरी। चाक् । २. पालकी नामक क्षेत्रज्ञ-वि० [सं०] जानकार । ज्ञाता। साग ।३. मुक्तिकोपनिषद् के अनुसार एक यजुवेदीय उपनिषद् क्षेत्रतिका, क्षेत्रदूतो-संथा वी० [सं०] श्वेतवर्ण की कंटकारी को०] । का नाम । ४. एक प्रकार का मिट्टी का पात्र (को०)। क्षेत्रपति-संवा पुं० [सं०] १. खेत का रखवाला.। क्षेत्रपाल २. 5. क्षरिणी-संज्ञा स्त्री० [सं०] नाइन । नाई जाति को स्त्री को खेतिहर । काश्तकार 1.३. जीवात्मा । ४. परमात्मा। क्ष -संडा० (सं० क्षरिन] [स्त्री० क्षुरिनी] १. नाई। क्षेत्रपाल---संक्षा पुं० [सं०] १. सेत का रखवा आक्षेत्ररक्षक । २. हज्जाम । २. वह पशु जिसके पवि में खुर हों। . . . एक प्रकार के भैरव जो संख्या में ४६ हैं और पश्चिम के क्षरी-संका स्त्री॰ [सं०] छुरी। चाक् । द्वारपाल माने जाते हैं । ३. द्वारपाल । ४. किसी स्थान का क्षुल्ल-वि० सं०] १. छोठा । २. थोड़ा [को०] प्रधान प्रबंधकर्ता । स्वयंभू । भूमिया । क्षुल्लक-संवा पु० [सं०] १. दे० 'क्षुर' । २. छोटा शंख (को०)। क्षेत्रफल-संचा पुं० [सं०] किसी क्षेत्र का वर्गात्मक परिमाण जो क्षुल्लतात--संघा '० सं०] पितृष्य । पिता का छोटा भाई [को०)। प्रायः उसकी लंबाई और चौड़ाई के घात या गुगन से जाना रा-संवा पुं० [सं०] १, छींक । २. राई । ३. लाही। भाग है । वगंपरिमाण । रका । -.- -'.