पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/२८२

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गोसर्ग -१३५६ - गोहन' गोसर्ग---संज्ञा पुं० सं०] गायों को चरने के लिये छोड़ने का गोसूक्त-संज्ञा पुं० [सं०] अथर्ववेद का यह अंश, जिसमें ब्रह्मांड की .. . समय । भोर । तड़का [को०। रचना का गो के रूप में वर्णन किया गया है। गोदान.के. " गोसर्प-संज्ञा पुं० [सं०] गोह [को०] । .: समय इसका पाठ किया जाता है। : ..... .. गोसलखाना@---संशा पुं० [हि० गुसलखाना ] दे० 'गुस्सखाना'। गोसयाँ-संहा पुं० [सं० गोस्वामी, हि० गोसाई] प्रभु । नाय । . . याँ ते गयो पकतं सुख देन को गोसलखाने गयो दुख दीनो। ... मालिक। --भूषण पं०, पृ० २०५।। गोस्तन-संशा पुं० [सं०] १.गाय का थन । २.कली ग्रादि का गुच्छा। गोसल्ल--संज्ञा पुं० [हिं० गुस्ल] दे० 'गुस्ल' । उ०-कर गोसल्ल ३. चार लड़ी का मोती का हार । ४. एक प्रकार का दुर्ग । पवित्र होइ चिते रहमान 1-पृ० रा०, ११४। । गढ़ [को०)। गोसव-संवा पुं० [सं०] गोमेध यज्ञ । गोस्तना-संचा खी० [सं०] द्राक्षा । दाख । मुनक्का । विशेष-यह कलि में वर्जित है। गोस्तानी-संशा श्री० [सं०] दे॰ 'गोस्तना'। गोसहस्र-संघा पुं० [सं०] एक प्रकार का एक हजार गायों का गोस्थान--संशा पुं० [सं०] गोशाला। गोठ कोना . ... महादान [को०] । गोस्वामी-संथा पुं० [सं०] १. वह जिसने इंद्रियों को वश में कर ... गोसहस्री-संवा स्त्री० [सं०] कार्तिक और ज्येष्ठ की अमावस्या (को०]। लिया हो। जितेंद्रिय । २. वैष्णव संप्रदाय में प्राचार्यो के .. गोसा - संज्ञा पुं० [सं० गो] गोइठा । उपला। कंडा । वंशधर या उनकी गद्दी के अधिकारी । ३. गायों को पालने- गोसा@-संज्ञा पुं० [फा० गोशह] १. कमान का सिरा। गोशा। . वाला व्यक्ति । गोपालक (को०)। . ...... उ०-प्रथम करी टंकार फेरि गोसा सवारि तेहिं 1- गोस्सा:-संक्षा पुं० [हिं० गुस्ता] दे० 'गुस्सा' । उ० गोस्सा मत : हम्मीर०, पृ० ३४ । २.कोना । अंतराल । कोण उगोस होइए साहव !-मैला०, पृ० ३५६ । . . गहि रसता दसन बसन कॅपायो बाम !-स० सप्तक प० । गोह-संज्ञा स्त्री० [सं० गोवा] छिपकली की जाति का एक जंगली .. ३७७। जंतु जो आकार में नेवले से कुछ बड़ा होता है।" .:. गोसाई-संसा पुं० [सं० गोस्वामी] १. गौओं का स्वामी या मधि विशेष-इसकी फुफकार में बहुत विप होता है। इसके काटने - कारी। २.स्वर्ग का मालिक, ईश्वर । ३.संन्यासियों का एक पर पहले मांस गलने लगता है और तब सारे शरीर में विप : संप्रदाय जिसमें दस भेद होते हैं और जिसे दशनाम भी कहते फैलने के कारण मनुष्य मर जाता है। इसका चमड़ा बहुत हैं। गिरि, पुरी, भारती, सरस्वती आदि इसी के अंतर्गत हैं। मोटा और मजबूत होता है जिससे प्राचीन काल में लड़ाई के... ४. विरक्त साधु । अतीत । ५. वह जिसने इंद्रियों को जीत समय उँगलियों की रक्षा करने के लिये दस्ताने बनते थे। लिया हो । जितेंद्रिय । ६. मालिक ! प्रभु । स्वामी। कभी कभी इसके चमड़े से बजरी भी मढ़ी जाती है । इसका गोसाई-वि० श्रेष्ठ । बड़ा। मांस बहुत पुष्ट होता है और प्राचीन काल में पाया जाता था। गोसाउनि -- संक्षा श्री. [सं० गोस्वामिनी) गोस्वामिनी । उ०-- अब भी जंगली जातियां गोह का मांस खाती हैं । यह दीवार :: सहज सुमतिवर दिप्रयो गोसाउनि, अनुगति गति दुग पाया। में चपक जाती है और उसे बहुत कठिनता से छोड़ती है। ... -विद्यापति (शब्द०)। ऐसा प्रसिद्ध है कि पहले चोर इसकी कमर में रस्सी बांधकर : गोसानि-संज्ञा सी० [सं० गोस्वामिनी] स्वामिनी । उ०-दास . इसे मकान के ऊपर फेंक देते थे और जब यह वहां पहुंचकर गोसाअनि गहिम धम्म गए धंध निमज्जिय ।-कीर्ति०, __-चिपक जाती थी, तो वे उस रस्सी की सहायता से ऊपर चढ़ .. पृ०१६ । !: जाते थे। गोह दो प्रकार की होती है, 'एक चंदन गोह जो ... गोसाती-संज्ञा स्त्री० [फा० गोशह] वह हवा जो पाल उतार लेने छोटी होती है और दूसरी पटरा गोह जो बड़ी और चिपटी.. पर भी जहाज के चलने में बाधा डाले ।-(लश०)। ... होती है।" . . . . . गोसावित्री-संज्ञा स्त्री० [सं०] गायत्री [को०। गोह-संशा पुं० [सं०] १. गेह। घर । २. मांद । छिपने का स्थान गोसी-संटा पुं० [देश॰] समुद्र में चलनेवाली एक प्रकार की नाव को .... . . " जिसमें २ से लेकर ७ तक मस्तूल होते हैं। गोहर-संथा ० उदयपुर राजवंश के एक पूर्वपुरुष का नाम जो बाप्पा गोसीपरवान-संशा पुं० [देश॰] धातु की एक लंबी छड़ जो जहाज रावल से पहले हुआ था। " के मरतूल में पाल के ऊपरी छोर को हटाने बढ़ाने के लिये गोहतीत -वि० [सं० गोतीत] ३० 'गोतीत' । उ०- गुना गोहतीत ... लगी होती है । -(ल.), ... ... ... .. . बना बास कीर्त ।-घट०, . ३६७। ..' गोसत-संशा पुं० [सं०] गौ. का बच्चा । बछड़ा। उ०-(क), गो गोहत्या--संधश चौ• [सं०] गोवध । गौसुतनि सों मृगी मृगसुतनि सों ओर तन नेकुन.जोहनी।-: यो०- गोहत्या निवारण गोवंध बंद करना। हरिदास (शब्द॰) । (ख) गोकुल पहुंचे जाइ रहे बालक अपने गोहन' -संथा पुं० [सं० गोधन (गौमों का समूह) ]१.. संग . घर । गोसुत अरु नर नारि मिली मति हेत लाइ गर--सूर रहनेवाला । साथी । उ०-सूरदास प्रभु मोहन गोहन की छाव: बाड़ी मेदति दुख निरखि नैन मैन के दरद को।-सूर.... करना...