पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/२८४

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गौंटार १३६१ गौड़मल्लार विशेष-यह उत्तर और पश्चिम भारत में अधिक्ता से होता है गोखा-संश पुं०. [ हि: गौ= गाय- माल ] गाय का चमड़ा। और इसकी लकड़ी पीलापन लिए बहुत फाड़ी होती है। गौखी --संग्रा. श्री [हि० गौखा जता। गौंटाग--संज्ञा पुं० [हिं० गांव+टा (प्रत्य॰) ]--१. यह खर्च जो गोगा-- पुं० [अ० गीगाहा १.शोर । गुल गपाड़ा हल्ला। किसी गाँव में प्रजा के विशेष लाभ के लिये, परोपकार, धर्म २. अफवाह । जनश्रुति। अादि के विचार से जमींदार की ओर से किया जाय।... गोगाई---वि० [अ० गोगह-फाई (प्रत्य॰)] शोर मचानेवाला। विशेष-प्रायः गुमाश्तों को जमींदारों की ओर से इस प्रकार के गोलाहल पारपाला। खर्च करने का अधिकार होता है और कभी कभी चर्च होने गोचरी--संशत्री० [गो+चरना] गाय चराने का कर जो जमीदार : के बाद उसका कुछ अंश प्रजा से भी वसूल किया जाता है। अपनी प्रजा से लेता है और जिसके बदले वह गायों को करने . २. छोटा गाँव। के लिये कुछ भूमि छोड़ देता है। गोटा--संशा पुं० [हिं० गौ+टा (प्रत्य॰)] १. गौं । अवसर। गौड़-संधा पुं० [सं० गोड बंग देश का एक प्राचीन विभाग। जो घात । २. अलगाव रखना। ३.गट बनाना। " ... किसी के मत ने मध्य बंगाल से उड़ीसा की उत्तरी सीमा तक: fam iminister after गोंटिया-संवा पुं० [सं० गोष्ठ] गाँव का प्रधान गांव का मुचिया। और मिमी के मत से वर्तमान बर्दवान के बाद पास था। .. उ०--भादों की गणेश चतुर्थी को गांव के पुराने गौटियों को विशेष----पूर्मपुराण और लिंग पुराण से जाना जाता है कि यहाँ की परंपरा के अनुसार गणेश जी की मूर्ति स्थापित गी वर्तमान गोडा के मारापानमा प्रदेश, जिसकी राजधानी जाती है।--शुक्ल अभि००, पृ० १३८ । ... श्रावस्ती थी, गौड़ प्रदेश कहलाता था। हितोपदेश मे कौशांबी गोंटियाई-संज्ञा स्त्री० [हिं० गाँटा माफी गांव। को भी इसी गौड़ प्रदेश के अंतर्गत लिया है। दसवीं और श्रीरकी मौत पटे गोंठिया-संज्ञा पुं० [सं० गोठ] दे० 'गौटिया' । उ-कलचुरिया ग्यारहवीं सदी के चेदि राजाओं के ताम्रपत्रों और मिला- काल में गड़ाधीशों को दीवान अथवा ठाकुर कहा जाता था लेयों से पता लगता है कि वर्तमान नोंडवाना के पास का और ताल्लुकाधीशों को दाऊ तथा ग्रामप्रमुख गौंठिया ।---... देशमी गौड़ ही कहलाता था। राजतरंगिणी में पंचगौड़। शुक्ल अभि० ग्रं॰, पृ० २०१ । शब्द माया है जिससे जान पड़ता है कि किसी समय पांच गौंडा---कि० वि० [हिं बड़ा ] दे० 'वंडे. 1 30----जोगिनुप ! गौड़ देश थे। कदपुराग के सहाद्रिवंद में से जिन जिन मृगछाला कहिऐ, सोभा कही न जाई, पहुचे निकट जनकपुर . स्थानों के बाहरणों को पंचगौड़ के संत नर लिया है, वे पर गौड़े, जोति दई छुड़काई।-पोद्दार अभि००, पृ० १७६ । के बतलाए हुए स्थानों से मित्र हैं। . गोंनि--संज्ञा पुं० [हिं० गौन ] रे . 'गौन । उ-वैल उलटि २. संदपुराण के सह्याद्रि पंड के अनुसार ब्राह्मणों की एककोटि नाइक कौं लाघौ वस्तु मांहि भरि गौनि अपार | सुदर ग्रं०, जिसमे सारस्वत, कान्यकुब्ज, उत्कल, मैथित और गौड़ संमि.. भा० २, पृ० ५५२ । लित हैं । ३. ब्राह्मणों को एक जाति जो पश्चिमी उत्तरप्रदेश, गीवाल--- संज्ञा पुं० [सं० ग्राम] दे० 'गांव' । ३०--पहिरि ओडि दिल्ली के मासगास तथा राजपूताने में पाई जाती है । ४. . के चली ससुररिया, गौंवा के लोग कई बड़ी फुहरी।- गोड़ देश का निवासी। ५.३६ प्रकार के राजपूतों में से कवीर श०, पृ० २४ । एक जो उत्तर पश्चिम भारत में अधिकता से पाए जाते हैं। गौहनियु- संज्ञा पुं० [ हि० गोहन ] दे० 'गोहन-१' 1 30-4 विशेप--टाड साहब का मत है कि संगाल (गौड़) के राजा सासने पीय गौहनि पाई ।--कवीर ग्रं॰, पृ० १६४ " इसी कोटि के राजपूत थे। ६.कायस्थों का एक भेद । ७. संपूर्ण जाति का एक राग गौहा--वि० [हिं० गाँव+हा (प्रत्य॰)] गांव संबंधी। गांव का।। जिसमें सत्र शुद्ध स्वर लगते हैं। देहाती। गौ-संज्ञा स्त्री० [सं०] गाय । गैया । वि० दे० 'गो'। : । विशेप-यह श्रीराग का पुत्र माना जाता है और इसके गाने : गौ --क्रि० प्र० [ हि गा=गया] दे० 'गया । उ०--एक बाट '. 'का समय तीसरा पहर और संध्या है। इसके कान्हड़ा, गौड़,.. गी सिंघल दोसर लंफ सदीप। जायसी (गुप्त), केदार गौड़, नारायण गौड़, रीति गौड़ आदि अनेक भेद है। पृ०२१३। ..... ! गौड़नट-संज्ञा पुं० [सं० गौडनट ] संगीत में गौड़ और नट के योग गौख --संज्ञा स्त्री० [सं० गवाक्ष] १. वह छोटी खिड़की जो दीवार से बना हुमा एक संकर राग. . या छत में हवा और रोशनी आने के लिये बनाई जाती है। गौड़पाद- संशा पुं० [सं०. गौडपाद ] स्वामी शंकराचार्य के गुरु के गुरु झरोखा । २. वह दालान या दरवाजा जो प्राय देहाती मकानों , जिन्होंने मांत्योपनिषद् पर कारिका लिखी थी और सायण- के दरवाजे पर बैठने आदि के लिये बना रहता है। चौपाल। कारिका का भाप्य किया था। उ०-~बनी गौख वेजोख की मौख सो हैं। पताकानु केकी गौड़पादाचार्य-संश पुं० [सं० गौडपादाचार्य] ३. 'गौड़पाद'। . पिकी ही परी है ।--सूदन, शब्द०)। . गोडमल्लार-संज्ञा पुं० [म० गोधमल्लार] गौड़ और मल्लार के योग गौखा-संघा पुं० [सं० गवाक्ष] झरोखा । गौस , से बना हुया एक संकर राग। ..'