पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/२८६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

गौधार, गौमेध, गौधेर गौधार, गौधेय, गौधेर-संज्ञा पुं० [सं०] ३० 'गोधिकात्मज' (को०] । गोपिक-संपा पु० [सं०] गोपी का पुन । ग्वाल का पुत्र [को०)। गोधूमीन-संज्ञा पुं० [सं०] गेहू का खेत । गेहूँ का मैदान या क्षेत्र गोपुच्छ-वि० [सं०] गाय को पूछ के समान [को०)। - [को०] । गोपुच्छिक--वि० [सं०] गाय की पूछ से संबंधित ! . . .. गौन" -संधा पुं० [सं० गमन, प्रा० गमरण, गवरण] दे० 'गमन' । गौप्तेय-~-30 पु० [सं०] वैश्य स्त्री का पुन किये। गौन-संज्ञा पुं॰ [अं० गाउन दे० 'गाउन'। गौमुख-मंहा पु० [सं० गोमुश] ३० 'गौमुख' । गौन-संज्ञा श्री॰ [सं० गौरिगफ, प्रा० गोण] एक प्रकार का वोरा। ___ गौमुखी-संघा नो [हिं० गौमुल + ई (प्रत्य॰)] गो के मुख के प्राकार : गोली विशेष- इसको किसान स्वयं ही रस्सियों से बिनकर तैयार की बनी हुई थली जिसमें माला रखकर जप करते हैं। वि० . करते हैं। गौन g.--संज्ञा पुं० [सं० गौण] दे० 'गौण' : उ०---या प्रकार श्री दे० 'गोमुखी' । गोमेद-संशा पुं० [सं० गोमेद] एक प्रकार का रत्न जो चार रंग गुसाई जी आप भक्ति मार्ग के रक्षक हैं। यह गौन भाव है। -दो सौ बावन०, भा० १, पृ० ११३।। का होता है--श्वत, पीताभ, लाल और गहरा नीला । इसकी .. गोनई--संक्षा स्त्री० [सं० गायन] गान । संगीत । गणना उपरत्नों में होती है। गौनर्द-संशा पुं० [सं०] महाभाष्यकार पतंजलि [को०] । गोमोदिक -संया पुं० [सं० गोमेवफ] दे॰ 'गोमेद 17०-पदिपन्ना . गौनहर-संज्ञा स्त्री० [हिं० गौनहरी] दे० 'गौनहारी'। ___ मानिक मँगवाए । गौमोदिक लीलागन ल्याए ।-५० रासो.. गौनहरी-संक्षा भी० [हिं० गौन (=गाना)+हरी (प्रत्य॰)] ३० पृ०, २२ । _ 'गौनहारी। गोरंड-~संचा पुं० [सं० गौराङ्ग] गोरों का देश । विलायत। ... गोनहाई-वि० [हिं० गोना+हाई (प्रत्य॰)] जिसका गौना हाल गोर'-वि० [सं०] १. गोरे चमड़ेवाला । गोरा । २. वैत । उज्ज्वल । ... में हुया हो। जो गौना होने के बाद ससुराल में पहले पहल सफेद । नाई हो। उ०-एती चतुराई घौं कहाँ ते पाई रघुनाथ हौं गौर'- संग पुं० [सं०] १. लाल रंग। २. पीला रंग। ३. चंद्रमा ।४. : . तो देखि रीझ रही गौतहाई तिय की।---रघुनाथ (शब्द०)। धव नाल का पेड़ । ५. सोना । ६. माज्ञवल्क्य के अनुसार एक गौनहारी- मंशा सी० [हिं० गौना+हार (प्रत्य॰)] वह स्त्री जो प्रकार का बहुत छोटा मान जो तौलने के काम माता और दुलहिन के साथ उसके ससुराल जाय । प्रायः तीन सरसों के बराबर होता है। ७. केसर । ८, एक . गौनहारिन--संज्ञा स्त्री० [हिं०] दे० 'गौनहारी' । प्रकार का मृग जिसके बुर वीच से फटे नहीं होते । ६. सफेद . गौनहारी-संक्षा श्री० [हिं०गाना+हारी (वाली)] एक प्रकार सरसों । १०. चैतन्य महाप्रभु का एक नाम । ११. एक पर्वत ... की गानेवाली स्त्रियाँ जो कई एक साथ मिलकर ढोलक पर जो ब्रह्मांडपुराण के अनुसार फैलास के उत्तर में है। १२.. या शहनाई आदि पर गाती हैं। इनकी कोई विशेष जाति नहीं एक प्रकार का भैसा [को०)। १३. बृहस्पति ग्रह (को०)। होती । प्रायः घर से निकली हुई छोटी जाति की स्त्रिया ही गौर-संशा पुं० [सं० गौड] ३. 'गौड़'। पाकर इसमें समिलित हो जाती हैं और गाने बजाने तथा गोर--संशा पुं० [प्र. गौर] १. सोचविचार चिंतन । २.खयाल । । कसब कमाने लगती है। ध्यान । उसो दीस सब ठौर च्याप रहो मन माहिं जो। गौना...देशा०० मि० गमन विवाह के बाद की एक रस्म जिसमें सज्जन कारक गौर चाही को निज जानिए।-रसनिधि । वर अपने ससुराल जाता है और कुछ रीति रस्म पूरी फरफे बधू को अपने साथ ले पाता है। द्विरागमन। मुफलाया । यो०--गौर से-ध्यानपूर्वक । ध्यान देकर । ... उ०- तुलसी जिनकी धूर परसि अहल्या तुरी गौतम सिधारे र गोर@-संश्था स्रो० [सं० गौरी] पार्वती । उ-जनम हुकं जगजीत : गृह गौनो सो लिवाइ के ।-तुलसी (शब्द०)। री सुप्रसन संकर गौ -रा००, पृ०२१।. .. मुहा०- गौना देना= वधू को वर के साथ पहले पहल ससुराल गोरक-संक्षा पुं० [सं०] एक प्रकार का धान (को०)। . . भेजना । गौना लाना=वर का अपने ससुराल जाफर वधू को गोरक्ष्य-संधा पुं० [सं०] गायों की रक्षा । गोपालन [को०) 1. . . अपने साथ ले माना। क्रि० प्र०-लेना ।--मांगना । गौरग्रीव-सं० [सं०] पुराणानुसार एक देश जो कूर्मविभाग के .. मध्य में है। विशेष-पूरव में 'गौने जाना' और 'गौने पाना' आदि भी . . बोलते हैं। . गौरचंद्र-संशा पुं० [सं० गौरचन्द्र] महाप्रभ चैतन्य देव (को०)। गौनिहु-संज्ञा स्त्री० [सं० गमन] दे० गमन' । उ---मनु कोमल गौरतलब- वि० [प्र. गौरतलब] गौर करने योग्य । विचारणीय। पग गौनि चुकरगन फूल पांवड़े डा।-भारतेंदु ग्रं॰, भा॰ २, गौरता-संधा जी० [सं०] १. गोराई। गोरापन । २. सफेदी। , . . पृ०४४६ । . .. गौरमदाइनि -सक्षा पुं० [देश॰] इंद्रधनुप। उ०-धनु है यह गोर-... गौनियाँ -संघा स्त्री० [सं० गौरिएक] दे० 'गौन" । उ०—काहेक . . मदाइनि नाहीं । शर जाल बहे जलधार वृथा ही।-राम .... ... टटुआ काहेक पाखर काहेक भरी गौनियाँ ।--कवीर श०, पृ०६८। - पृ.२२।. गौरव'-संथा पुं० [सं.] १. बड़प्पन । महत्व । २. गुरुता । भाराष . पद) . . - - . . . . -