पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/२८८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

'गौरीवेत ' ग्रंथचुवा गोरोबेत - संज्ञा पुं० [हिं० गौरी+बेंत ] एक प्रकार का बेत जिसे गोहर-संज्ञा पुं० [फा०] १. मोती। मुक्ता । २. जोहर ।..

पक्का बेत कहते हैं।

. गौहरा--संज्ञा पुं० [हि० गी+हरा ] गायों के रहने का स्थान । गौरीभर्ता-संज्ञा पुं० [सं० गौरी + भर्तृ] शिव (को०)। गोंडा। गौरीललित-संज्ञा पुं० [सं०] हरताल । गोह्यक--वि० [सं०] गुह्यकों से संबंध रखनेवाला. (को०)। गौंरीवर--संज्ञा पुं० [सं०] शिव। ग्मा---संज्ञा स्त्री० [सं०] पृथ्वी (को०)। गौरीशंकर--संज्ञा पुं० [सं०] १. महादेव । शिव । २. हिमालय पर्वत यांविर-संज्ञा पुं॰ [देश॰] कीकर की जाति का एक पेड़ जिसके पत्तों की सबसे ऊंची चोटी का नाम । . और लकड़ियों से पपड़िया खैर बनाया जाता है। गौरीश-संज्ञा पुं॰ [सं०] शिव [को०] ! ग्याँन -संशा पुं० [हिं०] दे० 'ज्ञान' । उ०--ग्यांन ध्यान धारना गौरी शिखर--संज्ञा पुं० [सं०] हिमालय पर्वत की वह चोटी जिसपर धरि धरि समाधि देखे पैन देखे ।घनानंद, पृ० ४३७ । - पार्वती जी ने तपस्या की थी किो । - ग्यान -क्रि० स० [हिं० गया] दे० 'गया' । उ०—हेरा ग्या' ऊमर गौरीसर-संक्षा पुं० [?] हंसराज नाम की बूटी । समलपत्ती। कन्हइ, कहिजइ एही यात!-ढोला०, दू० ६२६ । गौरतल्पिक-संज्ञा पुं० [सं०] गुरुपत्नी से अनुचित संबंध रखने वाला ग्याना --संशा पुं० [म० ज्ञान दे० 'ज्ञान'। शिष्य [को०] । ग्याभनf--वि० सी० [हिं०] दै० गाभिन' । उ० हे पिता, जब गौ रूबटा- संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] करमर्द या अमली नाम का झाडीदार यह कुटी के निकट चरनेवाली ग्याभन हरिनी क्षेमकुशल से . पौधा । वि० दे० करमर्द' । जने, तुम किसी के हाथों यह मंगल समाचार मुझे कहला भेजना, भूल मत जाना ।--शकुंतला, पृ०७४। गौरया-संज्ञा स्त्री० [हिं० गौरिया] दे० 'गौरिया'। गौंलक्षणिक संज्ञा पुं० [सं०] गाय बैलों के अच्छे बुरे लक्षणों को र ग्यारमैल-वि० [सं० एकादश] ग्यारहवां । उ०--पंच दुप्रधान परि सोम भोम । ग्यारम राहखल करन होम ।-पृ०रा०, पहचाननेवाला [को०] । १। ७०८। गौला-संञ्चाक्षी [सं०] गौरी । पार्वती । गिरिजा। ग्यारसा संक्षा पी० [हिं० ग्यारह] एकादशी तिथि। गौलिक संज्ञा पुं० [सं०] १. मुष्कक नामक वृक्ष । २. एक प्रकार का ग्यारह'-वि० [सं० एकादश, प्रा० एगारस] दस और एक । वृक्ष [फो०] । ग्यारह'-संश पुं० दस और एक ' की सूचक संख्या जो इस प्रकार गौंलोचन--संज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'गोरोचन' 130--गौलोचन गौ लिखी जाती है-११। . . सीस मिरग मद नाभि ते जानौ । -पल्टू , मा० १, ग्यारहजीव-संचा पुं० [हिं० ग्गारह+जीव] ग्यारह भक्त । वे ये हैं-ध्र व, प्रल्हाद, गणिका, शेपनाग, गज, नामदेव, वाल्मीकी . गोंल्मिक-संज्ञा पुं० [सं०] ३० सिपाहियों का नायक या अफसर । अजामील, शिव, गोपियाँ (या मीरा) और तुलसी। गर्गौल्य--संज्ञा पुं० [सं०] १. शरबत । २. शराव [को०)। ग्यारहवां-वि० [हिं० ग्यारह+वा (प्रत्य॰)] [वि. श्री० ग्यारहवीं] गोंविदा--संज्ञा पुं० [सं० गोविन्द] दे० 'गोविंद । उ०~-षेतरपाल ग्यारह की संख्यावाला । वह जो दस के बाद भाए। . को पूजे कौनं । जो परिहरि गोविंदह मौनं ।--पृ० रा०, ७२६। ग्यारावि० [हिं०] दे० 'ग्यारह' । उ०—तिय वियोग ऋषि तन . तज्यों ग्यारा से चालीस हे रासो, पृ० २६| गौशतिक-वि० [सं०] सो गायों को रखनेवाला [को॰] । गौशाला--संज्ञा पुं० [सं० गोशाला] दे० 'गोशाला'। ग्रंथ--संज्ञा पुं० [सं० ग्रन्य] १. पुस्तक । किताव। गौशृग--संज्ञा पुं० [सं० गोशृङ्ग] एक प्रकार का सामगान । यौ----ग्रंथकार । ग्रंथकर्ता । ग्रंथसाहब । ग्रंथसंधि, आदि।। गोष्ठीन--संज्ञा पुं० [सं०] पुरानी गोशाला का स्थान [को०] । २. गाँठ देना या लगाना । ग्रंथन । ३. धन । ४ अनुष्टुप् छदम गौस--संज्ञा पुं० [अ० गौस ] १. वलो से बड़ा पद रखनेवाला रचित काव्य (को०)। . . . . . . मुसलमान । २. मुसलमानों की उपाधि । उ०- गौस औ कुतुत्र ग्रंथकर्ता-संज्ञा पुं० [सं० ग्रन्थकर्तृ । पुस्तक बनाने. या लिखनेवाला । दिल फिकिर का करें।--कवीर रे०, पृ० २१ ग्रंथ की रचना करनेवाला। गौसम--संज्ञा पुं० [हिं० कोसम] कोसम नाम का पेड़। . ग्रंथकार-संज्ञा पुं० सं० ग्रन्थकार] दे० 'ग्रंथकर्ता। गौसहस्रिक--वि० [सं०] सहन गायें रखने या पालनेवाला (को०] । ग्रंथकूटी, ग्रंथकटी----संशनी० [सं० ग्रन्थकुटी, ग्रन्थकूटी] पुस्तकालय गोहन--संज्ञा पुं० हिं०] दे० 'गोहन' । उ०-देखि रूप धनं छाया करही । पसु पंछी सब गौहन फिरहीं । -नंद० प्र०, ग्रंथकत--संथा पुं०० ग्रन्थकृत] ग्रंयकार (को०)। ... पृ० १२० । ग्रंथचु बक--संज्ञा पुं० [सं० ग्रन्थ+चुम्वफ(-चूमनेवाला)] जो किता गौहनि -संञ्चा पुं० [हिं०] दे० 'गोहन' । उ०--गौहनि लागा विपय का पूर्ण विद्वान् न हो। जो ग्रंथों का केवल पाठ मात्र धाइ ।--कवीर ग्रं॰, पृ० १०॥ . . कर गया हो, उसके विपय को.न. समभा हो । अल्पज्ञ । उ