पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/२९१

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.... - ग्रहण सातवें घर के ग्रहों को पूर्ण दृष्टि से देवता है । (ख) 'ग्रह देवताओं को हविष्य दिया जाता है। ८. राहु । ६. स्कंद, शब्द में पति या पतिवाची कोई दूसरा शब्द जोड़ देने से उसका शकुनी मादि रोग जो बहुत ही छोटे बालकों को हो जाते हैं अर्थ 'सूर्य' हो जाता है। और जिन्हें लोग भूत प्रेत आदि का उपद्रव समझते हैं । -... २. आकाशमंडल में वह तारा जो अपने सौर जगत् में सूर्य की वग्लग्रह। परिक्रमा करे। एक निश्चित कक्षा पर किसी सूर्य की परिक्रमा ग्रह-वि० बुरी तरह तंग करनेवाला । दिक करनेवाला। 'करनेवाला तारा। .. ग्रह -संचा पुं० [सं० गृह] दे० 'नह' । ३०-डारी डर गुरुजनन - . . विशेप-हमारे सौर जगत् में सूर्य के क्रमानुसार अंतर पर बुध, को कहु इकंत ग्रह पाइ । अति रुचि दोउन उर बढ़ी अधरन शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, युरेनस और नेपच्यून ये अघर मिलाइ।-स० सप्तक, पृ० ३७६ । - पाठ बड़े या प्रधान ग्रह हैं। अब एक नए ग्रह का पता चला ___ ग्रहक-संज्ञा पुं० [सं०] १. वह जो ग्रहण करनेवाला हो। ग्राहक । - है जिसे प्लेटो (कुवेर) कहते हैं। इनके अतिरिक्त, मंगल २. कैदी (को०)।

और बृहस्पति के मध्य में बहुत से छोटे छोटे ग्रह हैं जिनमें से

ग्रहकल्लोल-संज्ञा पुं० [सं०] राहु नामक ग्रह । अवतक ४६० से अधिक ग्रहों का होना प्रमाणित हो चुका ग्रहकुडलिका--संशा स्त्री० [सं० ग्रहकुण्डलिका] ग्रहों का परस्पर संबंध हैं। ये सव ग्रह प्रायः एक ही समतल पर हैं और युरेनस और उसके आधार पर कथित या लिखित भविष्यफल [को॰] । तया नेपच्यून के अतिरिक्त शेप सब ग्रह अपनी कक्षा पर सूर्य __ ग्रहकुष्मांड, ग्रहकूष्माण्ड --संज्ञा पुं० [सं० ग्रहकुष्माण्ड ग्रहकूष्माण्ड] की परिक्रमा करते हैं। नेपच्यून और युरेनस का मार्ग कुछ पुराणानुसार एक प्रकार की देवयोनि । भिन्न है। इन ग्रहों की गति भी अलग अलग है। किसी किसी ग्रहगणित---संज्ञा पुं० [सं०] ग्रहों के संबंध का गणित । गणित बड़े ग्रह के साथ उपग्रह भी हैं जो उसी समतल पर अपनी ज्योतिप (को०] । कक्षा में अपने ग्रह की परिक्रमा करते हैं। जैसे, हमारी ग्रहगति-संज्ञा त्री० [सं०] १. ग्रहदोप। २. ग्रहों की गति [को०] 1 इस पृथिवी के साथ चंद्रमा । इसी प्रकार नेपच्यून के साथ । __ग्रहगोचर-संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'गोचर'। 'एक ,मंगल के साथ दो, युरेनस और वृहस्पति के साथ चार ग्रहग्रस्त-वि० [सं०] १. बुरे ग्रहों से ग्रसित । २.प्रेतबाधा से प्रभावित ... चार और शनि के साथ आठ उपग्रह या चंद्रमा हैं। इनमें को। से कुछ उपग्रहों का मार्ग और उनकी गति भी साधारण ग्रहग्रहीत-वि० [सं० ग्रह+गृहीत] ग्रहपीड़ित । उ०--ग्रहग्रहीत से भिन्न है । प्रत्येक ग्रह सूर्य से कुछ निश्चित अंतर पर है। पुनि वातवस तेहि पुनी बीछी मार |---मानस, २। १८० । साधारणतः स्यूल रूप से, सूर्य के ग्रहों का प्रापेक्षिक अंतर ग्रहग्रामणी-संज्ञा पुं० [सं०] सूर्य [को०) । जानने का एक बहुत सरल उपाय यह है-०, ३, ६, १२, ग्रहचितक-संज्ञा पुं० [सं० ग्रहचिन्तक ज्योतिषी। २४, ४८, ६६, १९२ इनमें से प्रत्येक संख्या में चार जोड़ ग्रहण-संज्ञा पुं० [सं०] सूर्य, चंद्र या किसी दूसरे प्राकाशचारी दें तो वही संख्या प्रापेक्षिक अंतर मुचित करनेवाली होगी-- पिंड की ज्योति का प्रावरण जो दृष्टि और उस पिंड के मध्य ४ . ७ १० १६ २८५२ १०० १९६ में किसी दूसरे आकाशचारी पिंड के आ जाने के कारण बुध शुक्र पृथ्वी मंगल • वृहस्पति शनि युरेनस उसकी छाया पड़ने से होता है; अथवा उस पिंड और उसे प्रर्थात् यदि सूर्य और बुध का अंतर ४ मान लिया जाय, तो ज्योति पहुँचानेवाले पिंड के मध्य में ग्रा पड़नेवाले किसी अन्य सूर्य ते शुक्र का अंतर, लगभग ७, पृथ्वी का १०, मंगल का पिंड की छाया पड़ने से होता है । जैसे,—चंद्र और (उसे १६ और शेष ग्रहों का भी इसी प्रकार होगा। प्रत्येक ग्रह ज्योति पहुँचानेवाले) सूर्य के मध्य में पृथिवी के ग्रा जाने के का सूर्य से ठीक अंतर, व्यास और परिक्रमाकाल नीचे लिखे कारण चंद्रग्रहण और सूर्य तथा पृथिवी के मध्य में चंद्रमा के कोष्ठक से विदित होगा। आ जाने के कारण सूर्यग्रहण का होना। | सूर्य-परिक्रमा- सूर्य से अंतर । व्यास विशेप-पुराणानुसार सूर्य या चंद्रग्रहण का मुख्य कारण राहु ग्रह काल (दिन) (मील) (मील) नामक राक्षस का उक्त पिंडों को ग्रसने या खाने के लिये दौडना है (देखो 'राहु')। इसीलिये इस देश में ग्रहण लगने के बुध ..] २२५ ६७०००००० ७००० समय, सूर्य या चंद्रमा की इस विपत्ति से मुक्त कराने के पृथिवी ३६५ ६३०००००० अभिप्राय से लोग दान, पुण्य ईश्वरप्रार्थना तथा अन्य अनेक ६८७ १८१०००००० प्रकार के उपाय करते हैं। ग्रहण लगने और छूटने के समय वृहस्पति । ४३३३ ४८२०००००० शनि । १०७५८ .. ८५३००००००। ७५००० स्नान करने की प्रथा भी यहाँ है। पर प्राचीन भारतीय युरनस । ३०६८७ - १७७००००००३०००० ज्योति पियों ने ग्रहण का मुख्य कारण उक्त छाया को ही माना । नेपच्यून । ६०१२७ २७८५०००००० । ३७००० । 'है और किसी न किसी रूप आधुनिक पाश्चात्य विद्वानों के ... नो की संख्या। ४. ग्रहण करना । लेना। ५ अनुग्रह । कृ.पा। सिद्धांत के समान ही उसके कारण का निरूपण किया है। ... ६. चंद्रमा या सूर्य का ग्रहण । ७. वह पान जिससे यज्ञ में सूर्य ग्रहण केवल अमावस्या के दिन और चंद्रग्रहण केबल दम मंगल MKA ०७: 66००० ०००००