पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/२९२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

ग्रहणक १३६६ ग्रहमैत्र पूर्णिमा की रात को लगता है । सूर्य और चंद्रग्रहण एक वर्ष ग्रहणीय-वि० [सं०] ग्रहण करने योग्य 1 जी ग्रहण किया जा सके। में कम से कम दो बार और अधिक से अधिमा सात बार ग्रहदशा-संशा सौ. [सं०] १. गोचर ग्रहों की स्थिति । २. वहीं लगते हैं । पर साधारणतः एक वर्ष में तोन या चारही ग्रहण की स्थिति के अनुसार पिसी मनुष्य की भली बुरी अवस्था । लगते हैं और सात ग्रहण बहुत ही कम होते हैं। प्रायः एका ३. अभाग्य । कमवन्ती। दुरवस्था। समय में ग्रहण पृथ्वी के किसी विशिष्ट भाग में ही दिखाई कि०-०-पाना।-छाना ।-चीतना। पड़ता है, समस्त भूमंडल पर नहीं । ग्रहण में कभी तो सूर्य या ग्रहदाय-संा पुं० [सं०] ग्रहों की स्थिति के आधार पर फिमो चंद्र ग्रादि का कुछ अंश ही प्रावृत होता है और कभी पूरा जातक की आयु का निर्धारण फिी . मंडल । जिस ग्रहण में पूरा मंडल आवृत हो जाय, उसे ग्रहदायु-संशा जी० [सं०] जन्म समय के ग्रहों की स्थिति के अनुसार . सर्वग्रास या खग्रास कहते हैं। फलित ज्योतिष में भिन्न निन्न किसी जातक की आयु । उन्न। अवस्थानों में ग्रहण लगने से भिन्न भिन्न फल आदि भी माने ग्रहदृष्टि संश जी [भ] ग्रहों की दृष्टि दिग्रह'-१ का विशेष(क)। जाते हैं । अवस्था या स्थितिभेद से ग्रहण दस प्रकार के माने ग्रहदेवता-संश' [] यह देवता जो किसी विशेष ग्रह का गए हैं-सव्य, अपसव्य, लेह, असन, निरोध, अवमई, मारोह, अधिष्ठाता होता हे [फो। आघात मध्मतम और तमोत्य । इसी प्रकार ग्रहण का ग्रहदोष संक्षा १० [सं० मा विशेष को अशुभ या अस्टिटकारक . । मोक्ष भी दस प्रकार का माना गया है. हाद ( दक्षिण दृष्टि (फो०] । और वाम दो प्रकार के), कुक्षिभेद (दक्षिण और पाम दो प्रकार के), वायुभेद (दक्षिण और वाम दो प्रकारक), ग्रहद्रम----मा ० [सं०] नामाड़ा सींगो। संच्छन, जरण, मध्यविदारण और अंतथिदारण। हिंदू ग्रहन- संसा[सं० ग्रहण]यीकार । अंगीकरण । उ.-जे बुद्धिमंत ग्रहण लगने से कुछ पहर पूर्व और कुछ पहर उपरांत उसको है, तेई ग्रहन करि राक।-पोद्दार अभि० ०, पृ. ५२०। । छाया मानते हैं घोर छायाकाल में अन जल ग्रहण नहीं ग्रह पानिगम-संध पुं० [सं० पाणिग्रहण दे० 'पाणिग्रहण'। करते । सूर्य और चंद्रमा के अतिरिपत दुसरे ग्रहों को भी उ.--तुम तोमेत नरिंद ग्रहमपानिग मंडि कर।-पृ० रा. ग्रहण लगता है, पर उसका इस पृथिवी के निवासियों से कोई ११६७०। संबंध नहीं है। बिना किसी प्रावरण के सूर्यग्रहण को नहीं ग्रहनायक-संश पुं० [सं०] १. सूर्य । २. शनि (फो०] | देखना चाहिए क्योंकि इससे दृष्टिविकार होता है। ग्रनाश-संश० [सं०] रातिवन नाम का पेड़। क्रि० प्र०-लगना ।---- छूटना। ग्रहनाशन--संक्षा पुं० [सं०] ग्रहनाश वृक्ष (को०] । २.पकड़ने, लेने या हस्तगत करने की प्रिया । २. स्वीकार ग्रहनिकावि० [सं० ग्रहण] ग्रहणोय । ग्राल । उ०-द्वापरे .. मंजुरी । ४. अर्थ । तात्पर्य । मतराब। ५. मापन । उल्लेख । पिति वंशस्य । मालिघुगे सूद ग्रहनिका।-पृ० रा०,२४०४३०१ : (को०) । ६. धारण। पहनना (को०)। ७. अधिकार गाना र ग्रहनिग्रह-संशपुं० [सं०] पुरस्कार और दंड 10 . करना । मनसा ग्रहण पारना(को०)। ८. ध्वनि ग्रहण (को०)। ग्रहनेमा पु०म०] याकामा (डि.)। ६. हाथ (को०)। १०. ज्ञानेंद्रिय (को०)। ११. कंदो (को०)। ग्रहनेमि--संघालो. [सं०] १. चंद्रमा के मार्ग का वह भाग जो मूल । १२. पाणिग्रहण । विवाह (को०) । १३. कंद करना (को०)। और मृगशिरा नक्षयों के बीच में पड़ता है। २. चंद्रमा । १४. क्रय । खरीद (को०)। १५. चयन । चुनना (को०)। १६. ३. आकाश (डि०)। आकर्षण (को०)। १७. सेवा (को०)। १८. प्रशंशापूर्ण उल्लेख समादर (को०) १६. संवोधन (फो। ग्रहपति- संभा पु० [सं०] १.. सूर्य । २. शनि । ३. पाक का पेड़। . ग्रहणक--वि० [मं०] ग्रहण करनेवाला (को॰] । ग्रहपीड़न-संदा पुं० [सं० ग्रहपीड़न] ग्रहों की स्थिति से उत्पन्न . ग्रहणांत--संश्था पुं० [सं० ग्रहणान्त] अध्ययन की समाप्ति (को०)। होनेवाली पीड़ा को। ग्रहणि संज्ञा ली [सं०] दे० 'ग्रहणीं। . गृहपोड़ा-संगाली [सं० ग्रहपीडा.] ३० 'ग्रहपीड़न' (को०] | .: . ग्रहणी'--संघा सी० [सं०] १. सुध त के अनुसार उदर में पपयाशय ग्रहपुप-संवा पुं० [सं०] सूर्य। और प्रामाशय के बीच की एक नाड़ी जो अग्नि या पित्त का ग्रहभक्ति-संक्षा नी० [सं०] अधिष्ठाता ग्रहों के अनुसार देशा प्रधान प्राधार है । २. इस नाड़ी के दूपित होने से उत्पन्न आदि का विभाजन [को०] । एक प्रकार का रोग जिसमें खाया हुया पदार्थ पचत्ता नहीं महभीतिजित--संध पुं० [सं०] चीड़ नाम का गंधद्रम। और ज्यों का त्यों दस्त की राह से निकल जाता है। वि० ग्रहभोजन--संशा पुं० [सं०] ग्रहों को दिया जानेवाला भोग [को०] .. -दे० 'संग्रहणी' । यो०----ग्रहणीहर-लौंग । ग्रहमंडल-संसा पुं० [सं० ग्रहमएडल] [संज्ञा स्त्री० ग्रहमंडली] ग्रहणी@ संशा स्त्री० [सं० ग्रहण] ग्रहण करने की निया। ग्रहों का समूह फिो०] ..... . ग्रहण । उ०-ग्रहणो मैं सिवनम सहणी में अहीस -- ग्रहमद-~-tan . [सं०] दे० 'यह पद्ध' (को . रा० रू०, पृ०६७1 ग्रहमन-संज्ञा पुं० [सं०] वर और कन्गा के ग्रहों में स्वामियों की...