पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/२९३

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प्रहमैत्री: ... १३७०. ग्राम - मित्रता या अनुकुलता, जिसका विचार विवाह के समय ग्रहाचार्य-संशा गुं० [सं०] दे॰ 'ग्रहवित्र'। . . .: होता है। ग्रहाधार-संद्धा पुं० [म.] अद नक्षत्र ! अवा। ग्रहमंत्री-संवा बी० [सं०] दे० 'ग्रहमैत्र' । ग्रहाधीन-वि० [२०] ग्रहों से प्रभावित । ग्रहों के अधीन दिन] । ग्रह्मज्ञ-संज्ञा पुं॰ [२०] फलित ज्योतिष और पुराणों के अनुसार ग्रहाधीश-संशा पुं० [सं०] सूर्य (को०)। . ग्रहों की उग्रता या कोप संबंधी दोषों को दूर करने के लिये ग्रहामय-संद्धा पुं० [सं०] १.नृगी। मूछी । २. प्रेतबाधा । भूतावेश ... एक प्रकार का पूजन या यज्ञ। को । + ग्रहयाग- संज्ञा पुं॰ [सं०] दे॰ 'ब्रहृयज्ञ'को । ग्रहालुचन-संज्ञा पुं० [सं० ग्रहालुञ्चन] शिकार पर झपटकर उसे - ग्रहयुति-संशा बी० [सं०] एक राशि के एक ही अंश पर दो ग्रहों का चीर फाड़ डालना। .. .एकत्र होना। . ग्रहावमर्दन---संशा पुं० [सं०] १.राहु । २. ब्रहयुद्ध।

ग्रहयुद्ध-संवा पुं० [सं०] सूर्यसिद्धांत के अनुसार बुध, बृहस्पति, शुक्र,

ग्रहावर्त-संज्ञा पुं० [सं०] जन्मपत्री [को०] । शनि या मंगल में से किसी एक ग्रह का चंद्रमा के साथ ग्रहाशी-संज्ञा पुं० [सं० ग्रहाशिन् ] ग्रहनाश वृक्ष को। अथवा उक्त ग्रहों में से किसी दो ग्रहों का एक साथ एक ग्रहाश्रय-संशा पुं० [सं०] दे० 'महाधार'। राशि के एक अंग पर इस प्रकार एकत्र होना कि उस ग्रह ग्रहाद्वय-संघा पुं० [सं०] 'भूतांकुश नामक वृक्ष। पर ग्रहण लगा हुया जान पड़े। फलित ज्योतिप के अनुसार ग्रहिल-वि० [सं०] १. ग्रहण करनेवाला । २.हठी । दुराग्रही। ३. .... इसका फल भयंकर होता है। प्रतवाधित [को०] । ग्रहीत-वि० [म गृहीत] दे० 'गृहीत'। - ग्रहयुद्धभ-संज्ञा पुं॰ [सं०] वह नक्षत्र जिसपर कोई दो ग्रह एक साथ . एकत्र हो। ग्रहीतव्य-ज्ञा पुं॰ [सं०] १.ग्रहण करने योग्य । बाह्य । २. लेने ब्रयोग-संवा पुं० [२०] 'नयुति' । या उईलने योग्य (को०)। ३. बोध्य । ज्ञेय ! जानने, सीखने ग्रहराज-संग्मा पुं० [सं०] १ सूर्य । २. चंद्रमा । ३. बृहस्पति । या समझने योग्य (को०)। ...ग्रहवर्प-संया पुं० [सं०] ब्रहों की गति के अनुसार प्रचलित वर्ष फोगा ग्रहीता-वि० [मं० ग्रहो] [वि० सी० ग्रहीनी] १.लेनेवाला । ग्रहण . ग्रहविचारी-संज्ञा पुं० [सं० ग्रहविचारिन् ग्रहों पर विचार करने- करनेवाला । उ० दाता और ग्रहीता दोऊ । दोहुन सम ... बाला । ग्रहचिंतक किो। दिगंत नहि कोक ।- रघुराज (शब्द०)। २. निरीक्षणका ग्रहविप्र--संञ्चा पुं० [सं०] बंगाल और दक्षिण में होनेवाले एक प्रकार (को०) । ३. ऋणी । कर्ज लेनेवाला (को०)। ४. बरीदनवाला। केता (को०) 1 ५ पकड़नेवाला (को०)। -... के ब्राह्मण जो कुछ विशिष्ट क्रियाओं से ग्रहों के शुभाशुभ फल . बतलाते हैं। ' ग्रहीस -संशा पुं० [सं० ग्रह+ईश ] सूर्य । उ०-ग्रहत दीठि ना पर। दुसरीस धाइयो !-सुजान०, पृ०४१ । ग्रहवेध- संज्ञा पुं० [सं०] ग्रह की स्थिति आदि का जानना। ग्रहेश संज्ञा पुं० [सं०] सूर्य का .. ग्रहशा त-संगा की० [सं० ग्रहशान्ति ] अशुभ ग्रहों की निवृत्ति के लिये । - जप, यन आदि करना [को॰] । ग्रहोपराग -संज्ञा पुं० [] ग्रहों का ग्रहण । - ग्रहगाटक-संशा पुं० [सं० ग्रह नाटक ] बृहत्संहिता के अनुसार ग्रह्य-संया पुं० [सं०] एक प्रकार का यज्ञपात्र । ग्रहों का एक प्रकार का योग जिसके प्रवस्थानुसार शन और ग्राडाल-वि० [अ० पाठपर; उडीलचे कद का। वहत बडाया - अशुभ फल होते हैं। ऊँचा । जैसे,- ग्रांडोल हाथी, प्रांडील जवान । ग्रहसंगम-संद्धा पुं० [सं० ग्रहसङ्गम] अनेक ग्रहों का एकत्र होना ग्राम'- संचा पुं० [सं०] १ छोटी वस्ती । गांव। २.मनुप्पों के रहने (को०] का स्थान | वस्ती । पावादी। जनपद । ३. समूह । ढेर । ग्रहसमागम-संशा पुं० [सं०] चंद्रमा के साथ मंगल, बुध ग्रादि ग्रहीं उ.-सिगरे. राज समाज के कहे गाय गुण ग्राम । देश सुभाव का योग। प्रभाव अरू कुल वल विक्रय नाम ।-केशव (शब्द॰) । . ग्रहसाला-वि० [सं० ग्रह (=ग्राहो+सालना] ग्राह को सालनेवाला विशेष-इस अर्थ में यह पाब्द कयल यौगिक शब्दों के अंत से या नाश करनेवाला । उ०-गोवर्धन श्री गदाधर; गजतारन आता है । जैसे,—गुणग्राम । - ब्रह्माल !-~-दरिया बा०, पृ० १६ । ४.शिव । ५. जाति (को०)। ६. क्रम से सात स्वरों का समूह । ग्रहस्वर संडा पुं० [सं०] किती तग में यह वर जिससे वह राग सप्तक (संगीत)। . प्रारंभ होता है-(संगीत)। विशेष-संगीत में सुभीत के लिये पडल, मध्यम और गांधार महाकु-संशा खो. [हिं० ग्रह+या (प्रत्य॰)] नहिणी।। नामक तीन ग्राम निश्चित कर लिए गए हैं, जिन्हें क्रमशः ग्रहागम-संरा पुं० [१०] प्रेतावेश । प्रेतबाधा को । नंद्यावत', सुभद्र योर जीनत भी कहते हैं और जिनके देवता ग्रहानेसर-संच - [सं०] चंद्रमा [फोoj! ... एक कम से ब्रह्मा, विष्य पोर शिव है। प्रत्येक ग्राम में ।