पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३०

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क्षेमवती क्षेमवती-संज्ञा स्त्री० [सं०] एक प्राचीन नगरी का नाम जिसका वर्णन क्षोणी संथा श्री० [सं०] पृथ्वी । जमीन । उँ--क्षोण पर जो निज .. बौद्ध ग्रंथों में पाया है और जो कदाचित् वर्तमान गोरखपुर : छाप छोड़ते चलते। पदपद्यों में मंजीर मराल मचलते ।- जिले का क्षेमराजपुर है। . . . साकेत, पृ०२०४ ।. . क्षेमा-संशा सौ[सं०] १. कात्यायिनी का एक नाम । २. एक क्षोणीपत्ति-संश पुं० [सं०] राजा । नरेश। उ०-क्षोणी में के अप्सरा का नाम । '. . क्षोणीपति छाज जिन्हें छत्र छाया, क्षोणी क्षोणी छाये क्षिति क्षेमासन-संज्ञा पुं० [सं०] तंत्र के अनुसार एक प्रकार का मासन, आये निमिराज के-तुलसी (शब्द०)। . .... . .. . जिसमें दाहिने हाथ पर दाहिना पैर रखकर बैठते हैं। इस क्षोद-संवा पुं० [सं०] १. चूर्ण । बुकनी। सफूफ 1:२. चूर्ण करने या प्रासन से उपासना करने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है। पीसने का काम । ३. जल । पानी। ४. सिल या पत्थर जिसपर धोमी-वि० [सं० क्षेमिन्] १. क्षेम से युक्त । सुरक्षित । निरापद। चूर्ण' पीसा जाय (को०) । .. . ... २. क्षेम कुशल करनेवाला । मंगलकारक। शुभदायक । उ०- क्षोदक्षाम-वि० [सं०] परीक्षा में टिकने या साहस न छोड़नेवाला - स तस करि हरि पूजन प्रेमी । लियो अंक धरि हरि पद पक्का । ठोस (को०] । क्षेमी ।-रघुराज (शब्द॰) । ३. कुशल चाहनेवाला । क्षोदित'-वि० [सं०] पीसा हुमा । चूणित (को०] . . . . भलाई चाहनेवाला 130-ज्ञानविराग विवेक तंप योग याग क्षोदित-संदा पुं०१. चूर्ण । २. धूल । ३. आटा (को०)। .. ' जप नेमा प्रम अधिक सब तें है दायक क्षेमिन क्षेम।-- क्षोदिमा--संत्रा सी० [सं० क्षोदिमन् 1१. तुच्छता । लघुवा । न्यूनता - रघुराज (शब्द०)। .. . २. सूक्ष्मता। वारीकी (को०] । . क्षेमेंद्र-संक्षा पु०सं० क्षेमेन्द्र काश्मीर का एक प्रसिद्ध संस्कृत क्षोभ-संवा पुं० [सं०] [वि० क्षुब्ध, कुभिता १. विचलता । ... कवि, 'ग्रंथकार और इतिहासकार । यह हिंदू होने पर भी बौद्धं .., . खलबली । २. व्याकुलता। घबराहट । ३. भय । डर । ४. धर्म पर बहुत अनुराग रखता था। इसने कई शैव, वैष्णव रंज । शोक । ५. क्रोध । : क्षोभक-संवा पुं० [सं०] कामाख्या का एक पहाड़ । और बौद्ध ग्रंथों की समालोचना की थी। इसका पूरा नाम क्षोभक- .. “क्षोभक-वि० [सं०] दे० 'क्षोभण"। क्षेमेंद्र व्यास दास था। ... . विशेष-भिन्न भिन्न समयों और स्थानों में क्षेमेंद्र नाम के और क्षोभकृत-संघा पुं० [सं०] साठ संवत्सरों में से छत्तीसवाँ संवत्सर। भी कई कवि तथा प्रकार हो गए हैं । क्षोभण'--वि० [सं०] १.क्षोभित करनेवाला । क्षोभक । ोम्य-संशा पुं० [सं०] शिव [को०] । क्षोभण-संचा पुं० [सं०] १. फाम के पाँच वणों में से एक । २. छोम्य-वि०१. मंगलदायक । हितकर । २. भाग्यवान् । किस्मत- . विष्ण । ३. शिव । वर । ३. स्वास्थवर्धक की क्षोभना-कि० अ० [सं० क्षोभ] क्षुब्ध होना। .. . ... .:: क्षोभिणी संवा सौ [सं०] संगीत में निपाद स्वर की दो श्रुतियों म्या-संचा खौ० [सं०] दुर्गा का ... .. . . . में से अंतिम श्रुति । क्षेय-वि० [सं०] क्षय किए जाने योग्य। . .. क्षौष्य-संवा पुं० [सं०] क्षीण का भाव । क्षीणता । लय।। क्षोभित -वि० [सं० क्षोभ] १. घबरायां हुआ । व्याकुल । २. क्षेत्र-संथा पुं० [सं०] क्षेत्रसमूह । खेतों का समूह । २. खेत। . ___ 'विचलित । चलायमान । उ०-एक दिवस प्रभु ध्यान लगाय, ..' क्षेत्रज्ञ-संथा पुं० [सं०] अध्यात्मिकता । प्रात्मज्ञान (को०] . क्षोभित चित्त प्रसाद बनाय ।-कवीर सा० पृ० ४०५ । ३. .. डरा हुआ । भयभीत । ४. क्रुद्ध ।। क्षप्र-संचा पुं० [सं०] १. त्वरा । शीघ्रता । २. व्याकरण में एक क्षोभी वि० [सं० क्षोभिन्] उद्वेगशील । व्याकुल । 'चंचल । उ०- प्रकार की स्वरसंधि [को०] 1 . ..... . . - हरि सुमिरन कीजै जिमि लोभी। निस दिन रहे द्रव्य हित क्षैरेय-वि० [सं०] [वि०बी०क्षरेयी] : दूध का बना हुमा । दूध .. . .. युक्त । किो०] "क्षोभी।-रघुनाथ (शब्द०)।' .. . . ... ........ . . ..क्षोम , .... क्षोड़-संथा पुं० [सं० क्षोड] हाथी बांधने का टूटा घालान । एमालान । क्षोहरिण-संवा श्री० [सं० अक्षौहिणी] दे० 'अक्षौहिणी'। उ० क्षोण-संत्रा पुं० [सं०] १. वो एक स्थान से दूसरे स्थान पर न जा - तैतीस क्षोहणि दल तिन जीता। जमन केर सम्हर पर ":... सके ।२. एक प्रकार की वीणा । .::: ... . .. बीता -कवीर सा०, पृ० ४६ । -'.. . क्षोणि-संशा को सं०] १. पृथ्वी.। . . . . . . . .. क्षणि-संवा ० [सं० दे० 'क्षोरी। .. .. - यौ०-क्षौरिगदेव ब्राह्मण । भूसुर । क्षोणिप। क्षोणिपति। तो शोरगी-संज्ञा स्त्री० [सं०] १. पृथिवी। ... क्षोणिपाल राजा । भूपाल । क्षेणियह =वृक्ष । ... यौ०-क्षीणोप्राचीर= समुद्र । क्षीणोपति = भूपति । क्षोणीषर = ..::. २.एक की संख्या। पर्वत । क्षोणिप-संवा पुं० [सं०] राजा । उ०-क्षोणी में छाँडयो छप्यो । .. २. एक की संख्या । .होशिप की छौना छोटो क्षोणिप क्षपण बांको विरद बहतुक्षौत्र-संचा पुं० [सं०] रे, चाकू मादि की धार तेज करने का यंत्र। .. हौं । तुलसी (शब्द०)।. ..:...