पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३००

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घंटाताड १३७७ ऐसी बड़ी धर्मघड़ी लगी हो जो चारों ओर से दूर तक दिखाई घटी-वि० [सं० धएिटन्] १. जिसमें घंटियाँ लगी हो। २. घंटे की . देता हो और जिसका घंटा दूर तक सुनाई देता हो। भौति बजनेवाला । घंटाताड---वि० [सं० घण्टाताड ] घंटा बजानेवाला । घंटावादक। घंटी-संज्ञा पुं० शिव का एक नाम को०] । घांटिक को। घंटील संज्ञा स्त्री० [देश॰] एक घास जो चारे के काम में पाती है . घंटानाद--संज्ञा पुं० [सं० घण्टानाद] १. घंटे की ध्वनि । २. कुबेर मौर जमीन पर दूर तक फैलती है। गधे इसे बहुत खाते हैं। के एक मंत्री का नाम कोग। यह पंजाब के मुजफ्फर गड़, झंग आदि स्थानों में बहुत होती है। घंटापथ-संक्षा पुं० [सं० घण्टापथ] १. वह सड़क जो १० धनुष चौड़ी घंटु-संया पुं० [सं० घण्टु] १. ताप । प्रकाश । ज्योति । २. हाथी की हो। नगर की मुख्य सड़क । राजमार्ग । २. भारवि के राजावट में उसकी छाती पर बांधी जानेवाली घुघरूदार किरातार्जुनीय महाकाव्य पर मल्लिनाय की टीका का नाम पट्टी । ३. गजघंटा (फो०] । घंड-संज्ञा पुं० [सं० घण्ड] मधुमक्खी [को०)। [को०। घंडी संज्ञा स्त्री० [हिं० घंटी] घाँटी। गले का कौया । उ०-धंडी घंटापाटलि-संया पुं० [सं० घण्टापाटलि] मुष्कक वृक्ष फो०] । पर्या---गोलीढ । झाटल । मोक्ष । मुष्कक 1 काष्ठपाटलि। तले बंकतालि बनाई । चंट तले कछु स्वाद न पाई।-प्राण, घंटाबीज--संज्ञा पुं० सं० घण्टाबीज जमालगोटे का पौधा और पृ० ७५। उसका बीज [को० । घंगोला--संज्ञा पुं॰ [देश॰] कुमुद । कोई। घंटारप-संशा पुं० [सं० घण्टारव] १. घंटे की ध्वनि। २. सनई घघरा-संघा पुं० [हिं० घांघरा] दे० 'धरा'। उ०-स्त्रियों का का पौधा । शरणपुष्पिका को। पहिरावा अोढ़ना, घंघरा या छोटेपन में सुयना है। भारतेंदु घंटारवा-संक्षा की० [सं० घण्टारवा] सनई । शारापुष्पिका को। ग्रं॰, भा० ३, पृ०६।। घंटाबादक-वि० [सं० घण्टावादक] दे० 'घंटाताड' । घंधराघोर--संज्ञा पुं० [हिं० घघरा+घोर] छुआछूत के विचार का घंटाशब्द-संज्ञा पुं० [सं० घण्टाशब्द] १. घंटे की ध्वनि । २. कांस्य। अभाव । भ्रष्टाचार । घालमेल। कांसा (को०)। घंधरी-संज्ञा स्त्री० [हिं० घाँघरा] दे० 'घघरी'। उ०--धंधरी लाल घंटास्वन--संज्ञा पुं॰ [सं० घण्टास्वन] दे॰ 'घंटारव'। जरकसी सारी सोंधे भीनी चोली । -भारतेंदु ग्रं०, भा०२, घंटिक-संसा पुं० [सं० घण्टिक] नक । मगर । घड़ियाल (को०] । पृ० ४४६ । घटिका-संज्ञा स्रो० [सं० घरिटका] १. बहुत छोटा घंटा। २. घंटी।। २.टी। घंघोरना--क्रि० स० [हिं० घनघोरना] दे॰ 'घोलना'। .. घाँटी । ललरी। ३. घुघुरू। घघोलना-क्रि० स० [हिं० घन-घोलना] १. हिलाकर घोलना ।। पानी को हिलाकर उसमें कुछ मिलाना। यो०-क्षुद्रघंटिका। छुद्रघटिका । संयो० कि०- देना। घंटिका-संधा सी० [सं० घण्टिका छोटे छोटे लंबे घड़े जो रहट में लगे रहते हैं । घरिया। उ०-श्रवणकूप की रहँट घटिका २. पानी को हिलाकर मैला करना । .. संयो० कि० - डालना: राजत सुभग समाज । -सूर (शब्द०)। घंटियार[--संचा पुं० [हि घांटी] पशुओं के गले का एक रोग जिसमें घंटी --संज्ञा स्त्री० [सं० घण्टिका] पीतल या फूल की छोटी लोटिया उनके गले में कोर्ट से पड़ जाते है और वे चारा नहीं निगल घटी-संक्षा प्रो. [म० घण्टा या घरिटका] १. बहुत छोटा घंटा । सकते। विशेष—यह पौधे बरतन के आकार का होता है पोर जिसके घंसना-क्रि० (हिं. घिसना] दे० 'घिसना'। अंदर लंगर बंधा रहता है। घंटी कई कामों के लिये बजाई घडलिया@+ संज्ञा लीहिला छोटा घडा। गागर । उ0- जाती है। लोग प्रायः पूजा के समय घंटी बजाते हैं । अब . .. काच माटी के घइलिया भरि ले पनिहार ।--धरम०, पृ००। नौकरों को बुलाने तथा लोगों को सावधान करने के लिये भी घइली - संज्ञा स्त्री० [हिं० छला] गरी । छोटा घड़ा। ... घंटी बजाई जाती है । .: . .. घईल.'-संवा सी० म० गम्भीर] १. गंभीर भवर । पानी का २. घंटी बजने का शब्द । . . . . .: चक्कर । उ०-पाये सदा सुधारि गोसाई जन ते विगरि गइ क्रि० प्र०-होना। है। थके वचन पैरत सनेह सरि परे मानो घोर घई है।- ३. घुघरू । चौरासी । ३. गले की नाल का वह भाग जो अधिक . तुलसी (शब्द॰) । २. यूनी। टेक। ३. वह दरार जो . उभड़ा रहता है। गले की हड्डी की वह गुरिया जो अधिक जोलाहों के तूर में १३.अंगुल गहरी और इतनी ही चौड़ी और निकली रहती है । ५. गले के अंदर मांस की वह छोटी पिडी गज भर लंबी खुदी होती है। जो जीभ की जड़ के पास लटकती रहती है। कोमा। घई -वि० जितको थाह न लग सके। अत्यंत गंभीर । बहुत मुहा०-घंटी उठाना या बैठाना--गले की घंटी की सूजन को गहरा । अथाह । उ०-प्रीति प्रतीत रीति शोभा सरि थाहत . .. दवाकर मिटाना। .. जहें तह घई।-तुलसी (शब्द॰) ।