पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३०२

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घटना घटाटोप.. भटइ अति मोहीं |---तुलसी (शब्द०) । ३. उपयोग में माना। काम पाना । उ० - लाभ कहा मानुप तन पाए । काम बचन - मन सपनेहु कबहुक घटत न काज पराए।-तुलसी (शब्द०)। घटना ---क्रि० स० [ हि० कट ना] कम होना। छोटा होना। क्षीण होना । जैसे,-.-.-फूए' का पानी घट रहा है। उ०-श्रवण घटहु पुनि दृग घटहु, घटी सकल बल देह । इते घटे घटिहै कहा, जो न घटै हरि नेह ।-तुलसी (शब्द०)। घटना-क्रि० स० [सं० घटन] १. बनाना । रचना । २. पूरा करना । उ० -- सखा सोच त्यागहु बल मोरें। सब विधि घटव काज मैं तोरें। -मानस, ४।६। घटना—संधा पुं० [सं०१. कोई बात जो हो जाय। वाकया। हादसा । वारदात । जैसे,—यहाँ ऐसी बड़ी घटना कभी नहीं हुई थी। उ०---अघट घटना सुघट, सुघट विघटन विकट, भूमि पाताल जल गगन गंता-तुलसी (शब्द०)। यौ०-~घटनाक्रम । घटनाचक्र = घटनायों की परंपरा या उनका सिलसिला। घटनावली-घटनामों का समह। घटनास्थलह स्थान जहाँ घटना घटित हुई हो। २. योजना। ३. समूहीकरण ४. गजघटा । गजयूथ । घटनाई। - संघा सी० [हिं० घड़नई ] दे० 'धड़नई। घटपल्लव--संज्ञा पुं० सं०] वास्तु विद्या (इमारत) में वह खंभा जिसका सिरा घड़े और पल्लब के साकार का बना हो। घटपर्यसन-संज्ञा पुं० [सं०] प्रायश्चित्त न करने और जाति में संमिलित न होनेवाले पतित व्यक्ति का प्रतिकर्म जो उसको जीवितावस्था में ही उसके परिजनों द्वारा संपन्न होता है .. (को०] । घटबढ़'--संक्षा स्त्री० [हिं० घटना-+-बढ़ना ] १. कमीवेशी । न्यूनाधिकता । २. नृत्य की एक क्रिया । घट २६२- वि० कमबेश । अपेक्षित से अधिक या कम। घटयोनि-संज्ञा पुं० [सं०] अगस्त्य मुनि । घटभेदनक-संज्ञा पुं० [सं०] वर्तन बनाने का एक उपकरण (को०] । घटराशि-संश पुं० [सं.] एक द्रोण का मान लगभग सोलह सेर का होता है। घटवाई-संधा पुं० [हिं० घाट+वाई ] १. घाटयाला । घाट का कर लेनेवाला । २. बिना कर लिए या तलाशी लिए न जाने देनेवाला। रोकनेवाला। उ०-यावन जान न पावत कोऊ तुम मग में घटवाई । सूर श्याम हमको विरमावत , खीभत बहिनी माई। -सूर (शब्द०)। घटवाई-संज्ञा स्त्री० यह कर या महसूल जो घाट का अधिकारी - यात्रियों से घाट पर उतरने चढ़ने के बदले लेता है। घटवाई-संज्ञा स्त्री० [हिं० घट वाना ] कम करवाई। कम • करवाने की क्रिया या पारिश्रमिक । घटवादन-संज्ञा पुं० [सं०] संगीत में मिट्टी के घड़े को पौधा करके बजाने की क्रिया । घटवाना-क्रि० स० [हिं० घटाना का प्र० रूप ] घटाने का काम कराना । कम कराना । । घटवार--संघा पुं० [हिं० घाट-पाल या वाला] १. घाट का । महसूल लेनेवाला । उ०--ये घटवार घाट घट रोके यो धार बहाथ ।-तु रसी श०, पृ० ३०८ । २. मल्लाह । केवट । ३. घाट पर बैठपार दान लेनेवाला ब्राह्मण। पाटिया । ४. घाट का देयता। . पटवारिया-संधाधुं० [हिं० घाट--वाला ] दे० 'घटवालिया। घटवाल-संघा पुं० [हिं० घाट+पाल [ दे० 'घटवार'। . घटवालिया-संघा पुं० [हिं० घाट-+याला ) तीर्थस्थानों में नदी - या सरोवर के घाट पर बैठकर दान लेनेवाला-पंडा। तीर्थपंडा । घाटिया । घटवाह--संध पुं० [हिं० घाट+चाह (प्रत्य॰)] घाट का ठेनेदार। . घाटका कर वसुल करनेवाला ।। घटवाही--संज्ञा पुं० श्री [हिं० घाट-वाही] दे० 'घटवाई। घटसंभव-संश मुं० [सं० घटसम्मव ] अगस्त्य मुनि । घटस्थापन--संज्ञा पुं० [सं०] १.किसी मंगल कार्य या पूजन आदि के समय, विशेपतः नवरात्र में, घड़े में जल भरकर रखना जो कल्याणकारक समझा जाता है। २. नवरात्र का प्रारंभ या पहला दिन जिसमें पट की स्थापना होती है। घटहा-संशा पुं० [हिं० घाट+हा (प्रत्य०) १ घाट का ठेकेदार। २. वह नाव जो इस पार से उस पार जाती हो।। घटा-संशा सी० सं०] १. मेयों का घना समूह । उभड़े हुए बादलों का टेर । मेघमाला। कादंबिनी । ज०-त्यों पदमाकर बारहि बार सुवार बगारि घटा करती हो 1-पद्माकर ग्रं०, पृ० १५८ । क्रि० प्र०--उठना। ----उनवना । -उमड़ना । -घिरना । - छाना।--झूमना। २. समूह । झुड । उ०-रजनीचर मत्त गयंद घटा विध मृगराज के साज लर। पटै भट कोटि मही पटक गरज रघुवीर की सीह करें ।-तुलसी (शब्द०) ३. चेष्टा। . प्रयत्न । प्रयास (को०)। ४. सैनिक कार्य के लिये एकत्र हाथियों का झुंड (को०)। ५. सभा। गोष्ठी (को०)। घटाई-संशा यो [हिं० घटना- ई (प्रत्य॰)] १. हीनता । । अप्रतिष्ठा। येइज्जती। 30-भूप मन आई यह निपट घटाई होति भक्ति सरसाई नहीं जाने घटी प्रीति है।- प्रिया (शब्द०)। २. घटाने की क्रिया। .... . घटाकाश---संशश पुं० [सं०] ग्राकाश का उतना भाग जितना एक धड़े के अंदर ग्रा जाय । घड़े के अंदर की वाली जगह। उ०- देह को संयोग पाइ जीव ऐसो नाम भयो, घट के संयोग घटाकाश ज्यौं फहायौ है 1---सुदर मं०, भा॰ २, पृ० ६०६ । घटाग्र---संज्ञा पुं० [सं०] वास्तुस्तंभ का अष्टम भाग । वास्तु विद्या में .. खंभे के नौ विभागों में से पाठवा विभाग ।-वृहत् पृ० २३० । घटाटोप-संशा पुं० [सं०] १. बादलों की घटा जो चारों ओर से - घेरे हों । २. गाड़ी या बहली. को ठफ लेनेवाला पोहार । पालकी या पीनस का मोहार । किसी वस्तु को पूर्णतः ढक लेनेवाला कपड़ा। ३. वादलों की भांति चारों ओर से घेर । लेनेवाला दल वा समूह । उ.--घटाटोप करि चह दिसि ।