पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३०५

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१३८२ घन' । तोला, घड़ी माशा=कभी कुछ, कभी कुछ। एक क्षण में एक घड़ीसाजी-संज्ञा स्त्री० [हिं० घड़ी+फा० साजी] बड़ी की मरम्मत । वात, दूसरे क्षण में दूसरी बात । अस्विर वात या व्यवहार का कार्य या व्यवसाय । जैले- उनकी बात का क्या ठिकाना, घड़ी तोला, धड़ी माशा। घडवा-पंञ्चा पुं० [सं० कमए इल अथवा हि गेरता+(प्रा.) घड़ी गिनना=(१) किसी बात का बड़ी उत्सुकता के साथ गेरुवा] दे० 'गड़ वा' । ३० ---कच्ची माटी के घड़ वा हो पासरा देखना । प्रत्यंत उत्कंठित होकर प्रतीक्षा करना । (२) रसदन सान । - संतवाणी, भा॰ २, पृ. ३८ । मृत्यु का प्रातरा देखना । मरने के निकट होना। घड़ी में घड़ला -संज्ञा पुं० [हिं० घड़ा ऐला (प्रस)] ० 'बड़ोजा'। घड़ियाल है (१) जिदगी का कोई ठिकाना नहीं। न जाने उ.-एकै मिट्टी के घड़ा पड़ेला एक कोहरा सोना ।-कबीर कव काल पाए। (२) क्षण भर में न जाने क्या से होश ०, पृ०६२ । - . . जाता है । दशा पलटते देर नहीं लगती। घड़ोला- संज्ञा पुं० [हिं० घड़ा+ोला (प्रत्य॰)] छोटा घड़ा। झंझर । ... विशेप-बहुत वुड्डे आदमी के मग्ने पर उसे लोग घंटा बजाते घड़ौंची-सच्चा श्री० [हि घड़ा+ गोची (प्रत्य॰)] पानी से भरा हुए श्मशान पर ले जाते हैं, इसी से यह मुहावरा बना है।। - घड़ी देना-मुहुर्ता बतलाना । सायत बतलाना । उ० - भर गो घड़ा रखने की तिपाई या ऊँची जगह । लटका । पजहा। - चल गंग गति लेई । तेहि दिन कहाँ बड़ी को देई।—जायसी घड़ना क्रि० स० [सं० घटन दे० 'गड़ना'। उ०-मोर वितर ' (शब्द०)। घड़ी नर-थोड़ी देर । थोड़ा समय । जैसे- भरी मृदु मूरति का विरंचि या घाट घड़ी।-घनानंद, पृ० ४६४ । घड़ी भर ठहरो; हम पाए। घड़ी सायत पर होना = मरन के - निकट होना। घण'@f-संज्ञा पुं० [सं० चन] ३० 'वन' । उ०-जब ही बरसइ २ समय । काल । उ०—जिस बड़ी जो होना होता है, वह हो घण घणउ तबही कहइ प्रियाव । -ढोला०, दु० २७ । ही जाता है। ३. अवसर । उपयुक्त समय । जैसे,—जब पड़ो घण-वि० दे० 'धन' । उ-दादुर मोर टवक घण बोजलड़ो -.... ग्राएगी तव काम होते देर न लगेगी। ४. समयसूचक यंत्र । तरवारि।–ढोला०, दू०४८ । - जैसे,-क्लाक, टाइम पास, वाच बादि । घरण कठा --मंशा पुं० [देश॰] डिंगल के अनुसार एकलवैयाँ नामक ... यौ० - घडीसाज । धर्मघड़ी। धूपघड़ी। छंद का एक भेद । उ०-दूसरे एकल वैणा गीत को पगला - मुहा०-घड़ी कूकना-घड़ी की ताली ऐंना जिससे कमानी कस भी कहते हैं।- रघु०६०, पृ० १२६ । घणा-वि० [सं० घन ] दे० 'घना'। उ०—तिण पइ घोड़ा पति . जाये और झटके से पुरजे चलने लगे। घड़ी में चाभी देना। घणा बेच्या लाख लवंत । -डोला०, दू०८३।। . विशेष-प्राचीन काल में समय के विनाग जानने के लिये भिन्न घणोप्रर --संज्ञा पुं० [हिं० घन+कर] ह्योड़ाधारण करनेवाला। .... भिन्न युक्तियां काम में लाते थे। कही किसी पटल पर बने लोहार । उ०—घणीपर मारे तित ताल ज्यों कहै लोहारू ।- वृत्त की परिधि के विभाग करके और उमके केंद्र पर एक शंकु प्राग०, पृ० २८५। या सूई खड़ी कर के उसकी (धूप में पड़ी हुई ) छाया के घरपरी-वि० [हिं०] दे० 'बनेरी' । उ० वसत चणेरी बरतन द्वारा समय का पता लगाते थे। कहीं नांद में पानी भरकर योछा कहो गुरु क्या कीजै ।-रामानंद०, पृ० १४ । इसपर एक तैरता हुया कटोरा रखते थे। कटोरे की पेंदी में घता-संज्ञा पुं० [हिं० घात | १. घात । २. ढंग। 'महीन छेद होता था जिससे कम क्रम में पानी पाकर कटोरा घतरी-संवा पु० [देश॰] प्रभात काल । तड़का। भोरहरी। भरता या । जब नियत चिह्न पर पानी पा जाता था, तब पतिया'-संशा स्त्री० [हिं० घात ] दाँव । घात। 30-.-वन के कटोरा डूब जाता था। इस नाँद को धर्मघड़ी कहते थे । घटी घरही विरहीजन के रिपु बोलि उठे अपनी प्रतियाँ। -गंग. .. या घड़ी नाम इसी नांद का सूचक है। भारतवर्ष में इसका प्रे०, पृ०६६। व्यवहार अधिक होता था। घतियार . वि० [हिं० घात+इया (प्रत्य०)] घात करनेवाला ! - घड़ी-संज्ञा स्त्री० [सं० घट] घड़ा का स्त्रीलिंग और अल्पार्थक घोबा देनेवाला। __ रूप । छोटा पड़ा। घतियाना-क्रि० स० [हिं० घात+इयाना (प्रत्य०)] १ अपनी - घड़ीदिया-संज्ञा पुं० [हिं० घड़ी+दीमा दीपक ] वह घड़ा जो .. घात या दांव में लाना । मतलव पर चड़ाना । २. चुराना। . घर के किसी प्राणी के मरने पर घर में रखा जाता है और छिपाना। १०-१२ दिनों तक रहता है। घड़े के पदे में बहुत छोटा छेद घन-संज्ञा पुं० [सं०] १. मेघ। बादल । उ०--बरपा ऋनु पाई हरि कर दिया जाता है जिसमें से होकर बूद-बूद पानी टपकता न मिले माई। गगन गरजिघनदइ दामिनी दिखाई।--सूर० हैं और मुह पर एक दीपक जलाकर रख दिया जाता है । इसे १०। ३३१७ । २. लोहारों का बड़ा हयौड़ा जिसमे वे गरम घंट भी कहते हैं। . . लोहा पीटते हैं। उ०--चोट अनेक पर बन की सिर लोह क्रि० प्र०-वाचना। बध कछु पावक नाहीं ।-सुंदर ग्रं॰, भा॰ २, पृ०६००। घड़ीसाज-संज्ञा पुं० [हिं० घड़ी+फा० साज] घड़ी की मरम्मत क्रि० प्र०--चलाना। .:. करनेवाला। मो०-घन की त्रोटबड़ा भारी आघात ।