पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३०७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

धनसार घनद्र में १३२४ धनद्र म--संवा पुं० [सं०] विकटक का क्षप। जवासा। २. गोखरू घनमान-संशा पुं० [सं०] किसी पदार्थ की लंबाई, चौड़ाई और । __ मोटाई का संनिलित मान [को०)। धनधातमा स्त्री० [सं०] छिलके आदि के भीतर का रस । वसा। घनमल-संज्ञा पुं० [सं०] गणित में किसी घन (राशि) का मूल लसीका [को०)। अंक । जैसे,—२७ का घनमूल ३ होगा, क्योंकि ३ का धन ।

धनध्वनि--संज्ञा स्त्री० [सं०] १. वादलों की गरज । २. गंभीर और

२७ है। .... मंद्र आवाज। . . घनरव--संघा पुं० [सं०] दे० 'घननाद'1 घननाद-संवा पुं० [सं०] १. बादलों की गरज । २. रावण का पुत्र, घनरस-संहा पुं० [सं०] १. जल । पानी। २. कपर । ३. हाथी का मेघनाद । उ०-निसिचर कीस लराई बरनिसि विविध एक रोग जिसमें उसका खून बिगड़ जाता है, पैर के नाखून प्रकार । कुंभकरन घननाद कर बल पौरुप संघार।-मानस, गलने लगते हैं और पांव लंगड़ाने लगता है। इस रोग को ७ । ६७ । हाथियों का कोढ़ समझना चाहिए । ४. घना या गाढ़ा सत नाभि-सशा पुं० [सं०] बादलों का मुख्य अवयव । धूम कि०] । (को०)। ५. मोरट नाम का पौधा जिसका रस गाढ़ा होता है - धनपटल-संज्ञा पुं० [सं० घन-पटल+यावरण] मेघाडंबर । (को०)। ६. पीलुपी । . .बादलों का समूह या प्रावरण । १०-जथा नगन पनपटल घनरूपा–संधा जी० [सं०] जमाई हुई शर्करा । मिसरी [को०] । निहारी।झोपेउ भानु कहहि कुवित्रारी।--मानस १ । ११७ ।। घनवर-संशा पुं० [सं०] मुखाकृति । चेहरा (को॰] ।

घनपति--संश [ [सं०] इंद्र, जो मेघों के अधिपति कहे जाते हैं। घनवर्ग-संज्ञा पुं० [सं०] गणित में धन का बर्ग फिो]।

घनपत्र - सच्चा पुं० [सं०] पुनर्नवा । गदहपूरना [को०] । घनवर्म-संज्ञा पुं० [सं०] अाकाश । अंतरिक्ष (को०] । . धनपद-संशा पुं० [सं०] दे० 'घनमूल' (को०] । घनवर्धन-संचा पुं० [सं०] धातुओं को पीटकर बढ़ाने की क्रिया। घनपदवी-पंदा बी० [सं०] मैचों का मार्ग । अाकाश [को०) । घनवल्लिका-संवा मौ० [सं०] विद्य त् । बिजली [को०)। . घनपापंड--संश पुं० सं० धनपापण्ड] मयूर । मोर [को०] । घनवल्लो-शा खौ० [सं०] १. अमृतलवा नामक लता । २. विजली। - घनप्रिय-संवा मुं० [सं०] १. मोर। मयूर । २. एक घास जिसकी क्षणप्रभा । विद्युत् [को०] 1 पत्तियां डंठल की मोर पतली और ऊपर की और चौड़ी होती धनवास--मंधा पुं० [सं०' कुष्मांड । कोहड़ा (को०)। हैं। यह पहाड़ों पर मिलती है और प्रौपध के काम में पाती घनवाह-संवा पुं० [सं०] वायु । पवन । है। मोरशिखा। धनवाहन-संधा पुं० [सं०] १. इंद्र, जिसका वाहन मेध है। २. शिव, - घनफल-संज्ञा पुं० [सं०] १. लंबाई, चौड़ाई और मोटाई (गहराई जिनका वाहन धन की तरह श्वेत है। .'. या ऊचाई) तीनों का गुणनफल । २. वह गुणनफल जो घनवाही-संशा ग्री० [हिं० घन-वाही (प्रत्य॰)] १. लोहे का ..किसी संख्या को उसी संख्या से दो बार गुणा करने से प्राप्त घन से कूटने का काम । २. वह गड्ढा या स्थान जहाँ धन हो । दे० 'घन' । ३. ३० 'धनद्रुम' । चलानेवाला खड़ा होता है। घनबहेड़ा--संज्ञा पुं॰ [हिं० घन+वहेड़ा] अमलतास । घनवीथि-संवा सी० [सं०] बादलों का मार्ग प्राकाश (को०] । ..घनबा-@-संज्ञा पुं० [हिं० घन---वाण] एक प्रकार का वाण । घनश्याम'-वि०स बादलों के समान काला। ३०--चले चंदवान, धनवान और कुहकबान चलत कमान घूम घनश्याम'-संज्ञा पुं० [सं०] १. काला बादल। २. श्रीकए। ३. ' पासमान वे रहो।-भूपण (शब्द०)। ... रामचंद्र जी। उ०-शोक की आग लगी परिपूरन प्राइ गए ... धनवास -संशा पुं० [सं० घन+हि वास (= निवास)] पाकाश। घनश्याम विहाने ।-केशव (शब्द०)। उ०--गंबर पस्कर नभ विथत अंतरिच्छ घनवास ।-नंद० घनश्रेणी-संवा श्री. [सं०] मेघमाला (को०। .. ग्रं. पृ० १०। घनसमै -संशा पुं० [सं० घनसमय] वर्षाऋतु । बरसात । उ०-- पनवेल -वि० [हिं० घन+बेल! जिसमें बेलबूटे बने हो । बेलबूटे- धनसमै मानहु घुमरि करि घनपटल गलगाजहीं।-भूषण दार । उ०- कह कह कुचन पर दरको अंगिया पनवेलि। ग्रं॰, पृ० १२ । .. -सूर (शब्द०)। घनसांवरो--वि० [हिं०] मेघ की तरह काला । उ० -कमलनयन ' घनवेली - संघा चौ० [सं० घन-+हि बेल] एक प्रकार का बेला। । घनसावरों वपु वाहु बिसाल ।-छीत, पृ०४। -. . उ-बहुत फूली फूली घनवेली । केवड़ा चंपा कुंद चमेली।- घनसांवल ---वि० [हिं० दे० 'घनसावरों'। उ०--श्री रघाति जायसी (शब्द०)। जदुपति घनसोवल फुनि जन सरन परे ।-छोत०, पृ० १२। . धनबोध-वि० [सं० घन+बोष] १. अत्यंत ज्ञानवान् । परम ज्ञानी। घनसार-संशा पुं० [सं०] १. जल । पानी। २. कपूर । उ०-गारि २. जिसको जान सकना अत्यंत दुरूह हो । उ०—कालरूप बल राख्यो चंदन बगारि राख्यो घनसार 1--नतिराम (गन्द)। बन दहन गुनागार धनबोध । तिव विरंचि जेहि सेवहिं तासो ३. महा मेघ । घना बादल। ४. पारद। पारा (को०)।५, . कवन विरोध ।-मानस, ६।४७॥ - चंदन (को०)।