पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३०८

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धनसारी १३८५ धनोदधि घनसारी- वि० स्त्री० [सं० धनसार] बादल के समान (काली। घनात्मक-वि० [सं०] १. जिसकी लंबाई, चौड़ाई और मोटाई, उ०. घनसारी कारी वरुनी राजत प्यारी झपकारी- (ॐचाई वा गहराद) बराबर हो। २. जो लंबाई, चौड़ाई . भारतेंदु ग्रंक, भा॰ २, पृ० ४५७ । और मोटाई को गुणा करने से निकला हो (पायतन . घनस्याम---वि० संज्ञा पुं० [० घनश्याम] दे० 'घनश्याम'। के लिये )। घनस्वन--संधा पुं० [सं०] मेघगर्जन [को०] । घनात्यय-संया पुं० [सं०] शरद् यातु [फो०] । घनहर@---संधा पुं० [सं० धन+धर, प्रा० धरहर, घगवर] मेघ। घनानंद---- सं ० [सं० घनानन्द] १. गद्य काव्य का एक भेद। बादल । उ०--घनहर गरजे बजे नगारा --कधीर श०, २. हिंदी के एक प्रसिद्ध कवि का नाम निनको यानंदघन भी । पृ० ५७। कहते हैं। घनहर--संध पु० [हिं० घान+होरा (प्रत्य॰)] घानवाला। घनामय-संशा ० [सं०] खजूर को०] एक घान अन्न भुनानेवाला । दाना भुनाने के लिये भड़भूजे घनामल-संघा पुं० [सं०] बथुप्रा का साग । वास्तुकनाक (को०]1 . . के पास जानेवाला। . घनाली--संज्ञा औ० [सं० घन+अपलो] मंघपंक्ति । बादलों का .. घनहस्त-संज्ञा पुं० [सं०] १. एक हाथ लंबा, एक हाथ चौड़ा और समूह । उ०--करने लगी मैं अनुकरण स्थनपरों से चंचला .. एक हाथ गहरा या मोटा पिंड वा क्षेत्र । २. अन्न आदि नापने थी चमकी, धनाली बहराई थी।--माकेत, पृ० २७४ । .. का एक मान जो एक हाथ लंबा, एक हाथ चौड़ा, और एक ताशय-- साकाश को. हाथ गहरा होता है । खारी । खारिका। घनिष्ट--वि० [सं०] १. गाढ़ा पना। बहुत अधिक । २. सबसे । धनांजनी--संक्षा खी० (सं० घनाजनी] दुर्गा [को०] ।। अधिक धना । सबसे प्रधिक निकट । प्रत्यंत निकट । पास का। . घनांत-संज्ञा पुं० [सं० धनान्त] १. वर्षा का समाप्तिकाल । २. शरद् निकटस्थ । नजदीकी । जैसे, पनिप्ठ संबंध : __ ऋतु । ३. वेद मंत्रों के 'धन' नामक विकृति पाठ के कर्ता। घनिष्ठता-संगमी- [स०] १. धनिष्ठ होने की स्थिति का भाव। . यौ०--धनांत पाठी-वे वेदपाठी जो धन पाठ नामक अष्टवि कृतियों २. गाड़ी मेत्रीधनी दोस्ती। के पाठः निष्णांत हों। . घनीभवन -संवा पुं० [सं०] १. जमकर गाड़ा होना । २. ठोस ... चनांधकार--संपा पुं० [सं० घनान्धकार] गहरा अंधेरा। निविड़ अंधकार। घना--संज्ञा स्त्री॰ [मा० घणा] स्त्री। उ०--तिहारी पना ने भैया बनना । ३. केंद्रीभूत होना (फो०] । बदनि बदी ई तुमैं दुगी गरे की दुलरी और कमरि की घनीभाव-संशा पुं० [#०] ३० धनीमान । तगड़ी।--पोद्दार अभि० ग्रं, पृ०६१५॥ घनीभूत-वि० [सं०] प्रत्यंत गात । प्रगाढ़। सघन । केंद्रीभूत । घना--संग्रा खी० [सं०] १. रुद्रजटा । २. भापपर्णी । ३. एक प्रकार उ०-घनीभूत हो उठे पवन, फिर श्वासों की गति होतो. . का वाद्य रुद्ध।-कामायनी,०१७॥ घना--संद्धा पुं० [सं० घन] पेड़ों का समूह । जंगल । घने-वि० [सं० धन |१. बहत। अनेक-(सव्या में)। उ०- वापुरो विभीपण पुस्तारि बार वार करो वानर बड़ी बलाइ... धना वि० [सं० घन] [खी० घनी] १. जिसके अवयव या मा घने घर घालिहैं 1--तुलसी (शब्द०)। २. सघन । पास पास सटे हों। पास पास स्थित । सघन । गझिन । घनेतर-वि० [सं०] १. जो ठोसन हो । मृद। २ तरल (10] । जान । जैसे--धना जंगल, धने याल, घना बुनावट। २. घनेरा -वि० हिं० घना+एरा (प्रत्य॰)] [वि. श्री धनरा' घनिष्ठ । नजदीकी । निकट का । जैसे,—हमारा उनका बहुत बहुत अधिक । अतिशय । उ०--(क) योपि कपिन दुरघट गढ़.. घना संबंध है । ३. बहुत अधिक । ज्यादा । 30-- उतै खाई घेरा । नगर कोलाहल भयो धनेरा ---तुलसी (शब्द०)। है धनी, थोरो मुख पे नेह् ।---रसनिधि (शब्द॰) । ४. गाढ़ा। (ख) सुनु मुनि बरनी कुपित धनेरी। - मानस, १ । १२४ । " प्रगाढ । उ०-- अति कड़ा खट्टा धना रे वाको रस है भाई। विशेष: संख्या की अधिकता सूनित करने के लिये इस शब्द के : --धरम०, पृ० ५! बहुवचन रूप घनेरे' का प्रयोग होता है। ५. 'घनेरे'। विशेष-संख्या की अधिकता सूचित करने के लिये इस शब्द के बहुवचन रूप 'धने' का प्रयोग होता है । वि० दे० 'घने। घनेरे-वि० [हिं० घने] १. बहुत । अधिक! अगणित ।-(संख्या घनावर, घनागम--संज्ञा पुं० [सं०] वर्षा ऋतु । बरसात । में)1 उ०--(क) वन प्रदेश मुनि वास घनेरे । जनु पुर नगर घनाक्षरी- संज्ञा पुं० [सं०] दंडक या मनहर छंद जिसे साधारण गाउ गन सेरे। -तुलसी (शब्द॰) । (ख) निपट बसेरे अघ. . लोग कवित्त कहते हैं। - भौगुन घनेरे नर नारिऊ अनेरे जगदंब चेरी रे हैं।-तुलसी विशेष----यह छंद ध्रुपद राग में गाया जा सकता है । १६-१५ के (शब्द०)।२. सघन । ' विथाम से प्रत्येक चरण में ३१ अक्षर होते हैं। प्रत में प्रायः गुरु घनो---वि० [हिं०] दे० 'पना'। उ.--हाट बाट हाटक वर्ण होता है । शेष के लिये लघु गुरु का कोई नियम नहीं है। पिपलि चल्लौ धौ सो घतो, काम कराही लक तलकताय . घनाधन- संञ्चा . [सं०] १. इंद्र । २. मस्त हाथी । ३ बरसनेवाला सो -तुलसी (शब्द)। ' 'बादल । उ०--गगन अगन घनाथन ते सघन तम सेनापति घनोत्तम--संहा पुं० [से.[ मुखाकृति । मुखड़ा। चेहरा । [को०] । - नैकहू न नैन मटात हैं।--कवित, पृ० ६३ । .. घनोदधि-संज्ञा पुं० [सं०] एक नरक का नाम [को० ।।