पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३१७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पक्षमा धराटा : घरा-संश पुं० [हिं० घर+उवा (प्रत्य॰)] १. घर का अच्छा पृ० ३६ । २. घरघर शब्द ! ३. हान । अहहास। हंसी। ..... प्रबंध । गृहस्थी का ठीक ठीक निर्वाह । गृहस्थी का बँधा खर्च ४. भूसी को पार । तुपान्नि । ५. उलूक । ६. परदा । ७. दर्च । २. वह व्यक्ति जो गृहस्थी का प्रबंध समझबूझ से करे। द्वार । ८. पर्वत का दरी । ६. लकड़ी आदि के चटकने की पत्मादार। आवाज। १०. मथानी के चलाने का शब्द । ११. मथानी। ... घरमा -संक्षा पुं० [हिं० घर ] छोटा घर । उ०-बलुपा के १२. घाघरा नदी। । पत्या में बसते फुलवत देह अपाने ।-कबीर J०, पृ०२७६ । घर्घरक - संचा पुं० [म.] १. वर्षर ध्वनि । २. घाघरा नदी [को०] । घरुपादारी-संशा पुं० [हिं० घर+फा० दार] [स्त्री० घरादारिन] घर्घरा-संशश्री० [सं०] १. क्षुद्रयटिका । करधनी । २. घोड़े के गले

: घर या गृहस्थी का उत्तम प्रबंध करनेवाला । वह मनुप्य जो में पहनाई जानेवाली छोटी घंटी । ३. गंगा । ४. घुघरू । ५.

...... समझ बूझकर गृहल्यी का खर्च चलाये । एक प्रकार की प्राचीन काल की वीणा [को०] । प्रादारी-संश सौ० [हिं० घर+दारी ] धर का उत्तम घर्षरिका-संज्ञा पुं० [सं०] १. प्राभूषणों में प्रयुक्त घुघरू । क्षुद्रघं- " प्रबंध करने का भाव । गृहस्थी का निर्वाह । टिका । नूपुर । २. एक प्रकार का बाजा । ३. लावा [को। घरुवा-शा पुं० वि० [हिं० वर] १.३० 'घस्या'। २. 'घरू' । घरित--संज्ञा पुं० [सं०] सूअर के घुरघुराने की ध्वनि [को०] पल-वि० [हि० घर+ऊ (प्रत्य॰)] जिसका संबंध घर गृहस्थी से घघंरी-संञ्चा नो० [सं०] दे० 'वर्षा' हो। घर का । घराऊ। उ०-सब समाचार लिखि पत्र से धर्म--संज्ञा पुं० [सं०] १. घाम । धूप ! सूर्यातप । २. एक प्रकार ... एक धड़ मनुप्य पठायो ।--दो नौ बावन०, भा०१. पृ० का यज्ञपात्र । ३. ग्रीष्म काल । ४. स्वेद । पसीना। यो०-धर्मचचिका, धर्मविचिका-यम्हौरी । धमौरी । धर्मजल, घरेला-वि० [हिं० घर+एला (प्रत्य॰)] दे॰ 'घरेल'। घर्मतीय प्रस्वेद। पसीना । धर्मदीधिति, धर्मधुति, घरेलू-वि० [हिं० घर+एल (प्रत्य॰)] १. जो घर में आदमियों धर्म रश्मि-सूर्य । धर्मविदु । धर्माबु ! धर्माशु । धर्माद्र=पसीने .... के पास रहे। पालतू । पालू ।-(पशुओं के लिये)। जैसे,- से तर । धर्मोदक=पसीना।। ..:. . बरेलू कुत्ता । २. घर का । निज का । घर । खानगी। ३. धर्मविदू-संज्ञा पुं॰ [सं० धर्मविन्दु] पसीना। "... घर का बना हुया । घमंस्वेद-वि० [२०] ताप के कारण जिसके शरीर से पसीना घरेया-वि० [हिं० घर+ऐया (प्रत्य॰)] घर का । अपने निकल रहा हो। " कुटुंव का । अत्यंत घनिष्ठ संबंधी। धांत-संश्श पुं० [सं० धर्मान्त ] ग्रीष्म ऋतु का अंत । वा का घरवा-संवा पुं० १, घर का आदमी । घर का प्राणी । निकटस्थ प्रारंमा संबंधी । उ०—द्रौपदी विचार रघुराज पाजजाति लाज, सब घावु-संक्षा पुं० [सं० घर्माम्बु] स्वेद । पसीना । . . हैं वरवा पैन टेर के सुनया हैं।-रघुराज (शब्द०)। २. धर्माश-संज्ञा पुं० [सं० स्र्य । ४०-जयति घर्माणु संदग्ध संपाति दे० 'घराती'। नव पक्ष लोचन, दिव्य देह दाता ।—तुलसी (शब्द०)। .घरो -संवा पुं० [हिं० दे० 'घड़ा' । उ०-दिगरत मन संन्यास F. - " • घक्ति .. लेत जल नावत ग्राम घरो सो।-तुलसी (शब्द०)।। -वि० [सं०] धूप से तप्त । स्वेदयुक्त । पसीने से लयपय । उ.--धर्मावत विरक्त पार्श्वदर्शन से खींच नयन |-अपरा, परौंदा--संशा पुं० [हिं० घर+ौदा (प्रत्य॰)] १. कागज, पृ० ६२ . = मिट्टी, धूल आदि का बना हा छोटा घर जिसे छोटे बच्चे घर्रा--संज्ञा पुं० [अनुध्व० घरघरर(=घिसने या रगड़ने का शब्द)] . . : खेलने के लिये बनाते हैं।। २. छोटा मोटा घर । १. एक प्रकार का अजन जो ग्रफीम, फिटकिरी, घी, कपूर, हड़, घरोधा-संवा पुं० [हिं०] दे० 'घरौंदा' । उ०—(क) पति को पहार जल वत्ती, इलायची, नीम की पत्ती इत्यादि को एक में घिस- कियो ख्याल ही कृपाल राम बापुरो विभीषण घरोंघा हुतो कर बनाया जाता है। यह अंजन अाँख पाने पर लगाया वाल को। तुलसी J०, पृ०१२०१ 1 (ब) अब हम दोनों जरा . जरा से बच्चे नहीं हैं कि कागज का घरौंधा बनावें। जाता है । २. गले को घरघराहट जो कफ के कारण होती है। शिवप्रसाद (शब्द०)। मुहा०-घरी चलना=मरते समय कफ छेकने के कारण सांस का घरघराहट के साथ रुक रुककर निकलना। घुघरू ... घरोना--संज्ञा पुं॰ [हिं० घर+पीना (प्रत्य॰)] १. घर । मकान ! वोलना । घटका लगना । घर्रा लगना=दे० 'धरी चलना'। निवासस्थान । उ०-तजि के घरौना काहू रुखन की छाया २. कुएँ प्रादि की मिट्टी अथवा जल को व्यक्तियों द्वारा बैल की तरे सोये हहै छोना हूँ विछौना करि पात के । हनुमान तरह खींचने का काम । (शब्द०)। २. मिट्टी, चूल आदि का बना हुया छोटा घर घर्राटा-संज्ञा पुं० [अनुध्व० घर+पाटा (प्रत्य॰)] घरं घर का जिसे बच्चे खेलने के लिये बनाते हैं। घरौंदा । शब्द । वह पाब्द जो गहरी नींद में साँस लेते समय नाक से 5. वर्धर-सं० [सं०] १. प्राचीन काल का एक वाजा जिससे ताल निकलता है। . . दिया जाता था । २. गाड़ी आदि के चलने का गंभीर शब्द। मुहा०-घर्राटा मारना=(१) गहरी नींद में नाक से घर पर धड़धड़ाहट । उ०-रथ का धंधर घंटों की धनधन । अणिमा, शब्द निकलना । जैसे,—वह घर्राटा मारकर सो रहा है।