पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३१९

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घाई महनाना उ.-मेलन की झनकार मची तहं धन घंटा पहनाने । नदत घांचीi@--संचा पुं॰ [देशी घंचिय; गुज धांची या हि० घान+ची] नाग माते मग जाते दिगदंती सकुवाने ।-रघुराज (शब्द०)। तेली!--(डि.)। पहनाना -क्रि० स० घंटा यादि बजाना । बजाकर ध्वनि घाटी --संशश क्षी० [सं० परि टका] १. गले के अंदर की घंटी। उत्पन्न करना । __ कौना । ललरी । पहरना-कि०म० [अनु॰] गरजने का सा शब्द करना । गंभीर मुहा०--घांटी बैगना=गले की घंटी की सूजन को दबाकर " ध्वनि निकालना । घोर शब्द करना । उ० -जह के तह मिटाना। समाय रहे ग्रस वेद नगारा घहरत है। देवस्वामी (शब्द०)। विशेप--यह रोग बच्चों को बहुत होता है। दे० 'कौवा' । पहराना-क्रि० प्र० [अनु०] १. गरजने का सा शब्द करना। गंभीर २. गला । जैसे,--उतरा घाँटी, हुमा माटी। ... शब्द करना । गरजना । चिग्घाड़ना । उ०—(क) धौंसा लग घाँटी--संज्ञा पुं० [हिं० घट] एक प्रकार का चलता गाना जो चैत .... पहरान । शंख लगे हहरान। छत्र लगे थहरान । केतु लगे के महीने में गाया जाता है । फहरान -गोपाल (शब्द०)। (ख) हय हिहिनात भागे घहि -संश पुं० [हिं० घाँ] तरफ। ओर । उ०-छकी अदेह जात पहरात गज, भारी भोर ठेलि पेलि रौंदि खाँदि डारहीं। उछाह मत तनक तकी यहि घाह । दै छतिया छद छोभ हद -तुलसी प्र०, पृ० १७४ । २. घिरना। फैलना । छाना। गई छुवावत छांहें-- सत० (शब्द०)। उ0-(क) चारिहू और ते पौन झकोर झकोरन घोर घटा घांही --संशा पं० [देश॰] दे० 'घांह। वाट)। (ख) यंवर में पावन ब्रोम घाबु-संज्ञा स्त्री० [सं० ख अथवा हि० घाट ( =ोर)] ग्रोर। तरफ । जैसे,--चह घा। .... धूम घहराये । साकेत, पृ० २१७ 1 घाइ-संज्ञा पुं० [मं० पात, प्रा० घाइ) दे० 'घाव' । उ०-धीर घहरानि संथा श्री० [हिं० घहराना] १. गंभीर ध्वनि । तुमुल न धरति घरी देते विनु मरी जाति ऐसी कछ करी दियो शब्द । गरज । उ०-सुनत घहरानि व्रज लोग चकित भए । घाइनि में नौन है ।-गंग ग्रं॰, पृ० ५३ । " -सूर० (राधा०), २०६० १ २. घहराने की क्रिया या भाव । घाइवो -क्रि० स० [वज.] दे॰ 'घाना'। पहरारा'@+-संक पुं० [हिं० घहराना] घोर शब्द । गंभीर ध्वनि। घाइल+ वि० [हिं० घाय| दे० 'घायल' । उ०---प्रथम नगरि . गरज । उ०—एक और जलद के माचे घहरारे मंजु एक और नूपुर रही जुरत सुरत रन गोल । घाइल ह्र सोभा बढ़त .:. नाकन के नदत नगारे हैं।-रघुराज (शब्द०)। कुत्र भर अधर कपोल ।-स. सप्तक, पृ० ३७३ । बहरारा -वि० गरजनेवाला । घोर शब्द करनेवाला। घाई --संक्षा सी० [हिं० घा या घा] मोर। तरफ । अलंग। = . बहरारो -संज्ञा स्त्री० [हिं० घहराना] गंभीर ध्वनि । घोर शब्द। उ०-(क) प्यारी लजाय रही मुख फेरि दियो हंसि हेरि . .गरज । उ०- पुर ते छवि भारी कढ़ी सवारी में घहरारी सबीन की घाई। सुंदरीसर्वस्व (शब्द०)। (ख) हँसै कुंद चाकन की। रघुराज (शब्द०)। हे मुकुद सहैं बन बागन में करें वह घाई कीर कोकिला 'वांटिक-संवा पुं० [सं० धारिटक] १. स्तुतिपाठक । २.घंटा बजाने चवाई हैं।-दीनदयाल ( शब्द०) २. दो वस्तुओं के बीच ... वाला । ३. धतूरा [को०। का स्थान । संधि । उ०--चुरियानहु में चपि चूर भयो दवि ..पलि-संहा स्त्री० [सं० ख या. हि. धाट(==ोर)] १. दिशा। छंद पछलिन घाई कहूँ। हरिसेवक (शब्द॰) । ३. वार । ... दिक् । २. अोर । तरफ । उ०--सूर तबहिं हम सों जो दफा। ४. पानी में पड़नेवाला भंवर । गिरदाव । ...तेरी घोहलरती।—सूर (शब्द॰) । घाई-संवा स्त्री० [सं० गमस्ति(==उगली)] १. टो उ गलियों के . घाघरा-संञ्चा पुं० [देशी घग्घर; अयवा संघर्घर (=क्षुद्रटिका)] के बीच की संधि । अंगुठे और उँगली के मध्य का कोण। [ी० अल्पा० घांधरी] १. वह चुननदार और घोरदार अंटी। २. पेड़ी और डाल के बीच का कोना। पहनावा जो स्त्रियाँ कमर में पहनती हैं और जो पर घाई-ठंबा की [हिं० घाव ] १. चोट । प्रायात 1 मार । प्रहार । तक लटकता रहता है। लहँगा। लोविया । बोड़ा। वार । उ०--जदपि गदा की बड़ी बड़ाई। पैकछ और चय - वजरवटू । की घाई।-लाल (शब्द०)। २. पटेबाजी की विशेष चोट। जैसे,-दो की घाई, चार की घाई । ३. धोखा । चाल-

घाघरी--संज्ञा स्त्री० [हिं०] ३० घांघरा । उ०-इसी रीति घाँधरी

वाजी। उ०-दई घोर अँध्यार में धोर घाई। कभू सामुहें ... " घरी कसकर ।-प्रेमधन, भा॰ २, पृ० १६ । दाहिने वाम घाई।-सूदन (शब्द०)। घाघरोरा--संक्षा पुं० [देश॰] दे० 'घाँधरा' । उ०--घाँघरी झीन महा०-धाइयां बताना झांसा देना । टालटुल करना। .... सौ सारी मिहिन सों पौन नितंबनि भार उठ खचि।-- घाई® - वि० [सं० घानिन] दे० 'घाती' । उ०-संशय सावज शरिर . ..भिखारी , भा॰ २, पृ० १०६। मह संगहि खेल जुमार। ऐसा पाई बापुरा जीवहिं मारे घांधला-संहा पुं० [अप० घंघल] झगड़ा । बखेड़ा । कप्ट । उ०--- झार |--कवीर ग्रं०, पृ० ८८। ....याह निहालइ, दिन गिरा, मारू यासालुध्ध । परदेसे घाई --संश श्री० [हिं० गाही] पाँच वस्तुओं का समूह । पंच- - भपिल घड़ा बिखत न जाणइ मुध 1--ढोला०, दु० १७ । करी । गाही।