पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३२६

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घिरखाना १४०३ घिसिर पितिर मुहा०-घिरनी खाना चक्कर लगाना । चारो ओर फिरला। घिलवा - मंत्र, पुं० [हिं०] दे० 'घलुमा ! उ०--मैंने फिर देवा ३. रस्ती बटने की चरखी। ४. दे० 'गिन्नी'। ५. एक जलपक्षी जो .. नौकर ने उसकी झोली में अन्न दिया, औरः पिलवे में सूसे जल के ऊपर फड़फड़ाता रहता है और मछली देखते ही चट से गालों पर दिया, एक पूरा चौटा ।--मानव०, पृ०६४। '. टूट पड़ता है। कोड़ियाला । किलफिला । ६. लोटन कबूतर। घिवा--संज्ञा पुं० [सं० त] दे० 'धी'। घिरवाना--कि० स० [हि० घेरना] किसी से घेरने का काम घिवहाई - वि० [हिं० घिव-+हो (प्रत्य॰)] १. घो का बना . कराना। २. एक जगह इकट्ठा कराना। हुआ। २. घी से संबंधित। . . . घिराई--संधानी [हिं० घेरना] १. घेरने की क्रिया या भाव। घिसकनानि-कि० अ० [हिं०] दे० 'खसकना'... . २. पशुओं को चराने का काम । ३. पशुओं को चराने की धिसघिस-संद्या स्त्री० [हिं० घिसना] १. वह देरु जो सुस्ती के उजरत या मजदूरी। . कारण हो । कार्य में शिथिलता । अनुचित विलंबः। प्रतत्परता।। घिरायद-संक्षा पुं० [सं० क्षार, हिं० खार, खरायेंद] मूत्र की दुर्गंध। .. जैसे,—इसी तुम्हारी घिसधिस में बारह बज गए। २. कोई घिराव-संज्ञा पुं० [हिं० घेरना] १. घेरने या घिरने की क्रिया या बात स्थिर करने में व्यर्थ का बिलंव। अनिश्चय । गड़बड़ो। भाव । २. घेरा । ३. किसी मिल मादि पर सार्वजनिक या घिसटता-क्रि० अ० [हिं०] दे० 'घासिटना' ।.. ....... सरकारी अधिकार या नियंत्रण करने के लिये छोटे कर्म- घिसनो संज्ञा ली हि घिसना] १. रगड़ । २. घिसने के कारण चारियों और मजदूर वर्ग द्वारा पेरा डालने का आंदोलन। होनेवाली कमी या छीज। .. .. घेराव। घिसना'-क्रि० स० [सं० घर्षण, प्रा० घसण] १. एक वस्तु को : घिरावदार-वि० [हिं० घिराय+ फा० दार] घेरेवाला । घेरादार । . दूसरी वस्तु पर रखकर खूब दवाते हुए इधर उधर फिराना। धिरित:-संशा पुं० [सं० घृत] घृत । घी। उ०--अपने हाथ रगड़ना । जैसे,--इसको पत्थर पर घिस दो, तो चिकना । देव गहवावा । कलस सहस इक घिरित भरावा ।--जायसी हो जायगा। . . (शब्द०)। संयो॰ क्रि०-डालना।--देना। चिरिनपरेवा-संघा पुं० [हिं० घिरनी (= चक्कर)+परेवा ] १. मुहार- घिस घिस कर चलना=बहुत दिनों तक, खूब काम : गिरहवाज कबूतर । २.कौड़ियाला पक्षी जो मछली के लिये में लाया जाना और चलना। . ... ... पानी के ऊपर मंडराता रहता है। उ०--(क) कहे वह भीर फॅचल रस लेवा । पाइ पर होइ घिरित परेवा । —जायसी २.किसी वस्तु को दूसरी वस्तु पर इस प्रकार रगड़ना कि उसका (शब्द०)। (ख) घिरिनपरेवा गीउ उठावा। चहै बोल । कुछ अंश छूटकर अलग हो जाय । जैसे-चंदन घिसना । .. तमचूर सुनावा।--जायसी (शब्द०)। मुहा०—घिस लगाने को नहीं घिसकर तिलक या मंजन - घिरिया-संशा सी० [हिं० घिरना] १. मनुष्यों का घेरा जो लगाने भर को भी नहीं। लेशमात्र नहीं। शिकार को घेरने के लिये बनाया जाय।। ३. संभोग करना (वाजारू)। ..... . महा० घिरिया में घिरना=असमंजस या कठिनता में पड़ना। घिसनाक्र० प्र० रगड़ खाकर कम हाना या ऐसी अवस्था में पड़ना जिसमे निस्तार कठिन हो। २. । जूते की एंडो चलते चलते घिरा गई।. ... . दे० 'घरिया। . संयो० क्रि०--जाना। उठना। .. . घिरौंची संद्या स्त्री० [हिं०] दे. 'पड़ोची'। घिसपिसा-संक्षा स्त्री० [अनु०] १. ३०. . .'घिस घिस । २. सवा . घिरोना- संशा ० देश०] कड़ा जाम करने का घेरेदार बड़ा पान। . बट्टा । मेल जोल। . उ-कूड़े डालने के निमित्त जो ऊचे ऊँचे वर्तन (घिरौने) घिसवाना--प्र० स० [हिं०.घिसना का प्रे० रूप] घिसत का. मिलते हैं, वे उस स्थान के लोगों की स्वच्छता तथा सौंदर्य- का स्वच्छता तथा सौंदर्य- .. काम कराना । रगडवाना।. ..:... प्रियता के द्योतक हैं।-मार्य भा०, पृ० ४४। घिसा---वि० [हिं० घिसना ] १. घिसा हुमा। रगड़ा हुमा । २० घिरोरा--संवा पु० [देश॰] पूस का बिल । उ०-माछी कहै अपनो पुराना । जीणं । . पर माछरू मूनो कह अपनो घर ऐसो । कोने घुसी कहे घूस घिसाई----संघा श्री.हि. घिसना] १. घिसने को किया ! पिरौरा, विलारि औ व्याल विले मुह. वैसो।---फेशव घिसने को मजदुरी।३. पिसने का भाव। . (शब्द०)। घिराना:- क्रि० स० [ अनु० घरं] रगड़ना । घिसना। . घिसाना-क्रि० स० [हिं० घिसना का प्र० रूम] रगडना । पिता -संशा पुं० [सं० घृत] ३० पत'11.-घर का-घितं रेत में घिसाब---संक्षा बी० [हिं० घिसना] १. रगड़। घिसन । २. . द्वार छाछ ढ़ता डोल।-कवीर श०, भा०४, पृ०.२४ . कमी। छीजन । . घिरांना -क्रि० स० [अनु० घिर घिर ] १. घसीटना (पू. घिसावट--संज्ञा दी [हिं० घिसना] १. रगड़। घिसना । २. . हिं.)।२. पिपियाना । गिड़गिड़ाना (बुदेल.)।. . जिसने की मजदुरी। घिसाई। . पिरी-बाश्री दिश०] १. एक प्रकार को पास । २. दे घिसिमाना घिसिधाना-फि० सं० [सं० घर्षण] घसीटना । 'पिरनी'। १.३० "गिन्नी'। घिसिरपिसिर--संकबी० [हिं०] दे० विसपिस'