पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३२७

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E विसोहर .. १४०४ घुटक . विसोहरी-वि. [हिं० घिस+मोहर (प्रत्य॰)] जमीन को स्पर्श मंगल मनाना । उत्सव मनाना । उ०—प गहे ऋपिराज के - करनेवाला ( वस्त्र)। 3०-वह इतना लंदा और चिसोहर पाय कहयो अंव दीप भरो सत्र यो के हनुमान (शब्द०)। है।प्रेमघने ०. भा० २. पृ० २६८। , (२) सुख संपत्ति का भोग करना ! बड़े सुख चैन से रहना। -घिस्टपिस्ट- पुं० [सं० घृष्ट पिष्ट] १. गहरा मेल जोल । प्रगाढ़ घी खिचड़ी खूब मिला जुला । घी खिचड़ी होना=बूब मिल मित्रता। गहरी घनिष्ठता। २. अनुचित संबंध। अपवित्र जुल जाना । अभिन्न हृदय होना । (किसी की) पांचों संबंध। उँगलियां घी में होना=बूब अराम चैन का मौका मिलना। घिस्नमेघिस्सा----संज्ञा पुं० [हिं० घिसना] १. गहरा धक्का । खूब सुख भोग का अवसर मिलना । खूब लाभ होना। घी गुड़ भीड़ भाड़े । २. लड़कों का एक नेत जिसमें एक अपनी डोरी देना=-अच्छी खातिर करना। उ०-यागत का स्वागत या नख को दूसरे की नवं यां डोरी में फंसाकर झटका देता समुचित है, पर क्या प्रांसू लेकर ? प्रिय होते तो ले लेती • या रंगड़ता है जिसमें दूसरे की डोरी कट जाय । उसको मैं घी गुड़ देकर माकेत पृ० २८२ । घिस्सा-संज्ञा पुं॰ [हिं० घिसना] रगड़ा। जैसे,—विस्ता लगते ही घोउ, धींऊ - संज्ञा पुं० [सं० घृत ] दे० 'पी' । -:. कनकोपा कट गया। घीकुप्रार--संज्ञा पुं॰ [सं० घृतकुमारी एक प्रसिद्ध क्षुप जो बोरी क्रि० प्र० परना-बैठना।—लगना। रेतीली जमीन पर अथवा नदियों के किनारे अधिकता से २. धक्का । ठोकर । ३. वह प्राघात जो पहलवान अपनी कुहनी होता है। ... मोर कलाई के बीच की हड्डी को रगड़ से देते हैं । कुंदा । विशेष-इसके पत्ते ३-४ अंगुल चौड़े, हाथ डेढ़ हाथ लंबे, दोनों . : रहा। ४. लड़कों का एक वेल जिसमें एक अपनी नख या किनारों पर पनीदार, बहुत मोटे और गूदेदार होते हैं जिनके - .:ोरी की रगड़ से दुसरे की नव वा डोरी को काटने का यल अंदर हरे रंग का और लसीला गूदा होता है। यह गूदा बहुत करता है। पुष्टिकारक समझा जाता है और कई रोगों में व्यवहत होता वाचा संका बी० [हिं० घोचना या सं० ग्रीव] गरदन । ग्रीवा । है। एलुमा इसी के रस से बनाया जाता है । वैद्यक में यह ३०-धीच मैं मीच न नीचहि सूमत मोह की कीच फेस्यो शीतल, कडुया, कफनाशक और पित्त, खांसी, विप, श्वास, F.. है। ठाकुर०, पृ०१२। तथा कुष्ठ आदि को दूर करनेवाला माना गया है । पत्तों के - पांचना-क्रि० स० [मुं० कर्यण, हिं० खींचना] बींचना ।ऐचना। वीच से एक मोटा डंडा या भूतला निकलता है जो मधुर और घांचाधींची संथा श्री.हि घींचना २० 'बींचतान' । उ०--एक कृमि तथा पित्त नाशक कहा गया है । इसी इंडे में लाल फूल ... हाइ दुइ कुत्ता लागे घींचाघींची करते।--० दरिया, निकलता है जो भारी होता है और वात, पित्त तथा कृमि पी - संक पुं० [पुं० घृत, प्रा० धौन] दूध का चिंकना तार जिसमें से का नाशक बतलाया गया है। जल का अंश तपाकर निकाल दिया गया हो। तपाया या घाकुवार संज्ञा पुं० [सं० घृतकुमारी] ग्वारपाठा। गोंडपटठा। .. मक्खन । घृत। घीपका -वि० [सं० घृतपक्व घी में पका हुआ। घी से निर्मित। .. मुहा०-घी कड़कड़ाना साफ और सोंधा करने के लिये धो को उ०-पीपक जलपक जेते गने। कटुमा बटुवा ते सब गने । पाना । घी का कुप्पा लुढ़ना या लुढ़काना=(१) किती बहुत चित्रा०, पृ० १०३ .: बड़े घनी का मर जाना । किसी बड़े आदमी की मृत्यु होना। घोव -संझ पुं० [सं० घृत] ३० 'बी' उ०—दूध के बीच में घोव (२) भारी हानि होना । वहुत नुकसान होना । घी के कुम्पे से जैसे, ऐसे फूल के बीच में वास है जो-कबीर. रे०, पृ. २७1 . बासगना=किसी ऐसे स्थान तक पहुंच जाना जहाँ खूब प्राप्ति । . . . हो। किसी ऐसे धनी तक पहुंच होना जहां खूब माल मिले। घौस -मंशा पुं० [देश॰] एक बड़ा चूहा । धूत । उ०-वैकि सिंघ घो के चीराग जलाना=दे० 'घी के दीए जलना' । उ०-यह घट पान लगावहि धीत गल्योरे लावै ।-कवीर ग्रं०, पृ० कहो कि अाज ठाकुर साहब घी के चिराग जलाएंगे। फिसाना०, भा०३, पृ० १९६घी का डोर-घी की धार घोसना - वि० स० [हिं० घिसना] १. रगड़ना। २. घसीटना । जो दाल ग्रादि में डालते समय बँध जाती है। घी का डोरा' घोसा --संज्ञा पुं० [हिं० वितनः ] घिसने या रगड़ने फौ किया। गलना=किसी के भोजन में पाया हा घी डालना। रगड़ । मांजा । उ०-परिका लाइ कर तन घी । नियर न घी के जलना= दे० घी के दीए जलना'। घी के दीए जलना : होइ कर इबलीसू ।-जायसी (शब्द०)। (३) कामना पूरी होना । मनोरय सफल होना । (२) ग्रानंद धुघटो, धुघट्ट -संचा पुं० [हिं० घू घट] दे० 'धूपट' । उ०- मंगलं होनाउत्सव होना। (३) सुख सौभाग्य की दशा (क) इक करन पलटि इक करन लंत । घुघंटें बदल लज्जा - होना । धन धान्य की पूर्णता होना । समृद्धि होना । ऐश्वयं सुभंत ।--पृ० रा० १४ । २८ । (ख) जब नानक मुव वे . होना । घी के दिए जलाना=(१) अानंद मंगल मनाना। वोला । तव कोसे ने घट खोला।-प्रारग०, पृ० १११ । उत्सव मनाना । २. सुख संपत्ति का भोग करना। बड़े सुख घुट-संशा पुं० [सं० धुएट ] गुल्फ । टखना कोला चैन ने रहना। घी के दिए ( दीप) मरना=(१) मानद घुटक-संभ [सं० घुरदक] [ची धुटिका ] ६० घुट'। .