पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३३१

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. डिला .. धुमडनि. 'घुडिला-संवा पुं० [हिं० घुड़+इला (प्रत्य॰)] छोटा घोड़ा । पृ० ४४३ । (ख) मोहन का बेनु कुनै धुनै सीस मन ही ' '. उ०-साज सहित इक घुडिला लयो, गया दूध प्रतीली जू । मन मैं । घुपै मीरी तोच गुन गहि बूडै सोक है।-घनानंद,.. ', ' सुदर सौं इक हाथी लेयो हयनी संग अमोली जू ।-नंद० पृ० २०७। ०, पृ० ३३७ । संयो॰ क्रि०—जाना। घुड़ कना-क्रि० स० [हिं०] दे० 'घुड़कना' । घुना-वि० [हिं० घुनना] १. घुना हुआ। जिसमें घुन लगा हो। -पुण संज्ञा पुं० [सं०] दे॰ 'धुन' 1 २. छीजा हुना। ...धौ०-घुलिपि=दे० 'घुणाक्षर' । घुनाक्षरन्याय--संज्ञा पुं० [पं० घुरणाक्षर न्याय ] ३० 'चुणाक्षर 'घुणाक्षर - संज्ञा पुं० [सं०] ऐसी कृति या रचना जो प्रनमान में भ्याय' 1 उ.-कहत कठिन समुमत कठिन साधत कठिन ..', उसी प्रकार हो जाय, जिस प्रकार धुनों के खाते खाते विवेक । होइ घुनाक्षर न्याय जो पुनि प्रत्यूह अनेक! -तुलसी लकड़ी में अक्षर की तरह के बहुत से चिह्न या लकीरें वन ग्रं॰, पृ० १०५। ..: जाती हैं। घुन्ना-वि० [ अनु० घुनघुनाना ] [वि० बी० बुनो] जो अपने क्रोध १. 'यो०---घुरणावर न्याय= अकस्मात् किसी अनभीष्ट एवं अज्ञात द्वेप आदि भावों को मन ही में रक्ले और चुपचाप . कार्य का विना प्रयत्ल के हो जाना । उ०-यदि वहघुणाक्षर उनके अनुसार कार्य करे। मन ही मन बुरा माननेवाला ।। ... न्याय से किसी प्रकार अपने कर्तव्य कार्य को 1- चप्पा ।

प्रेमवन०, भा०२, पृ० ३७६ ।

घुन्नी'--वि० सी० [हिं० घुन्ना ] अपने मन का भाव गुप्त रखने- - विशेष - इस न्याय या उक्ति का प्रयोग ऐसे स्थलों पर करते हैं __ दाली । चुप्पी (स्त्री)। ... जहाँ किसी के द्वारा ऐसा आकस्मिक कार्य हो जाता है जो धुन्नी?- संवा स्त्री० चुप्पी । मौन । ... उसे सात या अभीष्ट न रहा हो। क्रि० प्र०-साधना। ...पुन संशा पुं० [सं० घुरण] एक प्रकार का छोटा कीड़ा जो अनाज, - पौधे और लकड़ी आदि में लगता है। घुप--वि० [सं० कूप या अनु०] गहरा (घंधेरा)। निविड़ (अंधकार)

- विशेप-इस कीड़े की कई जातियां होती हैं । लकडी का घुन विशेप- इस शब्द का प्रयोग 'अंधेरा' शब्द ही के साय होता

अनाज के बुन से भिन्न होता है। जिस लकड़ी या अनाज है । जैसे, अंधेरा बुप । में बह लगता है, उसे अंदर ही अंदर खाते खाते खोखला कर घुमंड(कु-संञ्चा बी० [हिं० घुमड़ना] दे० 'धूम'। उ०-प्रबिर डालता है। इस कीड़े के भी रेशम के कीड़े के समान कई गुलाल की घुमंड अनिधि छए हो हो होरी कहत हसत देत रूपांतर होते हैं। यह भी पहले गंडेदार लबे ढोले के रूप में तारी हैं। बज०, ग्रं॰, पृ॰ ३०।। ... रहता है। .. घुमंतू-वि० [हिं० घूमना] वरावर इधर उधर घूमनेयाला । 30- - मुहा०--धुन लगना=(१) धुन का अनाज या लकड़ी को जाड़ों को नीचे बिताकर अब यह घुमंतू महिपपाल हिमाचल - खाना । (२) अंदर ही अंदर किसी वस्तु का क्षोण होना । की ऊपरी चारागाहों की ओर जा रहे थे ।-किन्नर, . धीरे धीरे अप्रत्यक्ष रूप में किसी वस्तु का ह्रास होना । पृ० ३० । अदर ही अंदर छीजना या नष्ट होना । जैसे,—शरीर में घूमना --क्रि० हिं० घुमड़ना] दे० 'घुमड़ना'। उ०—निमें घुन लगना । रोजगार में घुन लगना। जवानी में चुन लगना। . ' ह्र कुरम नृपति पाछ चल्यो वुमंडि। -सुजान०, पृ. २६ । . 30-कीट मनोरथ दारु शरीरा। जेहि न लाग धुन को घुमा -संवा नी० [हिं॰] दे० 'घुमड़' 1 अस धरा।-भानस,७७१ 1 धुन झड़ना=घुनं की खाई धुमक्कड़--वि० [हिं० घूमना+अक्कड़ (प्रत्य॰)] बहुत घूमनेवाला । हुई लकड़ी का चूर गिरना। घुमची --संवा बी० [सं० गुञ्जा] दे० 'घुघी '। . . घुनघुना-संज्ञा पुं० [अनु॰] लकड़ी, पीतल इत्यादि का बना हुमा . एक छोटा सा खिलौना, जिसे लड़के हाथ में लेकर जाया गटाला पु० [फा० गुबद] ६० 'गुमटी' 1 30-घुमट पर एक करत है। इसका आकार गोल या लंबोतरा गोल होता.है। ऊपर दूसरा तान छतरियों और हमिका है। इसम एक ओर एक दस्ता लगा होता है, जिसे हाथ में ग्राम० ०, पृ०१८२। पकड़ते हैं । कुनझुना। घुमटा-संशा पुं० [हिं० घूमना+टा (पत्य॰)] सिर का चक्कर .घुनना-फ्रि सहि घुन] १. घुन के द्वारा लकड़ी आदि का जिस में अखि के सामने अंधेरा सा जान पड़ता है और.मादमी खाया जाना। धुन के खाने से खोखला और कमजोर हो खड़ा नहीं रह सकता। जाना । जैसे,--लकड़ी धनना, अनाज घनना। २. किसी क्रि० प्र०--पाना। दोप के कारण किसी चीज का अंदर ही अंदर छोजना। घुमड़-संशा की० [हिं० धुनड़ना] १. बरनवाले वादलो की " जैसे,बारीर घुनना। 30-(क) दार सरीर, कीट पहिले.... घरवार । २. छाना । घिराव । इकट्ठा होना। ... सुख, तुनिरि सुमिरि वासर निति चुनिए । तुलसी में, धुमडनिए-शा नो० [हिं०. घुमड़ना] दे० 'धुमह। 30 ----पन