पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३३२

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क्षी० [ हि° बैठत ही घुमरा । ३. घुमनी धुमड़ना. धुरधुरा : धुमड़ नि मधि चाय सुरेस । बिनु गुन सोभित भयो सुदेस ।- घुमरी -संज्ञा क्षी० [हिं० घूम ] १. दे० 'धुमड़ी'। 30--घर नंद० ग्र०, पृ० २६० । आँगन मोहिं नाहिं सुहावै, वैठत ही घुमरी सी प्राथै ।-भारतेंदु , घुमड़ना- कि० अ० [हिं० घूम-+पाटना] १. बादलों का घूम घूम- ०, भा०२, पृ० ३७३ । २. पानी का भँवर । ३. घुमनी कर इकट्ठा होना । धने मेधों का छाना । बादलों का इधर नाम का रोग जो चौपायों को होता है। उधर घने होकर जमना। उ०—(क) घमडि घुमडि घटा धन धुमाँ-संक्षा पुं० [हिं० घूमना या देश.] पंजाब में जमीन की एक . की घनेरी अवै गरज गई ती फेर गरजन लागीरी ।---पद्माकर नाप जो दो बीघों के बराबर होती है। उ०-पाठ दस भैसे (प.ब्द०)। (ख) उमडि घुमडि धन बरसन लागे ।-गीत । हैं, दस बारह घुमां जमीन है ।-पिंजरे०, पृ०६१। .. २. इकट्ठा होना । छा जाना । उ०—देव लला गए सोवत ते घुमाऊ-वि० [हिं० घूमना] १. घुमानेवाला। २. घूमनेवाला. मुख माहिं महा सुखमा घुमड़ी सी।-देव । (शब्द०)। घुमंतू। घमड़ाना-कि० अ० [हिं०] दे० घुमड़ना'। उ०-कहीं भभूके घुमाऊ' संघा पुं० रास्ते का मोड़ । घुमाव । प्रादि दै धूवाँ घुमड़ाया ।--सूदन (शब्द०)। घुमाना'- क्रि० स० [ घूमना ] १. चक्कर देना। चारो योर घुमड़ी-संज्ञा स्त्री० [हिं० घूमना] १. किसी केंद्र पर स्थिर रहकर फिराना । २. इधर उधर टहलाना । सैर कराना । ३. किसी चारों ओर फिरने की क्रिया । कुम्हार के चाक की तरह घूमने और प्रवृत्त करना । किसी विषय की और लगाना । जैसे;-: की क्रिया। उनका क्या, जिधर घुमायो, उधर धूम जायेंगे । ४. ऐंठना। क्रि० प्र० - लगाना । लेना। मरोड़ना । जैसे,—कल घुमाना। २. वह चक्कर जो इस प्रकार घूमने से लोगों के सिर में घुमाना'-क्रि० स० [हिं० घूम (= नींद)] शयन करना । सोना।" पाता है। . घुमारा-वि० [हिं० घूम+पारा (प्रत्य०)] घूमनेवाला। क्रि०प्र०-ग्राना। २. घूमता हुना। ३. सिर में चक्कर पाने का रोग जिसमें अाँख के सामने अँधेरा सा घुमारा'छ-वि० [हिं० घूम(= नींद)] १ उनींदा। २. मत्त । जान पड़ता है । ४. किसी वस्तु के चारों ओर फेरा लगाने की मतवाला । ३. घेरेदार ।। क्रिया। परिक्रमा । ५. पशुओं का एक रोग । मनी। घुमाव- सज्ञा पुं॰ [हि घूम+प्राय (प्रत्य॰)] १. घूमन था." घुमना --- वि० [हिं० पूमना ] [ स्त्री० धुमनी ] इधर उधर बहुत का भाव । २. फेर । चक्कर । फिरनेवाला । धूमनेवाला । घुमक्कड़ । यौ-घुमावदार । धुमावफिराव। . घुमनी'-वि० सी० [हिं० घूमना] जो इधर उधर घूमती फिरे । महा---घुमावफिराव की बात-पेचीली बात। हेरफेर की। जैसे,—मेलाधुमनी, घरघुमनी। . बात । अस्पष्ट एवं चक्करदार वात । घुमनी - संज्ञा स्त्री० [हिं० घूमना] १. पशुत्रों का एक रोग जिसमें ३. उतनी भूमि जितनी एक जोड़ी बैल से एक दिन में जोती उनके पेट में पीड़ा होती है और वे इधर उधर चक्कर लगाकर जाय । ४. रास्ते का मोड़ । ५.१ ८० 'धुमा गिर जाते हैं। इसे घुमड़ी' भी कहते हैं । २. दे० 'घमड़ी'। घुमावदार-वि० [हिं० घुमाव+दार] जिसमें कुछ घुमाव फिराव घुमर'-कि० ० [अनु। घम् घम् ] १. घोर शब्द करना । हो। चक्करदार । ॐ चे शब्द से बजना । विदे० 'धुरना' । उ.-क) पुर नर घुमेर-- संथा पुं० [हिं घूम (=निद्रा)+एर(प्रत्य॰) [ी घुमेरो नारिन को सुख दीन्ही जो जैसो पाल सोइ लह्यो । सर धन्य . फेर: चक्कर । बेसुधी । उ०-निगिद्यौस घुमेरनि भौरि जदुबंस उजागर धन्य धन्य धुनिधुमरि रह्यो ।-सर०,१०। पर यी अभिलाप महोदधि हेरि हिरै।-घनानद, पृ० १३८ । २०६०। (ख) मारे मल्ल एफ नहिं उबरे। पटकत परनि घुम्मरना--'कि० अ० [हिं०] दे० 'घुमरना' । 30--निदरि घनहि . स्रवन नृप घुमरे ।-सूर०,१०। ३१०६। घुम्मरहिं निसाना । निज पराइ कछु सुनिय न काना ।- घुमरना --क्रि० अ० [हिं० घुमड़ना] १. दे० 'घुमड़ना' । उ०-- तुलसी (शब्द०)। काम क्रोध की लहर उठतु है मोह पवन झकझोरी। लोभ घुर-संक्षा पुं० [हिं०] 'घर' का समस्त रूप । जैसे,—घुरविन, पुर- मोरे हिरदे घुमरतु है सागर वाट न पारी !--वरम०, पृ० बिनियाँ, आदि। .. ४३।१२. दे० 'घूमना'। घुरकना -कि० अ० [हिं०] दे० 'घु उकना' । उ०--वृद्ध वाघ सम घुमराई--संज्ञा स्त्री० [हिं० धुमराना] इधर उधर घूमने की स्थिति। सबहि गुरेरत घुरकत सबहिन ।-प्रेमघन, भा० १, पृ० १६१ उ०--दृग भरि.पाए री, मैं कही री कछुक तेरी प्रीति की घुरका--संज्ञा पुं० [हिं० धुरधु राना] चौपायों की एक बीमारी।। रीति, पाना कानी में भई घुमराई में गए दिन । ---नंद० ग्रं०, घुरघुर--10 पुं० [अनु॰] घुरघुर शब्द जो बिल्ली, सूपर मादि के पृ० ३५९ । . . . गले से तथा कफ सेंकने के कारण मनुष्य के गले से भी सांस । घुमराना--कि० अ० [हिं०] दे० 'घुमरना' । उ०-गरजि धुमरात लेते समय निकलता है। मद मार गंडनि सवत पन ते वेग तिहिं समय चीन्हीं । - घुरघुरा-संजा पुं० [हिं० घुर घुर से अनु०] झींगुर नाम का कीड़ा। सूर०, १० । २०५५। २. गरी कालः। ..