पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३३३

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पुरघुराना .... १४१० धुलाना घरघुराना-क्रि० अ० [अनु० घुरघुर ] गले से घुर धुर शब्द घुमित-क्रि० वि० [सं० घूणित] घूमता हा । चक्कर खाता हुआ। निकालना! ... उ.-पुनि उठि तेहि मारेहु हनुमंता । धुमित भूतल परयों - घुरघराहट--संज्ञा स्त्री० [हिं० घुरघराना ] घुरघुरं शब्द निकालने तुरंता ।—तुलसी (शब्द०)। घुर्रागा-क्रि० अ० [हिं० धुरं अनु०] दे॰ 'गुर्राना'। से घरचा संशा पुं० [हिं० घूरना=धूमना ] कपास प्रौटने की घुरुवा- संज्ञा पुं॰ [देश॰] जानवरों का एक रोग। वरखी। ( अलमोड़ा)। विशेप यह रोग एक पशु से उड़कर दूसरे में जा व्यापता है धुरता-संवा पुं० [हिं० घुड़ (=घोड़ा)] नील गाय । उ०-घुरड़ और कठिनाई से दूर होता है। इसकी उत्पत्ति एक प्रकार - है, रोछ है, कभी वाघ भी होता है, चीता बहुत है ।-फूली०, के जहर से होती है जो पशुओं के रुधिर में पैदा हो जाता है। इसमें पशुओं का गला सूज आता है और ज्वर बड़े जोर से घुरडोज-संशा पुं० [हिं०] दे० 'घुरई । चढ़ता है। पुरण-संज्ञा पुं० [सं०] घुर घुर की ध्वनि को०] । घुलंच-संज्ञा पुं० [सं० घुलञ्च] एक प्रकार का तृणधान्य । कसेई । पुरना'@–क्रि०अ० [हिं०] दे॰ 'घुलना' । गवेधुक [को०] । धुला-क्रि० अ० [सं० धुर ] शब्द करना। बजना । उ०—(क) धुलघुलारव--संज्ञा पुं० [सं०] गुटुर गूशब्द करनेवाला एक प्रकार का ... अवधपुर पाए दसरय राइ । राम लपन अरु भरत सत्रुधन कबूतर (को०] । ... तोभित चारो भाइ । घुरत निसान मृदंग शंख धुनि भेरि झाँझ घुलना- क्रि० अ० [सं० घरगन, प्रा० घुलन] १. पानी, दूध आदि सहनाइ । उमगे लोग नगर के निरखत अतिसुख सबहिनि पाइ। पतली चीजों में खूब हिल मिल जाना +-किसी द्रव पदार्थ में - सूर०, २६ (ख) इंकन के शोर चहुं और महा घोर मिश्रित हो जाना । हल होना। जैसे,—चीनी को अभी धुरे मानो घनघोर घोरि उठे भुव पोरतें।-सूदन (शब्द०)। हिलामो जिसमें पानी में घुल जाय । पुरना --क्रि० स० [हिं० घुलना (=मिलना)] भेंटना । आलिंगन संयो॰ क्रि०-जाना। .. करना । मिलना । उ० -(क) धाइ धुरि गई जसुमति मैया । यो०-घुलना मिलना। इत हंसि दौरि धुरचौ बल भया ।—नंद॰ ग्रं०, पृ०२८३ । (ब) मुहा०-घुल घुलकर बातें करना=खूब मिल जुलकर वाते ... छवीले दृन धुरि घुरि हसि मुरि जात ।-नागरी (शब्द०)। करना । अभिन्नहृदय होकर बातें करना। बड़ी घनिष्ठता के पुरविना-वि०, संश पुं० [हिं० घूर+बीनना घरे पर से दाना साथ बातें करना । उ०-प्रवासी ले और उनसे घुल घुल - इत्यादि चुननेवाला। गली कूचों में से टूटी फूटी चीजों के के बातें होने लगीं-फिसाना०, भा० ३, पृ० २८ । . . ' टुकड़े आदि एकत्र करनेवाला । घुल मिलकर-खूब मेलजोल के साथ। नजर या अखें पुरविनिया-संवा स्त्री० [हिं० धूरा-बीनना] १. घरे पर से दाना घुलना-प्रेमपूर्वक अाँख से प्रांख मिलाना। कलम का घुल इत्यादि दीन वोनकर एकत्र करने का काम । २. गली कूचों जाना- कलम का स्याही में रहते रहते नरम हो जाना जिसते. ' में से टूटी फूटी चीजों के टुकड़े चुन चुनकर एकत्र करने का वह खूब चले। . काम । उ०--राम गरीवनिवाज हैं राज देत जन जानि । २.जल आदि के संयोग से किसी पदार्थ के अणों का अलग तुलसी मन परिहरत नहि बुरविनिया की बानि । तुलसी अलग होना। द्रवित होना । गलना। ३. पककर पिलपिला .. पृ०५८। होना । नरम होना। जैगे,--खूब घुले धुले आम लाना। धुरसाल--मंया पुं० [हिं०] ३. 'घुड़सार' । उ--सुदर घर ताजी ४. रोग प्रादि से शरीर का क्षीण होना । दुर्वल होना । . बंधे तुरकिन की घुरसाल --सुदर ग्रं०, मा०२, पृ०७३७ । मुहा०-घुला हुआ-बुड्ढा । वृद्ध । धुल घुलकर कांटा होना= धरहरा --संशा लो० [हिं० खुर+हर (प्रत्य॰)] १. जंगल में पशुओं बहुत दुबला हो जाना। इतना हो जाना कि शरीर . के चलने से बना हुया तंग रास्ते का सा निशान । २. वह तंग हड्डियाँ दिखाई दें। घुल चुलकर मरना=बहुत दिनों रास्ता जिसपर केवल एक ही मनुष्य चल सके । पगडंडी।। तक कष्ट भोगकर मरना। - धुराना-क्रि० अ० [हिं० धुरना ] चारों ओर छा जाना। घर ५. दांव का हाथ से निकल जाना या जाता रहना । (जुपारी)। .:. जाना। ६.(समय) बीतना । व्यतीत होना । गुजरना । जैसे,—जरा पुरिका-संवा श्री० [सं०] घुर घर की आवाज । खर्राटा (को०) । से काम में महीनों चु ल गए। घुरो---संका सी० [सं०] सूअर का मुह या यूथन किो०] । घुलवाना'-क्रि० स० [हिं० धुलाना काप्रे रूप] १. गलवाना। घुरुहरी--संघाझी [हिं०] दे० 'घुरहुरी' । द्रवित कराना । २. अाँख में सुरमा लगवाना । . घुघुर-संज्ञा पुं० [सं०] १. घर घर की ध्वनि ।' २. शूकर वा श्वान घुलवाना'-कि० सं० [हिं० घोलना का प्र० रूप] किसी दखें ' की आवाज । २. चीलर । यमकीट [को० ।। पदार्थ में मिथित कराना। हल कराना। . घुघुरक-संगापुं० [सं०] [ी० घुघुरिका ] कल कल ध्वनि या घुलाना-कि० स० [हिं० घुलना] १. गलाना। पिघलाना। द्रवित ....... गड़गड़ाहट मी वनि । फरना । २.शरीर दुर्वल करना। शरीर.क्षीण करना। घुलवानाला में मिश्रित कराना] १. गलाना सिर