पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३३५

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१४१२ . घूमधुमारा घुट मत लो, एक सांस में सब दवा पी जायो । घुट घुटकर मुहा०-घूसों का क्या उवार ?-मार का बदला मार से लेने में . मारना-तंग करके मारना । दुःख.पहना पहुँचाकर मारना। क्या देर ! मारपीट का बदला तुरंत ले। ईंट-संवा पुं० [सं० घुट ] पहाड़ी दट्टयों की एक जाति जिसे गूठ धूसेवाज-2 [हिं० घूसा+फा० बाद] १. घुसा मारनेवाला। ' .... या मुंग भी कहते हैं । २. घुलेवाजी का खेल खेलने वाला । (अं० बाक्सर)। . धुट–संझा ली [देश॰] एक प्रकार का पेड़ या झाड़ जो बंगाल प्रा--संज्ञा पुं॰ [देश॰] १. काँस, मुंज या सरकंडे आदि का ई को छोड़कर भारतवर्ष के बहुत से स्थानों में होता है। की तरह का फल जो लंबे सींहों में लगता है। २. पानी के . विशेष--इसकी पत्तियाँ चार पांच अंगुल लंबी, गहरे हरे रंग की किनारे मिट्टी में रहनेवाला एक कीड़ा जिसे बुलबुल आदि . और नीचे की ओर कुछ रोएँदार होती हैं। यह बैसाख जेठ पक्षी खाते हैं । रेवा । ३. दरवाजे में ऊपर या नीचे का वह ..... में फूलती है और जाई में फलती है। इसके फलवाए नहीं छेद जिसमें किवाड़े की चूल अटकाई जाती है। जाते, पर उनकी . गुरुलियां खाने के काम में आती है। - पत्तियाँ चारे के काम में पाती हैं। छाल और सद्ध फल यू-सञ्ज्ञा पुं० [40] [स्त्री घूकी ] घुग्घू । उल्लू पक्षी। रुरुग्रा। चमड़ा रंगने के काम में आते हैं। उ०-काक कोकनद सोकहत दुख कुवलय कुलटानि । तारा टक-संका पुं० [हिं० ट+एक एक बूट 1 उ. तुलसी बातक योपधि दीप ससि धुक चोर तम हानि |--केशव पं०, भा० मांगनो एक सबै घन दानि । देत जो भू भाजन भरत लेत १, पृ० १३५॥ जो घटक पानि 1-तुलसी ग्रं॰, पृ० १०६। घूकनादिनी-संशो० [मं०] गंगा किो॰] । बूटना- क्रि० स० [हिं० धूट j पानी या और किसी द्रव पदार्थ घूका-संज्ञा पुं० [हिं० घूमा ] वात, देत, रहटे या मुंज इत्यादि को गले के नीचे उतारना । पीना । उ० तजि और उपाय का बना हुया तंग मुंह का वर्तन या इलिग । पकुआ। अनेक उखी अव तो हमको विप घूटनो है।-भारतेंदु ग्रं०, कारि--संज्ञा पं० [सं०] उल्लू का शत्रु कौना किो०] । मा०२, पृ०३४।। घूगस -संज्ञा पुं० देश॰] ऊँचा बुर्ज । गरगज । संयो० क्रि०-जाना ।—लेना। घूध'---संज्ञा स्त्री० [हिं० घोघी या फा० खोद ] लोहे या पीतल घटना'-क्रि० स० [हिं०] दे० 'घोंटना' । उ०-पवन खो की बनी टोपी जो लड़ाई में सिर को चोट से बचाने के लिये वहयो सवनु नाहीं कहयो । कठ मानों किहूं पान धू ट्यो। 'पहनी जाती है । उ०--अरुन रंग आनन छवि लीने ! माथे सुजान०, पृ० १६ । धूप लोड़ की दीने ।--लाल कदि (शब्द०)। घुटा संज्ञा सिं० घु एटक, हिं० घुटना] टांग और जाँध के बीच घूध - संज्ञा पुं० [सं० धूफ उल्लू । · का जोड़ । घुटना । उ०- मुहु पखारि मुहरु मिज तीस धूघर-संज्ञा पुं० [हिं० घूध+हिं घूप+हिं र (प्रत्य॰)] दे० 'घुग्डू' । .. सजलं कर छ्वाइ । मोर उचे घुटनु ते नारि सरोवर न्हाइ। उ०--युधर जुत्य बैठ एक ठाऊँ।--घट०, पृ०:४१ । -~-विहारी (शब्द०)। घूघरा--संशा पुं० [हिं०] दे० 'घुघरू' । उ०--सुरति निरति का पूदी संज्ञा स्त्री० [हिं० घूट ] एक प्रापध जो स्वास्थ्यकर और पहर घुघरा साहिब ने मिलि जाल'।--रा. धर्मा०, पृ०४४। पाचक होने के कारण छोटे बच्चों को नित्य पिलाई जाती है। धूवसा संबा पुं० [देश॰] मिले के भीतर जाने का मार्ग (राज.)। महा-जनम घुटी बह घूटी जो बच्चे को उसका पेट साफ घुबी-पंधा स्त्री० [देश॰] १. थैली। २.जेव। घीसा । ३. घुग्धी। करने के लिये जन्म के दूसरे ही दिन दी जाती है। जब तक पंडुक । पेड़की। फाख्ता। .. यह घुटी पिलाकर बच्चे का पेट साफ नहीं कर लिया जाता, घूवुअरा - संशा पुं० [देश॰] दे० 'घुम्बू' । उ०-वोलि धूघुग्र साद • तब तक उसे. माता का दश नहीं पिलाया जाता। दीविय महमती सुर. उपफस्यो। -पृ० रा० १५२६ । पूंठन -ऋि० वि० [हिं० घटना घुटने के बल । उ०--रज घूधू-मंचा पुं० [म० घूक, हि० घुमधु ] दे० 'घुग्यू । । रंजित अंजित नयन घुठन डोलत भूमि । लेत बलया मात घूठना - क्रि० स० [हिं० घुटना] सांस रोकना या दवाना । जैसे,- . लखि भरि कपोल मुख चूमि !-पृ० रा०, १ । ७१८ 1 . गला घुटना । घूस--संज्ञा स्त्री० [हिं० दे० 'घुस' ! उ०-जाकी पास रहै मदिर में घू ना-क्रि० वि० [देश॰] दे॰ 'यूठन। होकर ध्रुस बस सो घर में ।-सहनो०, पृ० २४ । घूड़ा- पुं० [हिं० धुरा) ३० घरा"। 30--दिन बारह वर्षों घूसा-संवा हि पिस्ता या अनु०] १. बंधी हुई मुठी जो मारने में पूड़े के भी सुने गए हैं फिरते ।-साकेत, पृ. ३०७। . के लिये उठाई जाय । मुक्का । इक। घनाका । जैसे--यूता , धूनमा संहा ना. [देश०] व्याह की पगड़ी में लटकनेवाला झन्चा। तानना। २.बँधी हुई मुठ्ठी का प्रहार । ०-विटयों से भट घुना-वि० [देश॰] १. चतुर । अनुभवी । खुर्राट। २.१० 'पन्ना'। मार, शत्र का तोड़ दिया घुसों से वश । साकेत, पृ०३६६ घूम-संशा का [हिं घूमना] १. वूमने का भाव । घुमाव । फेर। . • क्रि० प्र०- खाना ।-चलाना ।- जड़दा- तानना |-- चश्कर । २. वह स्थान जहाँ से किसी योर मुड़ना पडे । मोडा मारना ।--लगाना। २. निद्रा । उ० -प्रिय फिरो, फिरो हा ! फिदो फिगे!न ' यौ०-घसेवाज सेवाजी-घूसों की लड़ाई। मुष्टियुद्ध। इस नोह की घूम से घिरो।-साफत, पृ. ३१२। .. (अं० वाक्सिग)। .... : मधुमारा-वि० [हिं० घूमना] १. बड़े घेरे का । घेरदार । जैसे,-