पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३४०

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घोंसुप्रा. १४१७ घोटापौवा घोंसुपा -संज्ञा पुं० [हिं० घोंसला] घोंसला । खोता । उ०-यचे हैं। जैसे- चंदन घिसना; पर घोटने का प्रभाव अाधार (जैसे,- न बड़ी सबील हू चील घोंसुग्रा मांस ।--बिहारी (शब्द०)। कपड़ा, कागज प्रादि ) या उसपर रखी हुई किसी वस्तु घोका- संज्ञा पुं० [सं० घोष शब्द । ध्वनि । उ०--बड़े घोक (जैसे, सिल पर रखी हुई वादाम, भांग मादि) पर वांछित चायाँ । घड़ी दोय धावां।--रा० रू०, पृ० १६२ । होता है। जैसे,--- कपड़ा घोटना, भांग घोटना । पीसने का घोखना-क्रि० स० [सं/ घुष्] धारणा के लिये वार बार पढ़ना। प्रभाव केवल आधार पर रखी.हुई वस्तु ही पर वांछित होता . स्मरण रखने के लिये बार बार उच्चारण करना । पाठ की है। जैसे,--भांग पीसना, पाटा पीसना । रगड़ने और घोटने बार वार आवृत्ति करना । रटना । घोटना। में भी वही अंतर है, जो घिसने और घोटने में है। . . घोखवाना-क्रि० स० [हिं० घोखना का रूप] वार बार कह संयो॰ क्रि०-डालना-देना। . .. .. लाना। याद कराना। रटवाना। ३. किसी पात्र में रखकर कई वस्तुओं को बट्टे यादि से. रगड़कर घोखाना-त्रि० स० [हिं० घोखना] ६० 'घोखवाना' । परस्पर मिलाना । हल करना। ४. कोई कार्य, विशेपतः लिखने घोखु-वि० [हिं० घोखना] वार बार पाठ याद करनेवाला । रट्ट । पढ़ने का कार्य, इसलिये बार वार करना कि उसका अभ्यास उ०---परीक्षा का फल प्रगट होते होते उसके अधिकांश रट्र हो जाय । अभ्यास करना । मश्क करना । जैसे,-सबक और घोखू मित्र उससे मीलों पीछे छूट जाते ।-शरावी, घोटना, पट्टी या तत्ती घोटना। ५. डांटना । फटकारना । वहुत विगड़ना । जैसे,-अफसर ने बुलाकर उन्हें खुद कोंटा। पृ०३७ । घोगर--संक्षा पुं० [देश॰] एक पेड़ । वि० दे० 'खरपत'। ६. छुरा या उस्तरा फेरकर शरीर के बाल दूर करना। घोघा- संज्ञा पुं० [देश॰] वटेर फंसाने का जाल । मूड़ना । ७. (गला) इस प्रकार दवाना कि सांस रुक जाय । (गला) मरोड़ना। घोघट -संञ्चा पुं० [सं० अवगुण्ठन] दे० 'घूघट' । उ०-खने खने । मुहा०-गला घोटना= दे० 'गला' में मुहा० . . . घोघर विघट समाज । खने खने अब हकारलि लाज ।- घोटना-मंशा पुं०१.पोटने का प्रौजार । वह वस्तु जिससे कुछ घाटा विद्यापति, पृ०६। जाय । जैसे-भंगघोटना । उ०--काया कुडो कर पवन का घोघा--संथा पुं० [देश॰] एक प्रकार का छोटा कीड़ा जो चने की घोटना । पल्टू ०-पृ० ६४ । २. रंगरेजों का लकड़ी का वह फसल को हानि पहुचाता है। यह कीड़ा सरदी से पैदा होता कुदा जो जमीन में कुछ गड़ा रहता है और जिस पर रखकर और चने की घंटियों के अंदर घुसकर दाने खा जाता है, रेंगे कपड़े घोटे जाते हैं। जिससे खाली घंटी ही घंटी रह जाती है। घोटनी-संज्ञा श्री० [हिं० घोटना ] वह छोटी वस्तु जिसमें या घोघी-संज्ञा स्त्री० [देश॰] दे० 'घुग्घी' । उ०-पौला सबके पगन जिससे कोई वस्तु घोटी जाय । सीस घोषी के छतरी 1-प्रेमघन०, भा० १, पृ०४८। घोटवाना-- किस घोटना का प्रे० रूप] १. रगड़वाना। घेचिल--संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] एक प्रकार की चिड़िया । घोटकर चिकना कराना। २. पालिश कराना । ३. कुंदी. घोट'- संज्ञा पुं० [सं०] १. घोड़ा । अश्व । २. (लाक्षणिक) घोड़े के कराना । ४. सिर या दाढ़ी आदि के बाल वनवा डालना। समान अर्थात् युवक । युवा पुरुष । उ०-उत्तर प्राज स उत्तरइ घोटा-संत्रा हिं० घोटना] १. वह वस्तु जिससे घोटने का काम ऊपड़िया सी कोट : काय रहेसई पोयणी काय कुचारा घोट । किया जाय । २. रंगरेजों का एक औजार जिसे वे रंगे हुए - ढोला०, दू० २६६ । कपड़ों पर चमक लाने के लिये रगड़ते हैं । दुवाली । मोहरा। घोट- संछ पुं० [हिं० घोंटना] घोंटने की क्रिया या भाव । ३. घुटा हुआ चमकीला कपड़ा। ४. भाँग घोटने का सोंटा या घोटक-संशा पुं० [सं०] घोड़ा । अश्व । यौल-घोटकमुख= दे० 'घडमुहीं'।। डंडा । ५ बांस का वह चोंगा जिससे घोड़ों, बैलों आदि पशुनों को नमक, तेल या और कोई औषध पिलाई जाती है । ६. नग घोटकारि-श्री० पुं० [सं०] घोड़े का शत्र । भैसा । महिष (को०)। जाड़ियों का एक औजार जिससे वे डकि को चमकीला बनाते हैं। घोटड़ा- संक्षा पुं० [हिं० घोट+डा (प्रत्य॰)] युवक । उ०-उज्जल दंता घोटड़ा करहइ चढ़ियउ जाहि । –ढोला...दू० १३६ । विशेष- इस प्रौजार में बाँस की नली में लाख देकर गोरा पत्थर घोटना--कि स० [ सं घुट-आवर्तन या प्रतिघात करना] १. का एक टुकड़ा चिपकाया रहता है। इसी से डाँक को रगड़- वि.सी वस्तु को दूसरी वस्तु पर इसलिये बार बार रगड़ना कर चमकदार करते हैं। कि वह दूसरी वस्तु चिकनी और चमकीली हो जाय । जैसे,- ७. रगड़ा । घुटाई । घोटने का काम । ८. क्षार हजामत । कपड़ा घोटना, तस्ती घोटना, दीवार घोटना । कागज घोटना। क्रि० प्र०-फिरवाना। २. किसी वस्तु को बट्ट या और दूसरी वस्तु से इसलिये घोटाई-संशा सी० [हिं० घोटाना+पाई (प्रत्य॰)] १. घोटने बार बार रगड़ना कि वह बहुत बारीक पिस जाय । रगड़ना। . का भाव । २. घोटने की क्रिया । ३. घोटने की मजदूरी।। जैसे-भाँग घोटना, सुरमा घोटना। घोटाघौवा--संक्षा पुं० [देश॰] रॅवद वीनी को जाति का एक पेड़। विशेष- घिसने और घोटने में यह अंतर है कि घिसने का प्रभाव, कनपुटकी । रेवाचीनी । सीरा। जो वस्तु ऊपर रखकर फिराई जाती है, उसपर वांछित होता. विशेष--यह वृक्ष खासिया की पहाड़ियों, पूरवी बंगाल तथा