पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३४४

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घोलमघोल १४२१ घ्राण मुहा०-घोल पीना=(१) शरबत की तरह पी जाना । (२) यो-पोषणापत्र कर पा जिसमें मसाधारणसुभनार्य सहज में मार डालना । सहग में नष्ट कर देना। (३) मुक राजाभा पादिलिगी। नागना विभनि। न समझना । तृण समझना । पोलकर पी जाना--(२) सहम ३. गर्जन पनि मद। प्राधान। में मार डालना । देयते देखते नाश कर डालना । (२) कुछ घोपयित्न-संधा[40] १. कोकिल २igy | ३. पोषणा न गिनना । (३) किसी विषय में पूर्णत: निष्णात होना। मा मुनादी करनेवाला। ४. पारा । पारंगत होगा। घोगलता-या श्रीमतोरई। घोलमघोलहुसंवा पु० [हिं० घोल ] पालमेल । घोटाला । घोषवत - ja [१०]ह गद जिसमें पोप प्रयत्नपान प्रक्षर ड०---हाहा हूहू मैं मुयो करि करि पालमपोल पर प्रधिक हों। ० भा० १, पृ० ३१६ ।। घोण्यती--संघा • [0] धीमा ।। घोला-संधा पुं० [हिं० घोलना] २. यह जो घोलकर बना हो। घोपा-- पी० [१०] १. २.दगी (२०) । जैसे,-घोली हुई पफीमा घोपाल-संद घोष बंगालो मालागी की इस प्रालि मुहा०-धोले में डालना=(१) ग्रटाई में अलना । रोक घोसना:-- ० [हिं०1० पोरणा । रखना । फैसा रगना । उसझन में डाल रचना किसी काम में बहुत देर लगाना । (२) किसी काम में टालगदल गारना। घासना --fi स० [माधोपणा] पोषित करना । उमारित घोले में पड़ना = चनेड़े में पड़ना । उलझन में फंसना। ऐसे करना। काम में फेसना जो जल्दी न निगटे। घोसिनि -संशा सी० [मपोप नि (प्रस) पालिन । मोगी। २. नाली जिसके द्वारा सेत सीनने के लिये पानी ले जाते हैं। उ.-दिन दिन पो सपिएलनिनोय। रह पोनिनि पारस वरहा। मूले |-- वि० १६५ । घोलुवा'---वि० [हिं० घोलना+उया (प्रत्य०)] पोला हमा। जो घोसी-in. [सं० पोष] प्रहार । पाता । पनवाला। घोलकर बना हुप्रा हो। विशेष--जो महीर मुसलमान दो बोली कलाते हैं। घोलुवा संग पुं० १. पोली दुई पतली दया । । २. रसा। घौटना:-शि०स० [२] . पटना' 130-धी सो पाटि शोरगा। ३. पानी में घोली हुई मफीम। रहलो पट भीतर नुगमो सो मुदरासा-मुंदर , मुहा०-घोलुवा पीना-कड़ई वस्तु (दया पदि) पीना । भा० १, पृ०१५३ घोलुया घोलना किसी कार्य में वन देर करना। घाँटु:-- शि०it टना'150---पौनसी भई की। धोप-संया पुं० [सं०] १. पाभीरपल्ली। अहीरों की वस्ती। 3- रपटि रदि सगरे परै । ३२४॥ वकी जो गई घोप में छल करि यसुदा को गति दीनी ।- घोर, पौरा--संथा (हि. परि] २० पोद। सर०,१११२२ । २. अहीर । ३. बंगाली कायस्थों का एक घोद-संपादिका गूछागोदासे,- नेता पोद। भेद । ४ गोशाला। उ०--(क) ग्राजु कन्हेया बहुत बच्योरी। घोर... test पयर120 पोर। उ.- एक एक खेलत रह्यो घोप के बाहर कोढ पायो शिनु का रच्यो ।- हमारकले फले हैं। मेला०, पृ०७३। सूर (शब्द०)। ५. तट । किनारा । ६. ईशान कोण का एक घोरना - स. हि. घोर "पोरना। 30-मना देवा । ७. पाद । यावाजा नाद। उ०--होन लग्यो मगलिन रत में रस घोरत काह।-ह. रासो, पृ. ५ में हरिहारन को घोग-पगाकर पं०, पृ०६०।६. घोश-संशहि०१० 'धोर'। गरजने का शब्द । ६. ताल के ६० मुरुगभेदों में से एक। १०. पादों के उच्चारण में ११ बाह्य प्रयलों में से एक। घोरी--संवा श्री [हिं०] २० पोर' । उ---लागि मुहाईहरफारमोरी। इस प्रयत्न से वर्ण बोले जाते हैं-, ध, ज, झ, ल, 8 उनै रही केरा के धौरी।--बायसी ग्रं, पृ० १३ । प, व, भ, छ, न म, व, र, ल, य, पौर हा घोहा ---या पु. [हिं० धाव-+-हा (प्रत्य॰)] चुटला घाम या ११. शिव । १२. जनयुति । अफवाह (को०)। १३. कुटी। कोई फल । वह फल जिसको गुच चोट लग चुकी हो। .. झोपड़ी (को०) । १४ कांस्य 1 कांसा (को०)। धौहा--वि० जिसे पाय लगा हो । चुटीला । पायल । घोषक-संवा ० [सं०] घोषणा या मुनादी करनेवाला (को०) - नाट करनेवाला । नाश करनेवाला। घोषक - वि० घोप करने वाला को। घोषकुमारी---संज्ञा स्त्री॰ [संघोप-+-कुमारी] गोपवालिका । गोपिका। विशेप-यौगिक शब्दों के अंत में इसका प्रयोग होता है। जैसे- उ०-प्रात समे हरि को जस गावत उठि घर घर राव पातधन, विपन, पुण्यध्न धादि। घोपकुमारी।-भारतेंदु ० भा०२, पृ०.६०६। ध्यूटा सी० [देश॰] २० 'घूट' । घोपण-संथा पुं० [सं०] दे० 'घोषणा' [को०] 1 नाग---संघात्री० [५०] [पि प्रय] १. नाफा जोम त्वा च . घोषणा-संशा स्रो० [सं०] १. उच्च स्वर से किसी बात की सूचना । घाण रसना रस को ज्ञान ।---दर पं०, भा०.२, २. राजाज्ञा मादि का प्रचार । मुनादी । डुग्गी। पृ० ५८८।