पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३४७

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चंडकौशिक चलता 11. चलता-संशी बो० [सं० चञ्चलता] १. अस्थिरता ! चपलता। सुदर घन स्वाति को माई। चाटक चंबुपुटी न समाई।- २. नटखटी 1 शरारत। नंद. ग्रं॰, पृ० १२६ । चंचलताईए-संवा पी० [ मे० चञ्चलता+हि० ई ( प्रत्य० )] चंचुप्रवेश-संवा पुं० [सं० चञ्च प्रवेश] किसी विषय का थोड़ा ज्ञान । .. दे० 'चंचलता' 1 . साधारण या अल्पज्ञान [को०] । चला-संझा की. [सं० चञ्चला] १. लक्ष्मी। २. बिजली। ३. चंचुप्रहार-संक्षा पुं० [सं० चंचु प्रहार ] चोंच से प्रहार करना । पिप्पली । ४. एक वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में १६ अक्षर _ चोंच से मारना किो०] 1 चंचुभत् -मंत्रा पुं० [सं० चचुभृत ] पक्षो। होते है ( र ज र ज र ल-515 151 515 1515151)। इसका दूसरा नाम चित्र भी है। जैसे,—री जरा जुरो लखो चंचुमान-संचा पुं० [सं० चंचुनत्] पक्षी। चंचुर'-वि० [सं० चञ्च र] दक्ष । निपुण । कहाँ गयो हमैं विहाय । कुज वीच मोहि तीय ग्वाल वाँसुरी चंचुर-संज्ञा पुं० चेंच का साग। ' बजाय । देखि गोपिका कहूँ परी जुटूटि पुप्प माल । चंचला चंचुल-पुं० [सं० चञ्चल ] हरिवंश के अनुसार विश्वामित्र के सखी गई बिलायं ग्राजु नंदलाल । एक पुत्र का नाम । चंचलाई.91--संज्ञा स्त्री० [सं०चनल+हिं० पाई (प्रत्य॰)] चंचुसूची--संज्ञा पुं० [सं० चश्च सूची] हंस की जाति की एक चिड़िया। ... चपलता । चंचलता ! अस्थिरता । चुलबुलाहट । एक प्रकार का बत्तख । कारंडव पक्षी। चंचलाय--संज्ञा पुं० [सं० चञ्चलाल्य] एक सुगंधित पदार्थ [को०] । चंचलातिशयक्ति-संवा स्त्री. म. चञ्चलातिशयोक्ति ] ३०१ कि चंचू - संज्ञा स्त्री० [सं० चश्च] चोंच [को०] ।

'अतिशयोक्ति' । उ०. बरनन हेत प्रसक्ति ते उपजत हैं जहं चचूर्यमारण-वि० [सं० चंचूर्यनारण] [वि०सी० चंचूर्य मारग] अमत्रता

.... काज । चंचलातिशय रक्ति तहँ वरनत है कविराज !-मति पूर्वक संकेत या इशारा करनेवाला (को०) । , पृ. ३८। चंट-- वि० [सं० चण्ड] १. चालाक । होशियार । सयाना । २. धूर्त । चंचलास्य संज्ञा पुं॰ [सं० चञ्चलास्य] एक सुगंधित द्रब्ध । छटा हुपा । चालबाज । चलाहटश स्त्री० [सं० चञ्चल+हि० आहट (प्रत्य०)] चंड-वि० [सं० चण्ड] [वि० संशा चंडा] १. तेज । तीवण । उग्र। १० 'चंचलता'। .. प्रखर । प्रबल । घोर । २. बलवान् । दुर्दमनीय । ३. कठोर। चचली -मंचा स्त्री सिं० चञ्चली] चंचरी नामक वर्णवृत्त । वि० दे० कठिन । विकट । ४. उन स्वभाव का। उद्धत । क्रोधी। .. 'चंचरी-४ । गुस्सावर । ५. जिसके लिंग के अनभाग का चमड़ा कटा हो चंचा-संवा स्त्री० [सं० चञ्चा] १.धास फूस या बेत यादि का पुतला (को०)। ६. उपण । तप्त। जैसे.- बंडांशु (को०)। ७. तेज । जिसे तेतों में पक्षियों आदि को डराने के लिये गाड़ते हैं । २. स्फूतिमान (को०)।

- बेत की वनी हाईकोई चीज जैसे बटाई ग्रादि (को०)। ३. चंड-संक्षा पुं० १. ताप । गरमी । २. एक यमदूत । २. एक दैत्य

. निकम्मा या सारहीन व्यक्ति (को०)। जिसे दुर्गा ने मारा ग। ४. कार्तिकेय । ५. एक शिवगण। ६. यो०--चापुरूप (१) घास फस या बेत आदि का पुतला एक भैरव 1७. इमली का पेड़ 1८.विष्णू का एक पारिपद। .. जो खेतों में जानवरों आदि को डराने रोकने के लिये रख है. राम की सेना का एक बंदर । १०. सम्राट् पृथ्वीराज का एक सामंत जिसे साधारण लोग 'चौड़ा' कहते थे। इसका ' ' ' . . दिया जाता है । (२) निःसार व्यक्ति । तुच्छ व्यक्ति । नाम चामुंड राय था । ११ पुराणों के अनुसार कुबेर के पाठ चु'-संज्ञा पुं० [सं० चञ्] १. एक प्रकार का साग । चेंच । पुत्रों में से एक। विशेप-यह बरसात में उत्पन्न होता है और इसमें पीले पीले विशेप----यह शिवपूजन के लिये तू बकर फूल लाया था, और ... फूल और छोटी छोटी फलियाँ लगती हैं। यह कई तरह का इसी पर पिता के शाप से जन्मातर में कंस का भाई हमा होता है। वैद्यक में यह शीतल, सारक. पिच्छिल और या और कृष्ण के हाथ से मारा गया था। -: बलकारक माना जाता है। १२. शिव (को०)। १३. क्रोध । पावेश (को०)। -- . २. रेंड का पेड़ । ३. मृग । हिरन । चंडकर-संचा पुं० [सं० चएउकर] तीक्षण किरणवाला-सूर्य । उ०- पचु-वि० १.ख्यात । प्रसिद्ध । यशस्वी। २. दक्ष । कुशल । जयति घय बालकपि कैलि कोतुक उदित चंडकर मडल यास- . . . . जैसे-अक्षरचंचु [को० । का ।—तुलसी ग्रं०, पृ० ४६६ । - चंचु-संवा श्री चिड़ियों को त्रोंच । चंडकौशिक-संद्या पुं० [मं० घराउकौशिक] १. एक मुनि का नाम । - चंचुका-संपली. [सं० चञ्चुका[ चोंच। २. एक नाटक जिसमें विश्वामित्र और हरिश्चद्र की कया .. चंचपन-संज्ञा पुं० [सं० चञ्चु पत्र] चेंच का साग । - है। ३. जैन पुराणानुसार एक विपधर सांप। चंचुपुट-संशा को सं० चञ्चपुट] चोंच । ठोर । । विशेप-इतने महावीर स्वामी के दर्शन कर डसना ग्रादि छोड़ चचुपुटी-संवा स्त्री०सं० चच पुटी] दे० 'चंचपुट' । उ०-ज्यों दिया था और बिल में मुह डाले पड़ा रहता था। यहां तक