पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३४८

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चंडता १४२५ चडालिनी कि जब उसे चींटियों ने घेरा, तब भी उसने उनके दबने के चंडशक्ति'-वि० [सं० च एउशक्ति दे० 'चंडविक्रम' कोना डर से करवट तक न वदली। गंडशक्ति--संज्ञा पुं० बलि की सेना के एक दानव का नाम को०]। . चंडता-संज्ञा स्त्री० [सं० चण्डता १ उग्रता । प्रबलता। घोरता। चंडशील-वि० [सं० चण्डशील] यामी को०] । २. बल । प्रताप । उ-तुलसी लपन राम रावन विबुध चडांशु---संधा पुं० [सं०चएडाशु] तीक्ष्ण किरणवाला सूर्य । उ०- विधि चक्रपानि चंडीपति चंडता सिहात है । तुलसी भरे अतर के अमल विराजत कनक पराता । चार चंद्र . ... चंडांशु अकारहि थार विविध अवदाता।-रघुराज (शब्द०)। चंडतुडक संज्ञा पुं० [सं० चण्डतुण्डक] गरुड़ के एक पुत्र का नाम। चंडा--वि० श्री० [मं चर डा] उग्र स्वभाव की । कर्कशा । ३० चंडत्व-संवा पुं० [सं० चण्डत्व उग्रता । प्रवलता । 'चंड। चंडदीधिति- संज्ञा पुं० [सं० चण्डदीधिति] सूर्य । चंडार-- संशा सौ. १. अप्टनायिकाओं में से एक । दुर्गा । २. चोर । चंडनायिका--संथा स्त्री० [सं० चएडनायिका] १. दुर्गा । २. तांत्रिकों नामक गंधद्रव्य । ३. केवाच । कौछ । ४. सफेद दूव । ५.. की अष्टनायिकाओं में से एक जो दुर्गा की सखी मानी सौंफ । ६. सोवा । ७. एक प्राचीन नदी का नाम। . जाती हैं। चंडाई@f-~-संज्ञा स्त्री० [सं० चण्ड+हिपाई (प्रत्य॰)] १. उतावला- चंडभानु--संञ्चा पुं० [सं० चण्डभानु] दे॰ 'चंडकर' [को०) । ___ पन । २. शीघ्रता । ३. उपद्रव । अत्याचार [फो०] । गंडभार्गव--संज्ञा पुं० [सं० चण्डमार्गव च्यवनवंशी एक ऋषि । चंडात- संज्ञा पुं० [सं० चएडात] १. एफ सुगंधित पान या पौधा। ' विशेष—यह महाराज जनमेजय के सर्पयज्ञ के होता थे। २. सुगंधयुक्त करवीर (को०)। चंडमुड-संज्ञा पुं० [सं० चण्डमुण्ड] दो राक्षसों के नाम जो देवी चंडातक-संशा पुं० [सं० चण्डातक] १. स्त्रियों की चोली या कुरता। २. लहंगा । साया (को०)। के हाथों से मारे गए थे। चंडाल' संज्ञा पुं० सं० चाण्डाल] [स्त्री० चंडालिन, चंडालिनी] १.' चंडमुडा-संज्ञा स्त्री० [सं० चण्डमुण्डा चामुंडा देवी। चांडाल । एवपच । डोम । वि० दे० 'चांडाल' । २. एक वर्ण- गंडमुडी-संज्ञा स्त्री० [सं० चण्डमुण्डी] महास्थान स्थित तांत्रिकों की संकर जाति जिसकी उत्पत्ति शुद्र पिता और ब्राह्मणी से मानी एक देवी। जाती है (को०) । ३. इस जाति का व्यक्ति (को०)। चंडरश्मि--संज्ञा पुं० [सं० चण्डरश्मि] सूर्य को०। चंडालरे--वि० नीच कर्म करनेवाला । कर कर्म करनेवाला [को०] । चंडरसा-संधा पुं० [सं० चण्डरला] एक वर्णवत्त का नाम जिसके चंडालकंद-मंशा पुं० [सं० चण्डालकन्द ] क कंद। . . प्रत्येक चरण में एक नगण और एक यगण होता है । इसी को विशेष यह कफ-पित्त नाशक, रक्तशोधक और विषघ्न माना चौबंसा, शशिवदना और पादांकुलक भी कहते हैं। जैसे,-- . जाता है। पत्तियों की संख्या के हिसाब से इसके पांच भेद नय धरु एका, न अनेका । गहु पन साखो, शशिवदना सो। । माने गए हैं। चंडरुद्रिका-संज्ञानी [सं० चण्डर द्रिका] तांत्रिकों के अनुसार एक चंडालतो-'संचा• [सं० चण्डालता] १. चंडाल होने का भाव । प्रकार की सिद्धि जो प्रष्टं नायिकानों के पूजन से प्राप्त २. नीचता । अधमता । होती है । चंडालत्व-संज्ञा पुं० [सं० चए डालत्व । दे० 'चंडालता'। गंडरूपा--संश्चा [सं० घण्टरूपा] एक देवी [को०] । चंडालपक्षी-संशा पुं० [सं० चण्डालपक्षिन्] काक । कौवा । उ० -- चांडवान्--- वि० [सं० चण्डवत] [दि० स्त्री० चांडवती) १. उष्ण । २... सठ स्वपक्ष तव हृदय विसाला । सपदि होहि पक्षी गंडाला।- उग्र। प्रखर (को०] । मोनस, ७११२ । .. . चंडवती---संज्ञा स्त्रीः [सं० चएडवती] १. दुर्गा । २. अष्ट नायिकाओं चंडालबाल' - संज्ञा पुं० [हिं० चंडाल-बाल वह कड़ा और मोटा का में से एक। . वाल जो किसी के माथे पर निकल पाता है और बहुत गंडवात-संशा पुं० [सं० चएडवात] तेज चलनेवाली हवा जिसके बीच .. अशुभ माना जाता है। . . में कभी कभी पानी भी घरसता हो (को]। , चंडालवल्लकी--संज्ञा दी [सं० चण्डालवालकी ] दे॰ 'चंडाल- चंडविक्रम--[सं० चराउविक्रम] बहुत अधिक शक्तिवाला प्रचंड वीणा।' सावितवाला [को०] । . चंडालवीणा-पंद्या श्री०सं० चण्डालवीणा] एक प्रकार का तंदूरा चंडवत्ति--वि० [सं० चएउवृत्ति] १..विद्रोह करनेवाला । विद्रोही। या चिकारा । . २. जिद्दी । हठी को०] । ....: चंडालिका-- सक्षा स्त्री० [सं० चण्डालिका ].दुर्गा । २. चंडाल- चंडवृष्टिप्रपात-संज्ञा पुं० [सं० चण्डवृष्टिप्रपात] एक दंडक वृत्त, . वीणा। ३. एक पेड़ जिसकी पत्तियां आदि दया के काम में . जिसके प्रत्येक चरण में दो नगण (111) और सात रगण पाती हैं। (sis) होते हैं.। जैसे,--न नर गिरि धरै भूलि के राख जो चंडालिनी-संद्या स्त्री॰ [सं० चएडालिनी] १. चंडाल वर्ण की स्त्री। चंडवृष्टि प्रपाताचुलै गोकुलै । २. दुष्टा स्त्री। पापिनी स्त्री। ३. एक प्रकार का दोहा जो