पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३५०

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चंदन चंदक-संशा पुं० [सं० चन्दक ] १. चंद्रमा। २. चाँदनी । ३. एक प्रकार की छोटी चमकीली मछली। चाँद मछलो । ४. माये पर पहनने का एक अद्ध चंद्राकार गहना।। विशेष—इसके बीच में नग और किनारे पर मोती जड़े रहते हैं। सिर में यह तीन जगह से बंधा रहता है। ५. नय में पान के आकार की बनावट जिसमें उसो आकार का नग या हीरा बैठाया रहता है और किनारे पर छोटे छोटे मोती जड़े रहते हैं। चंदकपुष्प-संज्ञा पुं० [सं० चन्दकपुष्प] १. लौंग। २. दे० 'चंद्रकला'। चंदचूड़-संज्ञा पुं० [सं० चन्द्रचूड] शिव (को०] । चंदचूर -संज्ञा पुं० [सं० चन्दन | शिव । चंदधर--संज्ञा पुं० [भ० चन्द्रधर ] ध्र पद राग का एक भाग (को०] । चंदन संशा पुं० [सं० चन्दन] १. एक पेड़ जिसके हीर की लकड़ी बहुत सुगंधित होती है और जो दक्षिण भारत के मैसूर, कुर्ग, हैदराबाद, करनाटक, नीलगिरि, पश्चिमी घाट आदि स्थानों में बहुत होता है । उत्तर भारत में भी कहीं कहीं यह पेड़ लगाया जाता है। चंदन की लकड़ी औषध तया इम, तेल यादि बनाने के काम में पाती है। हिंदू लोग इसे घिसफर इसका तिलक लगाते हैं और देवपुजन आदि में इसका व्यवहार करते हैं। विशेष-चंदन की कई जातियां होती हैं जिनमें से मलयागिरि या श्रीखंड (सफेद चदन ) ही असली चंदन समझा जाता है और सबसे सुंगधित होता है। इसका पेड़ २०, ३० फुट ऊँचा और सदाबहार होता है। पत्तियाँ इसकी डेढ़ इंच लंबी और वेल की पत्तियों के आकार की होती हैं। फूल पत्तियों से अलग निकली हुई टहनियों में तीन तीन चार चार के गुच्छों में लगते हैं। यह पेड़ प्रायः सूखे स्थानों में ही होता है। इसके हौर की लकड़ी कुछ मटमैलापन लिए सफेद होती है जिसमें से बड़ी सुदर महक निकलती है। यह महक एक प्रकार के तेल की होती है जो लकड़ी के अंदर होता है। जड़ में यह तेल सबसे अधिक होता है, इससे तेल या इत्र खींचने के लिये इसकी जड़ की बड़ो मांग रहती है। चदन की लकड़ी से चौखटे, नक्काशीदार संदूक प्रादि बहुन से सामान वनते हैं जिनमें सुगंध के कारण घुन नहीं लगता। हिंदू लोग इसकी लकड़ी को पत्थर पर पानी के साथ घिस- कर तिलक लगाते हैं। इसका बुरादा धूप के समान सुगंध के लिये जलाया जाता है। चीन, वरमा आदि देशों के मंदिरों में चंदन के बुरादे की धूप बहुत जलती है। चंदन का पेड़ वास्तव में उस जाति के पेडो में है, जो दूसरे पौधों के रस से अपना पोपण करते हैं (जैसे,-बाँदा, कुकुरमुत्ता आदि)। इसी से यह घास, पौधों और छोटी छोटी झाड़ियों के बीच में अधिक उगता है। कौन कौन पौधे इसके आहार के लिये अधिक उपयुक्त होते हैं, इसका ठीक ठीक पता न चलने से इसे लगाने में कभी कभी उतनी सफलता नहीं होती। यों . • ही अच्छी उपजाऊ जमीन में लगा देने से पेड़ बढ़ता तो खूब है, पर उसकी लकड़ी में उतनी सुगंध नहीं होती। सरकारी जंगल विभाग के एक अनुभवी अफसर की राय - है कि चंदन के पेड़ के नीचे खूब घास पात उगने देना चाहिए, उसे काटना न चाहिए । धास पात के जंगल के बीच में बीज पड़ने से जो पौधा उगेगा और बढ़ेगा, उसकी लकड़ी में अच्छी सुगंध होगी। श्रीखंड या असली चंदन के सिवा और बहुत . से पेड़ हैं जिनकी लकड़ी चंदन कहलाती है। जंजीवार (पफ्रीका) से भी एक प्रकार का श्वेत चंदन पाता है, जो । मलयागिरि के समान व्यवहृत होता है। हमारे यहाँ रंग ' के अनुसार चंदन के कुछ भेद किए गए हैं। जैसे,-श्वेत । चंदन, पीत चंदन, रक्त चंदन इत्यादि । श्वेत चंदन और पीत। चंदन एक ही पेड़ से निकलते हैं। रक्त चंदन का पेड़ भिन्न .. होता है । उसकी लकड़ी कड़ी होती है और उसमें महक भी । वैसा नहीं होती। निघंटु रत्नाकर प्रादि वैद्यक के ग्रंथों में चंदन के दो भेद किए गए है-एक वेट्ट, दूसरा सुक्कडि मलयागिरि के अंतर्गत कुछ पर्वत हैं जो वेट्ट कहलाते हैं। अतः उन पर्वतों पर होनेवाले चंदन का भी उल्लेख है जिसे', कैरातक भी कहते हैं। संभव है, यह किरात देश (पासाम । और भूटान ) से आता रहा हो। चंदन के विषय में अनेक प्रकार के प्रवाद लोगों में प्रचलित हैं। ऐसा कहा जाता है। कि चंदन के पेड़ में बड़े बड़े सांप लिपटे रहते हैं। चंदन अपनी सुगंध के लिये बहुत प्राचीन काल से प्रसिद्ध है। अरब- वाले पहले भारतवर्ष, लंका आदि से चंदन पश्चिम के देशों में ले जाते थे । भारतवर्ष में यद्यपि दक्षिण ही की ओर चंदन विशेष होता है, तथापि उसके इत्र और तेल के कारखाने कन्नौज ही में हैं। पहले लखनऊ और जौनपुर में भी कारखाने । थे । तेल निकालने के लिये चंदन को खव भहीन कूटते हैं।' फिर इस बुकनी को दो दिन तक पानी में भिगोकर उसे । भभके पर चढ़ाते हैं। भाप होकर जो पानी टपकता है, उसके ऊपर तेल तैरने लगता है। इसी तेल को काटकर रख लेते हैं। एक मन चदन में से २ से ३ सेर तक तेल निकलता है। अच्छे चंदन का तेल मलयागिरि कहलाता है और घटिया मेल का कठिया या जहाजी। चंदन भोपध के काम में भी बहुत प्राता है। क्षत या धांव इससे बहुत जल्दी सूखते हैं। वैद्यक में चंदन शीतल और कड या तथा दाहा पित्त, ज्वर, छर्दि, मोह, तृपा प्रादि को दूर करनेवाला .. माना जाता है। पर्या-श्रीखंड। चंद्रकांत । गोशीर्ष । भोगिवल्लभ । भद्रसार ।। मलयज । गंधसार । भद्र थी। एकांग । पटरी । वर्णक। भद्राश्रय । सेव्य । रौहिण । ग्राम्य । सर्पट । पीतसार। महर्घ । मलयोद्भव । गंधराज । सुगंध । सपवास । शीतल 1. शीतगंध । तैलपरिण क । चंद्राति । सितहिम, इत्यादि । २. चंदन की लकड़ी। चंदन की लकड़ी या टुकड़ा। क्रि०प्र०-घिसना --रगड़ना । मुहा०-चंदन उतारना=पानी के साथ चंदन की लकड़ी को घिसना जिसमें उसका अंश पानी में घुल जाय । ३. वह लेप जो पानी के साथ चंदन को घिसने से बने । घिसे हुए चंदन का लेप।