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चंदिनि, चंदिनी १४२६

चंद्रकांत

चंदिनि, नंदिनी-वि० चाँदनी । उजेली। उ०-~-तिन्हहिं सुहाइ । जैसे.--मुखनंद्र, चंद्रमुखी । कहीं कहीं यह श्रेष्ठ का अर्थ भी न अवध बधाना । चोरहि चंदिनि रात न भावा ।--तुलसी देता है। जैसे, पुरुषचंद्र । वि० दे० 'चंद्रमा। . (शब्द०)। २. संख्या सूचित करने की काव्य होली में एक की संख्या । ३. चंदिर-संज्ञा पुं० [सं० चन्दिर] १.गंद्र मा। उ० --(क) रच्यो मोर की पूछ की चंद्रिका । उ०- मदन मोर के चंद्र की विश्वकर्मा सो मंदिर । परम प्रकाशित भानहु चंदिर।- कल रुनि निदरति तन जो ति -तुलसी (शब्द०)। ४. रघुराण (शब्द०) (ख) हेम कलश कल कोट कंगरे। -- कपूर । ५. जल । ६. सोना। रवर्ण । ७. रोचनी नाम का कहु मंदिर मंदिर सम रूरै ।--रघुराज (शब्द०)२.हाथी । पौधा । ८. पौराणिक भूगोल के १८ उपद्वीपों में से एक ! ६. ३. कयूर (को०)। वह बिंदी जो सानुनासिक वर्ण के ऊपर लगाई जाती है। १०.. चंदिरा-संवा त्री० [सं० चन्दिर] चाँदनी। ज्योत्स्ना । 30- लाल रंग का मोती। ११. पिंगल में टगरण का दसवा भेद शारदिया चंदिरा सी, कौन है कर धन्य जो मधुभार मुझपर (15)। जैसे-मुरलीधर । १२. हीरा । १३. मृगशिरा डालती :--अग्नि०, पृ० २५॥ नक्षत्र । १४. कोई पानंददायफ वस्तु । हर्षकारक वस्तु । चंदे--अव्य० [फा०] कुछ दिन । थोड़ा समय । पाल्हादजनक वस्तु । १५. नेपाल का एक पर्वत । १६. . चंदेरी-संशा सी० [हिं० चंदेरी दे० 'चंदेरी'। चंद्रभागा में गिरनेवाली एक नदी। १७. अर्घ विसर्ग का : चंदेरीपति-संज्ञा पुं० [हि चंदेरी+पति] दे० 'प'देरीपति' । चिह्न (को०)। १८. लाल या रक्तवाँ मोती (को०) । १३. चंदेल-- संशा पुं० [म. चान्देल] क्षत्रियों की एक शाखा जो किसी सुदर वन्तु (को०)। । जिर और महीने में राज्य करती थी। परिव चंद्र--वि० १. पाहलादजनक । पानंददायक। २. सुदर । रमणीय । या राजा परमाल इसी वंश के थे, जिनके सामंत पाल्हा और चंद्रक-संशा पुं० [सं० चन्द्रक ) १. चंद्रमा। २. चंद्रमा के ऐसा... रूदल प्रसिद्ध हैं । संस्कृत लेखों में यह वंश चंद्रात्रेय के नाम से मंडल या घेरा । ३. चंद्रिका । चांदनी । ४. मोर की पूछ की। चंद्रिका । ५. नह। नाखुन । ६. एक प्रकार की मछली। ७. . प्रसिद्ध है। कपूर । 30--करि उपचार थकी नही चलि उताल नंदनंद। विशेष--चंदेलों की उत्पत्ति के विषय में यह कथा प्रसिद्ध है कि चंद्रक नंदन चंद तें ज्वाल जगी चौचंद।- शृ० सतः काशी के राजा इंद्रजित् के पुरोहित हेमराज की कन्या हेमवती (शब्द०)। ८. मालकोश राग का एक पुत्र (संगीत):६. बड़ी सुदरी थीं। वह एक कुड में स्नान कर रही थी। इसी सफेद मिर्च । १०. सहिजन ।। बीच में चंद्रदेव ने उसपर आसक्त होकर उसे आलिंगन चंद्रकन्धका-संग श्री० [सं० चन्द्रकन्यका ] एला । इलायचा । किया । हेमवती ने जय बहुत कोप प्रकट किया, तब गंद्रदेव ने ___70---चंद्र कन्य का, निष्कुटी, त्रिपुटी पुलकनि बोली।-तंद. कहा 'मुझसे तुम्हें जो पुत्र होगा, वह बड़ा प्रतापी राजा होगा ग्रं॰, पृ० १४६ । और उसका राजवंश चलेगा'। जब उसे कुमारी अवस्था ही में चंद्रकर--संप पुं० [म चन्द्रकर ] चंद्रिका चाँदनी। ज्योत्स्ना। गर्भ रह गया, तब चंद्रमा के प्रादेशनुसार उसने अपने पुत्र चंद्रमा की किरण को को ले जाकर खजुराहो के राजा को दिया । राजा ने उसका चंद्रकला--संजा पी० [सं० चन्द्रकला ] १. चंद्रमंडल का सोलहवाँ नाम चंद्रवर्मा रखा । कहते हैं कि चंद्रमा ने राजा के लिये एक अंश। वि०१. 'कला' । २. चंद्रमा की किरण या ज्योति । पारस पत्थर दिया था । पुत्र बड़ा प्रतापी हुया । उसने महोगा उ.--धानःजनी चंद्रकला अवला सो लता को सजीवन मूरि . नगर बसाया और कालिजर का किला बनवाया। खजराहो भई है। सेवक (शब्द०)। ३. एक वर्णवृत्त जो पाठ संगण के शिलालेखों में लिखा है कि मरीचि के पुत्र अनि को और एक गुरु का होता है। इसका दूसरा नाम सुंदरी भी चंद्राय नाम या एक पुत्र था। उसी के नाम पर यह चंद्रात्रेय है। यह एक प्रकार का सर्वया है। जैसे,-सब सो गहि नाम का वंश चला । सन् ६०० ईसवी से लेकर १५४५ तक पारिण मिले रघुनंदन में टि कियो सब को बड़ भानी । ४. . इस वंश का प्रबल राज्य बुंदेलखंड और मध्य भारत में रहा। माथे पर पहनने का एक गहना । ५. छोटा ढोल । ६. एक परमदिदेव के समय से इस वंश का प्रताप घटने लगा। प्रकार की मछली जिसे बचा भी कहते हैं । ७. एक प्रकार को . चंदोल-संवा पुं० [फा० चंदावल] दे० 'मंदावल' । उ०-तुगतन वेगला मिठाई । ८, एक प्रकार का सातताला ताल । विशेष--इसमें तीन गुरु और तीन प्लुत के बाद एक लघु होता अकंपन देख बड़ तोलरा, दस वदन मुसाहिब किया चदो.. है। इसका बोल यह है-तक्किट किट तक्किट किट धिक ता - . लरा ।-रघु० रू०, पृ० १०८। तां तां धिम धिम तां तां तां धिम धिक तां तां तां धिम धा। चंदोवा - संज्ञा पुं० [हिं० चंदवा] दे० . 'चॅदवा'। उ०-पांच भाडे ६. नखाघात का चिह । नवक्षत (को॰) । घात के होई । सोरह हाथ मंदोवा सोई।-कबीर सा०, नंदकवान-:-संचाई [सं० चन्द्रवत] मयर । मोर । पृ० ८५४। चंद्रकलाधर-मंज्ञा पुं० [सं० चन्द्रकलाधर] महादेव । _ चंद्र'- संभा पुं० [सं० चन्द्र] १. चंद्रमा । चंद्रकांत--संशा पुं० [सं० चन्द्रकान्त ] १. प्राचीन ग्रंथों के अनुसार : . विशेष-समास में इस शब्द का प्रयोग बहुत अधिक होता है। ..एक मणि या रत्न 1..