पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३५६

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चंद्रमाना १४३३ __ चंद्रशूर : को वहाँ उतारने की चेष्टा में दोनों देश लगे हैं। यह हो चंद्रलल्लम-संखा पुं० [सं० चान्द्रलल्लम] शिव । महादेव कोना जाने पर अनेक नवीन तथ्यों का पता लगेगा। चंद्रलोक-संज्ञा पुं० [ सं० चन्द्रलोक ] चंद्रमा का लोक। उ०- पर्या--हिमांशु । इदु । कुमुदबांधव । विधु । सुधांशु । शुभ्रांशु । चंद्रलोक दीन्हों शशि को तब फगुना में हरि प्राप। सब नक्षत्र ओषधीश । निशाब्जति । अज । जैवातृक । सीम । ग्लो। को राजा कीन्हों शशिमंडल में छाप ।----सूर (शब्द॰) । मुगांक । कलानिधि। द्विजराज। शशधर । नक्षत्रराज। चंद्रवंश--संज्ञा पुं० [सं० चान्द्र वश क्षत्रियों के दो प्रादि और प्रधान क्षपाकर । दोषाकर । निशानाय । शर्वरीश । एमांक । शीत- कुलों में से एक जो पुरुरवा से भारंभ हुआ था। रश्मि । सारस । श्वेतवाहन । नक्षत्रनेमि । उडुप । क्षुधासूति। चंद्रवंशी-वि० [सं० चन्द्रवंशिन ] चंद्रवंश का। जो क्षत्रियों के तिथिप्रणी। अमति । चांदिर । चित्राचीर । पक्षधर । रोहि- चंद्रवंश में उत्पन्न हुआ हो। पोश । अत्रिनेत्रज । पत्रज। सिंधुजन्मा । दशास्य । तारापीड़। चंद्रवदन-वि० [सं० चान्द्रवदन] [वि० सी० चन्द्रवदनी] दे० 'चंद्रमुख' । निशामरिण । मृगलांछन । दाक्षायणीपति । लक्ष्मीसहज ! कोन। सुधाकर। सुधाधार । शीतभानु तमोहर । तुषारकिरण। चंद्रवधू-संशा स्त्री० [सं० इन्द्रवधू ] बीरबहूटी। उ-इतिवंतन । हरि। हिमाति । द्विजपति । विश्वस्था। अमृतदीधिति। की विपदा बहु कीन्ही । धरनी कह चंद्रवधू धरि दीन्हीं। -.. हरिणांक । रोहिणीपति । सिंधुनंदन । तमोनुद् । एतिलक। रामचं०, पृ० ८८। कुमुदेश। क्षीरोदनंदन । कांत । कलावान् । यामिनीपति। विशेष---जान पड़ता है, इंद्रवधू को किसी कवि ने 'इंदुवधू' सिन्न । सुधानिधि । तुगी । पक्षजन्मा । समुद्र नवनीत । पीयूष - समझकर ही इस शब्द का इस अर्थ में प्रयोग किया है। महा। शीतमरीचि । त्रिनेत्रचूडामरिण । सुघांग । परिक्षा। चंद्रवर्म--संज्ञा पुं० [सं० चन्द्रवत्म] एक वर्णवृत्त का नाम, जिससे तु गीपति । पब्र्वधि। क्लेदु । जयंत। तपस। खचमस । विकत । प्रत्येक चरण में रगण, नगण, भगण और संगण (sis, दशवाजी । श्वेतवाजी । अमृतसू । कौमुदीपति । कुमुदिनीपति। IIt, stI, IIS ) होते हैं। जैसे--रे नभा शिव ललाट शशि दक्षजापति । कलामृत । शशभृत् । चरणभृत् । छरयाभृत् । समा। जानि त्यागहु धतू हिय तमा। निशारत्न । निशाकर। रजनीकर । क्षपाकर। अमृत। चंद्रवल्लरी-संशा बी० [सं० चन्द्र वल्लरी] सोमलता। श्वेता ति । शशलांकन । मृगलांछन । चद्रवल्ली-संक्षा स्त्री॰ [ सं० चन्द्रबल्ली ] १. सोमलता । २. माधवी . चंद्रमात्रा- संभा पुं० [सं० चन्द्रमात्रा ] संगीत में तालों के १४ भेदों लता । ३. प्रसारिणी । पसरन । में से एक। चंद्रमाललाट-संज्ञा पुं० [सं० चन्द्रमा+ ललाट ] वह जिसके माथे । चंद्रवा--संशा पुं० [सं० चन्द्रातप दवा। चंदोवा । उ०-मांडि पर चंद्रमा हो- शिव । महादेव । रहे चंद्रवा तर्ण मिसि फण सहसेई सहमणि । वेलि०, चंद्रमाललाम- संज्ञा पुं॰ [सं० चन्द्रमा+ललाम (तिलक, मस्तक पर का चिह्न)] महादेव । शकर । शिव ।। उ० तहाँ दसरथ के चंद्रवार--संवा पुं० [सं० चन्द्रवार] सोमवार । समस्थ नाथ तुलसी के चपरि बढ़ायो चाप चद्रमाललाम चंद्रवाला-पंचा बी० [सं० चन्द्र वाला] बड़ी इलायची। को -तुलसी (शब्द०)। चद्रबिंदु संज्ञा पुं० [सं० चन्द्र विदु] दे० 'चंद्रबिन्दु'। . चंद्रभाला--संशा औः [सं० चन्द्रमाला ] १२८. मात्राओं का एक चंद्रविहंगम--संज्ञा पुं० [सं० चन्द्रविहङ्गम] एक प्रकार का पक्ष [को०] । छंद । उ०-- नपहि महाभट गुणि अति रिस करि अगणित चद्रवेष-मंत्र पुं० [ सं० चन्द्रवेष ] शिव । महादेव । उ० जहें . सायक मारयो-(शब्द०)। २. एक प्रकार का हार। चंद्रहार। चंद्रवेष करिकै वनिता को हो रहे |-- लल्लू (शब्द०)। चंद्रमास--संज्ञा पुं० [सं० चान्द्रमास या चन्द्रमास। दे० 'चांद्रमास'। चंदवत--संज्ञा पुं० [सं० चन्द्रवत] २० 'चांद्रायण' । चंद्र ,ख-वि० [सं० चन्द्रमुख ] [स्त्री चन्द्रमुखी] चंद्रमा की तरह चंद्रशाला--संज्ञा स्त्री | म चन्द्र शाला ] १. चाँदनी । चद्रिका । ___ सुंदर मुखवाला किो०] । .. २. धुर कार की कोठरी ! सबमे ऊपर का बंगला ! अटारी। चद्रमौलि-संशा पुं॰ [सं० चन्द्रमौलि मरतक पर चंद्रमा को धारण उ०--(क) चद्रशाला, केलिशाला, पानशाला, पाकशाला, करनेवाले- शिव । महादेव । उ० - तजिहउँ तुरत देइ तेहि गजशाला हेम की जड़ी. मनी ।- रघुराज (शब्द०)। (ख) हेतू । उर धरि चंद्रमौलि वृषकेतू । -तुलसी (शब्द॰) । चौक चंद्रशाला 'छबिमाला । रजत कनक की बनी दिवाला !- चंद्ररत्न -संज्ञा पुं० [से चन्द्ररत्न मोती. [को०] । .. रघुराज (शब्द०)। (ग) चढ़ी उतंग चद्रशाला में लखी चद्ररेखा, चंद्रलेखा--संशा स्त्री॰ [ सं० चन्द्ररेखा, चन्द्रलेखा ] १. अयोध्या नगरी ।-रघुराज (शब्द॰) । चंद्रमा की कला। २. चंद्रमा की किरण । ३. द्वितीया का चंदशाला --संवा जी० [सं० चन्द्र शालिका] दे० 'चद्रशाला । ' चंद्रमा। ४. बकुची । ५. एक वृत्त का नाम जिसके प्रत्येक चंद्रशिला-माया औ• [म. चन्द्रशिला] चद्रकांत मणि (को०] । चरण में म र म य य ( sss, 515, 55, 55,155) चंद्रशुक्ल-संज्ञा पुं० [सं० चन्द्रशुक्ल जंयुद्वीप के एक उपद्वीप का होता है । 30--मैं री मैया यही लैहौं चंद्रलेखा खिलौना। नाम [को०) -(शब्द०)। चंद्रशुर---संक्षा पुं० [सं० बर] हालों या हालिम नाम का पोत्रा। अंगरेप--संक्षा पुं० [ सं० गन्द्ररेणु ] शब्दचोर । काव्यचौर [को०] । चंसुर। नंतर