पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३५७

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चंद्रिका १४३४ चंग . .चंग-संपुं० [सं० चन्द्रशृङ्ग] द्वितीया के चंद्रमा के दोनों चंद्रातप-संचा पुं० [सं० चन्द्रातप] १. चांदनी। चंद्रिका । २. .. नुकीले छोर। चंदवा । वितान। चंद्रखर-संह पुं०] #० चन्द्रशेखर ] १ वह जिसका शिरोभूपण चंद्रात्मज-संज्ञा पुं० [सं० चन्द्रात्मज ] चंद्रमा का पुर। बुध (को०] । चंद्रना है। शिव । महादेव। २. एक पर्वत का नाम । चंद्रानन'- संझ पुं० [सं० चन्द्रानन ] कार्तिकेय (को०)। विशेप-इस नाम का एक पर्वत अराकान ब्रह्मदेश (वर्मा) में। चंद्रानन'-वि० [वि०सी० चन्द्रानना] चंद्रमा के समान मुखवाला ..३. एक पुराणप्रसिद्ध नगर का नाम । ४. संगीत में अष्टतालों ., में से एक । एक प्रकार का सातताला ताल जिसका वौल इस चद्रापाड़-'संक्षा पुं० [सं० चन्द्रापीड़] १. शिव । महादेव । २. - प्रकार है।........ । तक धी तक" - "दिधि तक काश्मीर का एक राजा। ... दिगिनां । बोंगा । गिड़ियों। विशेप-इसका दूसरा नाम वनादित्य था । यह प्रतापा- चंद्रसंत संज्ञा पुं० [सं० चन्द्रसंज्ञ ] कपूर [को०)। दित्य का ज्येष्ठ पुत्र था और उसकी मृत्यु के उपरांत चंद्रसंभव-संवा पुं० [सं० चन्द्रसम्भव ] बुध (ग्रह) [को०] । ६०४ शकाब्द में सिंहासन पर बैठा था। यह अत्यंत उदार चंद्रसंभघा--संशा की० [संचन्द्रसम्भवा ] छोटी इलायची [को०] । और धर्मात्मा था। चंद्रसा-संवा मुं० [देश॰] गंधाबिरोजा। चंद्रायण -संश पुं० [सं० चान्द्रायण] दे० 'चांद्रायण'। चंद्रसरोवर-संज्ञा पुं० [सं० चन्द्रसरोवर ब्रज का एक तीर्थस्थान चद्रायतन-संज्ञा पुं० [सं० चन्द्रायतन ] चंद्र शाला। जो गोवर्द्धन गिरि के समीप है। चंद्रायन -संज्ञा पुं० [सं० चान्द्रायरा ] एक प्रकार के छंद का चंद्रसेखर -संज्ञा पुं० [सं० चन्द्रशेखर] दे० 'चंद्रशेखर। उ०- नाम । जैसे, - पाल्ह गयव दरवार कहिय परिमाल सौं । पाइल . घरपो विप को ध्यान चंद्रशेखर नहिं ध्यायौ।-बज००, हति विन चुक्कलह लिय माल सौ-प० रासो, पृ०४७ । पृ० १०६ । चंद्रारि-संशा पुं० [सं० चन्द्रारि ] राहु। उ०-चंद रहा चंद्रारि • चंद्रसीव-संशा पुं० [सं० चन्द्र+सौध] दे० 'चंद्रशाला' । उ०- मझारा । मुकुत मिलेउ कौमुदी पसारा-इंद्रा०, पृ० १६४ । . . मैंने चंद्रसीव में आपके शवन का प्रबंध करने के लिये कह चंद्रार्क-संषा पुं० [सं० चन्द्रार्क] १. चंद्रमा और सूर्य। चाँदी, दिया है।-चंद्र०, पृ० १८५। तांवे आदि के मिश्रण से बनी हुई एक धातु किो०] 1 चंद्रस्तुत-संशा पुं० [सं० चन्द्रस्तुत ] बुध (ग्रह) [को०] 1 चद्रार्ध-मंशा पुं० [सं० चन्द्रा] चंद्रमा का प्राधा भाग । . बद्रहार-संक्षा पुं० [सं० चन्द्रहार] गले में पहनने का एक गहना अर्धचंद को०। __या माला । नौलखा हार। चंद्राईचड़ामणि-संवा पुं० [सं० चन्द्राद्धच डामरिण ] महादेय । - विशेष—इसमें अर्द्धचंद्राकार झमशः छोटे बड़े अनेक मनके होते शिव । हैं। बीच में पूर्ण चंद्र के ग्राकार का गोल पान होता है। यह चंद्रालोक-या पुं० [सं० चन्द्रालोक ] १. चंद्रमा का प्रकाशा। २. .. .हार सोने का बनता है और प्रायः जड़ाऊ होता है। जयदेव नामक कवि रचित अलंकार का एक संस्कृत ग्रंथ । चंद्रहास-संथा पुं० [सं० चन्द्रहास] १. बङ्ग । तलवार । २. रावण विशेप--प्रधिकांश लोगों का मत है कि चंद्रालोकमार जयदेव, की तलवार का नाम । उ०-चंद्रहास हर मम परितार्य । गीतगोविंदकार जयदेव से भिन्न हैं। - रघुपति विरह अनल संजातं 1- तुलसी (शब्द०)। ३. चांदी। चंद्रावती--संवा सौ. [सं० चन्द्रावती] दे॰ 'चद्रावती। चंद्रहासा--संचालो. [सं० चन्द्रहासा] सोमलता। चंद्रावर्ता-संक्षा पुं० [सं० चन्द्रावर्ता] एक वर्णवृत्त का नाम जिसके चंद्रांक--संशा पुं० [सं० चन्द्रा ] आभूपण विशेष । प्रत्येक पद में ४ नगए पर १ सगरा होता है पोर+७ पर चंद्रांकित-संवा पुं० [सं० चन्द्रालित ] महादेव । शिव । विराम । बिराम न होने से 'शशिकला' (मरिण गुरग शरभ) चंद्रांशु-संसा [सं० चन्द्राशु] १. चंद्रमा की किरण । २. विप्रा वृत्त होता है। इसका दूसरा नाम 'मणिगुण निकर है। का एक नाम [को०। जैसे- नचहु सुखद यशुमति सुत सहिता । लहहु जनम इह चंद्रा-संघा मो•[सं० चन्द्रा] १. छोटी इलायची। २. वितान । सखि सुख अमिता। चंदवा । चंदौवा । ३. गुइची । गुर्च। चंद्रावली-संज्ञा स्त्री॰ [सं० चन्द्रावली] कृष्ण पर अनुरक्त एक नापी चंद्रा-संशा श्री० [सं० चन्द्र ] भरने के समय की वह अवस्था का नाम जो चद्रभानु की कन्या थी। जब टकटकी बंध जाती है, गला कफ से 'ध जाता है और चंद्रिकांवुज-संश पुं० [सं० चन्द्रिका+अम्बुज शेतकुमुद् [को०)। बोला नहीं जाता । जैसे-उधर वाप को चंद्रा लग रही थी, । ' चंद्रिका-संशो० [सं० चन्द्रिका] १. चंद्रमा का प्रकाश । चांदनी । इधर बेटे का व्याह हो रहा था। ज्योत्स्ना। कौमुदी। २. मोर को पूछ पर का वह ग्रई. क्रि० प्र०-लगना। चंद्राकार चिह्न जो सुनहले मंडल से घिरा होता है। मोर चद्राति घात-मंधा पुं० [सं० चन्द्रागतिघात] मृदंग को एक थाप । की पूछ के पर का गोल बिल या प्रोप। 3०--सोभित उ-ताल घरे पनिता भदंग चंद्रागसिपात बजे थोरी । सुमन नपूर चंद्रिका नील नलिन तनु स्याम :--सूर(गब्द०)। .-(शब्द०)। ३. बड़ी इलायची । ४. छोटो सायची। ५. चौदा नाम की