पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३६

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१११२ खंडवानी खंखरा-वि०.३० साखर'। ...: . :: चिया-संक्षा बी० [हिं० खांची+इया (प्रत्य०) J दे० 'खांची। खंखार-संघा पुं० [हिं०] दे० 'खसार'। ... खेंचुला-संज्ञा पुं० [हिं० खांचा+उला (प्रत्य॰)] १.छोटी खांची। खंखारना-शि० अ० [हिं०] दे० 'बुद्धार'। . २.खाँचा । - बँगना-क्रि० स० [सं० क्षयण या हि० छीजा कम होना। खेचली-संशा स्त्री॰ [हिं । खाँची] छोटी नाँची । नचिया । । खींचने वाला। घट जाना । 10-खल में पूनि धिन मांगी। खंगी यू- खेंचंया-वि० [हिं० खांच+ऐया (प्रत्य॰)] - गुलि रजु पुनि मांगी।-विधाम०, पृ० ३११ खंचोला-संज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'खंचला'। खंगवाा-संवा पुं० [हिं०] दे॰ 'खाँग' । खंचोली+-संचा त्री० [हिं०] दे॰ 'खंचुली' ! - खंगहा-वि० [हिं० खाँग+हा (प्रत्य॰)]१. सांगवाला। जिसे खेजड़ी-संघा की [हिं० बजरी] दे॰ 'खंजरी'। खान या निकले हुए दाँत हों । २. वंगल ।। खंजरी-संवा श्री० [सं० खंजरीट%एक. ताल] डफली की तरह . खंबहार-संक पुं० १. गेंडा । १. वाराह । शूकर । का एक छोटा बाजा। विशेष—इसकी मेंडरा (गोलाकार काठ) चार या पाँच अंगुल खंगार--संघा पुं० [देश०क्षत्रियों की एक गुजरातवासी शाखा चौड़ा और एक पोर चमड़े से मढ़ा तथा दूसरी ओर खुला तथा उसका राजा। रहता है। यह एक हाथ से पकड़कर दूसरे हाथ की थाप से खंगारना-क्रि० स० [सं० क्षालन से] सं० 'खंगालना'। बजाई जाती है। साधु लोग प्रायः अपनी हारी के मेंटरे में ' खंगालना-क्रि० स० [सं० सालन] १. हरका धोना। थोड़ा एक प्रकार की हलकी झांक भी बांध लेते हैं जो खंजरी "होना । जैसे, सोटा खंगालना, गइना खंगालना । २. सब कुछ । बजाते समय प्रापसे पाप बाप बजती हैं। रहा ले जाना । खाली कर देना। जैसे,--रात को उनके . जरी संघात्री० [फा० खंजर] १. बंजर का स्त्रीलिंग और घर चोर पाए थे सब बंगाल ले गए ३, मझाना। २. यहाना। . अल्पार्थक रूप । २. एक प्रकार की हरिएदार धारी जो .. उ.--अब जागो उलझनों में न पड़, जंगलों को खंगाल कर - रंगीन कपड़ों में होती है । ३. वह कपड़ा, विशेषतया रेशमी देखो .:--चोखे०, पृ० १६। कपड़ा, जिसमें इस प्रकार कीारी हो । गोगाजी figo वंगना कमी। घटी। छीज। उ-- Kा सिं० खण्ड| शंड का हिंदी में प्रयुक्त समासगत रूप, - हिय हरपि शिशु मुख चूमि सुंदर सकल दुलरावं लगी।-- जैसे-खंडपूरी, खंडवनी पादि। मनपार भै ज्योनार निज रुचि चरस तह रहै का खंगी।- - खंडपुरी-संशा की- [हिं० हााँड+पूरो] एक प्रकार की भरी हुई पूरी - विश्राम), पृ० ४०३ 1 . . जिसके अंदर मेवे और मसाले के साथ चीनी भरी जाती है। खंगुवा-संज्ञा पुं० [हिं० खांग] गैंडे को सौंग। दे० 'खाँग' . खंडवरा-संज्ञा पुं० [हिं० खाँड +वरा या औरा (प्रत्य॰)] ६० ... बंगल-वि० [हिं० सांग+ऐल-(प्रत्य०)]१.माँग रोग से पीड़ित 'खांडौरा 13०- बर्ड कीन्ह प्रामचुर परा । लौंग इलाची सौं जिसके खुर पके हों। खंगहा । २. दंतैला । लंबे दांतवाला साबरा-जायसी (शब्द०)। (हाथी)। खंडरा-संघा पुं० [सं० खण्ड +हिं० वरा ] एक प्रकार का चौकोर खंगोरिया, खंगौरिया-संझा सी देश०] हंसुली नाम का गहना । बढ़ा जो सूखा और गोला दोनों प्रकार होता है। उ०- खेंधारना-क्रि० स० [हिं० खंगालना] दे० 'खंगालना। . चारा, खाँद जो खंडे खंडे। वरी अकोतर से कहं इंटे।- खंचना-कि० म० [हिं० खाँचना] चिह्नित होना । निशान जायसी (शब्द०)। पड़ना । उ०-लाजमयी सुर बाम भई पछिान्यो स्वयंभू महा विशेष-इसके बनाने के लिये पहले बेसन घोलकर उसे कढ़ाही मन सेवै । दूसरी ओर बनाइयो को त्रिवली ख'ची तीन तलाक में पकाते हैं जिसे पाक. उठाना कहते हैं । पाक तैयार हो की रेखें।-यंभु कवि (शब्द०)। . .. चुकने पर उसे थाली में डालकर जमा देते हैं। ठंडा होकर खंचना-क्रि० अ० [हिं० 1 दे० विंचना। • जम जाने पर उसे चौकोर टुकड़ों में काटकर तेल में तल लेते खंचवाना-क्रि० स० [हिं० खांवना] दे० 'खंचाना"। है। इसी को सूखा खंडरा कहते हैं। पीछे ईसे मसालों के साथ खाना-क्रि० स० [हिं० दांचना] १. अकित करना। चिह्न किसी कांजी या रसे में भिगो देते हैं । नाना 10-(क) राधिका की प्रियसी को बनाय विचारि खंडला-संवा पुं० [सं० साण्ड+हि० ला (स्वा० प्रत्य०) टुकड़ा। बिचारि यहै हम लखें। ऐसी न मोर न पीर न पोर है तीन कतरा । बँचाय दई विधि रेखा-कोई कार्य (शब्द॰) । (ख) प्रमाण खंडवानी-संवा बी० [हिं० खांड+पानी] १.वह पानी जिसमें सधु रेखखंचाई । सो नहिं नविउ अत्त, मनुसाइ । तुलसी खाँड़ या चीनी घोली हुई हो । शरवत । ३०-कढ़ी संवारी (शब्द०)।२.जल्दी जल्द लिखना. ..... . और फुलौरी ।श्री खंडवानी बाल बरीरी। जायसी खंचाना-कि० स० दे० 'बींचना'। . (शब्द०)।२.कन्या पक्षवालों को मोर वे बरातियों को . संचाना-क्रि० स० [हिं० खाँचना का प्रे० रूप ] अकित करवाना . जलपान भोजन भेजने की क्रिया । उ०-बोली सबहि नारि भिवानी । करह सिंगार देह काउवानी 1-जायसी (शब्द०)। सा