पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३६७

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१४४४ चक्कर कोता. कोता संज्ञा पुं० [हिं० चकत्ता] एक रोग जिसमें घुटने के नीचे छोटी-छोटी फुसियाँ निकलती हैं और बढ़ती चली जाती हैं। ... चकोर-संशा पुं० [मं] [स्त्री० चकोरी] १. एक प्रकार का बड़ा

पहाड़ी तीतर जो नैपाल, नैनीताल आदि स्थानों तथा पंजाब

मौर अफगानिस्तान के पहाड़ी जंगलों में बहुत मिलता है। उ०-नयन रात निसि मारग जागे। चख चकोर जानहु ससि लागे।—जायसी (शब्द०)। विशेप-इसके ऊपर का एक रंग काला होता है, जिसपर सफेद सफेद चित्तियां होती है। पेट का रंग कुछ सफेदी लिए होता ..है । चोंच और घाँखें इसकी बहुत लाल होती हैं । यह पक्षी झंडों में रहता है और वैसाख जेठ में बारह बारह अंडे देता है। भारतवर्ष में बहुत काल से प्रसिद्ध है कि यह चंद्रमा का बड़ा भारी प्रेमी है और उसकी ओर एकटक देखा करता है; .. यहाँ तक कि यह पाग की चिनगारियों को चंद्रमा की किरने .... समझकर खा जाता है। कवि लोगों ने इस प्रेम का उल्लेख ..अपनी उक्तियों में वरावर किया है। लोग इसे पिंजरे में .: पालते भी हैं। २. एक वर्णवत का नाम जिसके प्रत्येक चरण में सात गण, एक गुरु और एक लघ होता है। यह यथार्थ में एक प्रकार का 'सवैया है। जैसे, भासत ग्वाल सखीगन में हरि राजत 'तारन में जिमि चंद। " । चकोरी-संज्ञा सी० [सं०] मादा चकोर । सरद ससिहि जनु चितव ... चकोरी। तुलसी (शब्द०)। चकोही संवा पुं० [सं० चक्रवाह ] प्रवाह में घूमता हुअा पाना। . . भवर। - चकोड़ा-संज्ञा पुं॰ [हि चकवेड ] दे॰ 'चकवेड' । चकाव-संज्ञा स्त्री० [हिं०] दे० 'चकाचौंध'। उ०-- सेस सीस मनि चमक चकौंधन तनिकह नहिं सकुचाही। हरिश्चन्द्र (शब्द०)। - कोटा-संश पुं० [देश॰] १. एक प्रकार का लगान जो बीघे के . हिसाब से नहीं होता। २. वह पशु जो ऋण के बदले में दिया जाय । इसे 'मुलवन' भी कहते हैं। - चक्क -संभ पुं० [सं०] पीड़ा। दर्द। पक'--संज्ञा पुं० [सं० चक्र]-१. चक्रवाक । चकवा । उ०-हंस मानसर तज्यो चक्क चक्की न मिल अति !-इतिहास, पृ० २०४। यो०-चक्क चक्कि । चक्क चक्की। २. कुम्हार का चाक । ३. दिशा। प्रांत । उ०-(क) पंज . प्रतिपाल. भूमिहार को हमाल चहुँ चषक को अमाल भयो . दंडक जहान को।-भूपण (शब्द॰) । (ख) भूपन भनत वह ' चहू चक्क चाहि कियो पातसाहि चक ताकि छाती माहि, 2वा है। भूपण (शब्द०) (ग) पान फिरत चहु चक्क धाक- - धक्कन गढ़ घुक्काह।-पद्माकर ग्रं॰, पृ०८। ... पपकर--संवा पुं० [सं०चक्र].१. पहिए के आकार की कोई (विशेपतः घमनेवाली) वडी गोल वस्तु । मंडलाकार पटल । नाक! जैसे- उम मशीन में एक बड़ा चक्कर है जो बराबर घूमता रहता है। २. गोल या मंडलाकार घेरा । वृत्ताकार. परिधि। मंडल । ३. मंडलाकार मार्ग । गोल सड़क या रास्ता । घुमाव का रास्ता । जैसे,—उस बगीचे में जो चक्कर है, उसके किनारे किनारे बड़ी सुंदर घास लगी है। ४. मंडलाकार गति । चक्राकार या उसके समान गति अथवा चाल परिक्रमण । फेरा । ५. पहिए के ऐसा भ्रमण। अक्ष पर घूमना। मुहा०-चक्कर काटना=वृत्ताकार परिधि में घूमना । परिक्रमा करना। मंडराना । चक्कर खाना=(१) पहिए की तरह घूमना । अक्ष पर घूमना । (२) घुमाव फिराव के साथ । जाना । सीधे न जाकर टेड़े मेढ़े जाना। जैसे,—(क) उतना चक्कर कौन खाय, इसी बगीचे से निकल चलो। (ख) यह रास्ता बहुत चक्कर खाकर गया है। (३) भटकना । भ्रांत होना । हैरान होना । जैसे,--घंटों से चक्कर खा रहे हैं, यह सवाल नहीं पाता है। चक्कर देना=(१) मंडल बांधकर घूमना। परिक्रमा करना। मंडराना। (२) दे० 'चक्कर खाना'। चक्कर पड़ना-जाने के लिये सीधा न पड़ना। घुमाव या फेर पड़ना । जैसे,—उधर से क्यों जाते हो, बड़ा चक्कर पड़ेगा। चक्कर वाँ धना=मंडलाकार मार्ग बनाना । वृत्त बनाते हुए घूमना। चक्कर मारना=(१) पहिए की तरह अक्ष पर घूमना । (२) वृत्ताकार परिधि में घूमना । परिक्रमा करना । (३) चारों ओर घूमना। इधर उधर फिरना । जैसे,—दिन भर तो चक्कर मारते ही रहते हो, थोड़ा बैठ जायो। चक्कर में आना चकित होना। भ्रांत : होना। हैरान होना। दंग रह जाना । जैसे,- सब लोग उनकी अद्भुत वीरता देख चक्कर में पा गए। चक्कर में डालना=(१) चकित करना। हैरान करना । (२) कठिनता या असमंजस में डालना। फेर में डालना। ऐसी स्थिति में करना जिससे यह न सूझ पड़े कि क्या करना चाहिए । हैरान करना । चक्कर में पड़ना--(२) असमंजस में पड़ना। दुवधा में पड़ना। कठिन स्थिति में पड़ना । (२) हैरान होना । । माथा खपाना। चक्कर लगाना %D (१) परिक्रमा करना। मंडराना । (२) चारों ओर घूमना। इधर उधर फिरना। फेरा लगाना । ग्राना,जाना । घमना फिरना। जैसे,—(क) हम बड़ी दूर का चक्कर लगाकर पा रहे हैं। (ख) तुम इनके यहाँ नित्य एक चक्कर लगा जाया करो। ६. घुमाव । पेंच । जटिलता । दुल्हता । फेर फार । जैसे, · यह बड़े चक्कर का सवाल है । महा-किसा फे चम्फर में माना या पड़ना=किसी के धोखे में पाना या पड़ना । भुलावे में ग्राना।। ७. सिर घूमना । घुमरी । घुमटा । वेहोशी । मूछौं । ' क्रि० प्र०-ग्राना। ८. पानी का भँवर । जंजाल । ६. चक्र नामक अस्त्र । महा०-चक्कर पड़ना=बज्रपात होना। विपत्ति माना। (स्त्रियाँ) १०. कुपता का एक पच जसम अपन दाना हाथ पट में 'घुसे हुए विपनी के दोनों मोदों पर रखकर उसकी पीठ सपने चक्कर-संजा पुं० [सं० चकलवस्तु । मंडलाकार