पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३६८

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चक्करदार सामने कर लेते हैं और फिर टांग मारकर उसे चित्त कर देते हैं। चक्करदार-वि० [हिं० चक्कर+फा० दार ] मोड़, घुमाव या उलझनवाला। चक्करो-संज्ञा स्त्री० [हिं० चक्कर] दे॰ 'चकई। उ०-सु नष्पई सुरंग छाप बाज ताज उट्ठहीं। मनों कि डोरि चक्करी सुहय्य - हथिथ नष्पहीं।-पृ० रा०, २११५३ । चक्कल-वि० [सं०] गोल । वर्तुल (को० । चक्कव -वि० [सं० चक्रवर्ती ] चक्रवर्ती (राजा)। सार्वभौम (राजा)। उ० ससुरु चक्कवइ कोसलराऊ । भुवन चारि दस प्रगट प्रभाऊ -मानस, २०६८ चक्कवता---संज्ञा पुं० [सं० चक्रवर्ती] चक्रवती राजा। चक्कवा -संश पुं० [सं० चक्रवाक] चकवा । चक्रवाक । उ०- रघुवर कीरति सज्जननि सीतल खलनि सु ताति । ज्यों चकोर चय चक्कवनि तुलसी चदिनि राति ।-तुलसी (शब्द०)। चक्कवै:--वि० [सं० चक्रवर्ती, प्रा० चक्कवत्ती, चक्कवइ] चक्रवर्ती (राजा)। पास मुद्रांत पृथ्वी का राजा। उ०—(क) नव सत्त अंत मेवातपति, इक्क छत महि चक्कवै ।-पृ० रा०, ३३२६ । (ख) नहि तनु सम्हारहि. छबि निहारहि निमिप रिपु जन रन जए । चक्कर्व लोचन राम रूप सुराज सुख भोगी भए ।-तुलसी ग्रं॰, पृ० ५८ ।। चक्कस-संद्धा पुं० [फा० चकस] बुलबुल, बाज आदि पक्षियों के वैठने का अड्डा । चक्का -संज्ञा पुं० सं० चक्र, प्रा० चक्क] १. पहिया। चाका । २. पहिए के आकार की कोई गोल वस्तु । ३. बड़ा चिपटा टुकड़ा। बड़ा कतरा। जैसे,--मिट्टी का चक्का, खली का चक्का । ४. जमा हुग्रा फतरा । अंथरी । अंठी । थक्का । जैसे,-- । जस, चक्का दही। ५. ईटों या पत्थरों का ढेर जो माप या गिनती के लिये क्रम से लगाया गया हो। क्रि० प्र०-वाँधना । चक्की-संज्ञा स्त्री० [सं० चक्रिका, प्रा० चक्की ] नीचे ऊपर रखे हुए पत्थर के दो गोल और भारी पहियों का बना हुआ यंत्र जिसमें आटा पीसा जाता है या दाना दला जाता है । आटा पीसने या दाल दलने का यंत्र । जाता। यो०-पनचक्की। क्रि० प्र०-चलना । चलाना । यो०--चक्की का पाट= चक्की का एक पत्थर । चक्की की मानी- - (१) चक्की के नीचे के पाट के बीच में गड़ी हुई वह खूटी जिसपर ऊपर का पाट घूमता है। (२) ध्रव । ध्र वतारा। मुहा०-चक्की छूना=(१) चक्की में हाथ लगाना । चक्की चलाना प्रारंभ करना । चक्की चलाना । (२) अपना चरखा शुरू करना । अपना वृत्तांत प्रारंभ करना। अपनी कथा .. छेड़ना । प्रापबीती सुनाना। चक्को पीसना=(१) चक्की में डालकर गेहूं आदि पीसना। चक्की चलाना । (२) कड़ा परिश्रम करना । बड़ा कष्टं उठाना । चक्फो रहानाचक्की को टाँकी से खोद खोदकर खुरदरा करना जिसमें दाना अच्छी तरह पिसे । चक्की कूटना। चक्की– संज्ञा स्त्री० [सं० चक्रिका] १. पैर के घुटने की गोल हड्डी। .. २. ऊँटों के शरीर पर या गोल घट्टा। ३. विजली। वच। चक्की -संशा सो [सं० चक] दे॰ 'चकई। उ० हंस मानसर तज्यो । चक्क चक्की न मिले अति ।---अकबरी०, पृ० ११८ 1 . चक्कीधर-संज्ञा पुं० [हिं० चक्को+घर] १. पनचक्की । २. पाटा पीसने का स्थान। ३. कल । उ०-इसी चक्कीघर में काम : करो, तो पांच छह प्राने रोज मिलें।-रंगभूमि, भा०२, . पृ०५६६1 . चक्कीरहा--संज्ञा पुं० [हिं० चक्की+रहाना] वह व्यक्ति जो चक्की को टाँकी से कूटकर खुरदरी करता है। चक्कू-संधा पुं० [हिं० चाकू ] दे॰ 'चाकू'। चक्कोर -मंधा पुं० [सं० चकोर] दे० 'चकोर'। 30--चल्यो । सुवारिधि नंद । चक्कोर पानंदकंद । धनपत्ति दीन पठाय।। लिय परिसमरिण सुखपाय ।-५० रासो, पृ० २५ । चक्ख -संज्ञा पुं० [सं० चक्षु, प्रा० चक्ख, राज० चाव ] दे. 'चख' । उ०-खंजर नेत विसाल गय चाही लागइ चक्छ । एकरण साटइ मारुवी, देह एराकी लक्ख ।-ढोला०, . दू०४५८। चक्खना-क्रि० स० [हिं० चखना ] दे० 'चबना'। उ०- मुसकाकर छोड़ चले मेरी मधुशाला तुम ? प्रिय, अब क्या चक्खोगे औरों की हाला तुन ? क्वासि, पृ० ३१ । चक्खी .....संज्ञा श्री हि चखना] १. स्वाद के लिये चरपरी दान की चीज । चाट । २. वटेरों की चुगाई। चक्नस-संज्ञा पुं० [सं०] १. बेईमानी। वंचना । छल कपट (को०] जा चक्र-स .12. पहिया। चाका.। २. कुम्हार का नाका. ३. चक्की। जांता । ४. तेल पेरने का कोल्हु । ५. पहिए के . आकार की कोई गोल वस्तु । ६. लोहे के एक अस्त्र का । नाम जो पहिए के आकार का होता है। विशेष—इसकी परिधि की धार बड़ी तीक्ष्ण होती है। शुक्रनीति । के अनुसार चक्र तीन प्रकार का होता है-उत्तम, मध्यम और अधम । जिसमें पाठ यार (आरे)हों वह उत्तम, जिसमें छह हों वह मध्यम, जिसमें चार हों वह अधम है। इसके अतिरिक्त तोल का भी हिसाव है। विस्तारभेद से . १६ अंगुल का चक्र उत्तम माना गया है। प्राचीन काल में यह युद्ध के अवसर पर नचाकर फेंका जाता था। यह विष्णु भगवान् का विशेप अस्त्र माना जाता था। आजकल भी गुरु . गोविंदसिंह के अनुयायी सिख अपने सिर के बालों में एक . प्रकार का चक्र लपेटे रहते हैं। मुहा०-चक्र गिरना या पड़ना वचपात होना । विपत्ति । .. पाना । चक्र चलाना=जाल रचना । पड्यंत्र करना । ।