पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३६९

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१४४६ चक्रधर रेसा ७. पानी का भंवर । ८. वात चक्र । बवंडर । हैं. इनूह । समुदाय। चक्रगोसा-संश पुं० [सं०] १. सेनापति । २. राज्यरक्षक । ३. मंडली। १०. दल । अँड । सेना। ११. एक प्रकार का वह कर्मचारी या योद्धा जो रथ, चक्र ग्रादि की रक्षा करे। व्यूह या सेना की स्थिति । दे० 'चक्रब्यूह'। १२. ग्रामों या चक्रहण-संक्षा पुं० [सं०] परिखा। खाई (को०] । नगरों का समूह । मंडल। प्रदेश । राज्य । १३. एक समुद्र चाहणी-संवा श्री० [सं०] १ दुर्ग की रक्षा के निमित्रा बनाया " से दूसरे समुद्र तक फैला हुमा प्रदेश । ग्रासमुद्रात भूमि। हुग्रा प्राचीर । २. खाई किो०] । ... यो०- चक्रवर्ती । चक्रचर-संक्षा पुं० [सं०] १. तेली । २. कुम्हार । ३. गाडीवान । ४.

- १४. चक्रवाक पक्षी । चकवा । १५. तगर का फूल 1 गुलचांदनी। बाजीगर (को०)।।

. १६. योग के अनुसार मूलाधार स्वाधिष्ठान, मणिपुर ग्रादि चक्रचारो-संशा पुं० [सं० चक्रचारिन्] रव किो०)।

.' शरीरस्य छह पद्म । १७. मंडलाकार घेरा। वृत्त । जैसे,- चकजोवक संज्ञा पुं० [सं०] कुम्हार।

.. राशिचक । १५. रेखायों से घिरे हुए गोल या चौखटे खाने चक्रजीवी-संज्ञा पुं० [सं० चक्रजीविन्] दे॰ 'चक्रजीवक' [को०]। . जिनमें अंक, अक्षर, शब्द ग्रादि लिखे हों। जैसे,-कुंडलीचका चक्रत -वि० [सं० चकित ] 'चकित' 1 उ०-~सो नारावनदास विशेष · तंत्र में मंत्रों के द्धार तथा शुभाशुभ विचार के लिये और सगरी सभा वा भेद को समुझे.नाहीं । ताते चक्रत है

अनेक प्रकार के चक्रों का व्यवहार होता है । जैसे,—अकडम रहे। दो सौ वावन०, भा० १, पृ० १०। ।

.... चक्र, अकय चक्र, कुलाल चक्र, यादि । रुद्रयामल ग्रादि तंत्र ग्रंथों चक्रताल-संशा पुं० [सं०] १. एक प्रकार का चौताला ताल जिसमें में महाचक्र, राजचक्र, दिव्यचक्र प्रादि अनेक चक्रों का तीन लघु (लघु की एक मात्रा) और एक गुरु (गुरु की उल्लेख है.। मंत्र के उद्धार के लिये जो चक्र बनाए जाते हैं, दो मात्राएं) होती हैं। इसका वोल यह है-ताहं । धिमि उन्हें यंत्र कहते हैं। घिमि । तकितां । विधिगन थों। २. एक प्रकार का चौदह १६. हाय की हथेली या पैर के तलवे में घूमी हुई महीन महीन ताला-ताल जिसमें कम से चार द्रुत (द्रुत की आधी मात्रा), रेखाओं का चिह्न जिनसे सामुद्रिक में अनेक प्रकार के शुभाशुभ एक लघु ( लघु की एक मात्रा), एक द्रुत (दुत की प्राधी फल निकाले जाते हैं । २०. फेरा । भ्रमण । घुमाव । चक्कर। मात्रा), और एक लघु (लघु की आधी मात्रा) होती है । जैसे,—कालचक्र के प्रभाव से सब बातें बदला करती हैं। इसका बोल यह है-जग० जग० नक० 2. ताय । वरि. २१. दिशा । प्रांत । उ०-कहै पद्माकर चहीं तो चहूं चक्रन कुकु० विमि० दाय। दां० दां० विधिकट । विधि० गन या। . : को चीरि डालों पल में पलया पैज पन हौं ।- पद्माकर चक्रतीर्थ-संवा पुं० [सं०] १..दक्षिण में वह तीर्थ स्थान जहाँ. - (शब्द०)। २२. एक वशंवत्त का नाम जिसके प्रत्येक चरण ऋष्यमूक पर्वतों के बीच तुंगभद्रा नदी घूमकर बहती है। ..... में क्रमशः एक भगरण, तीन नगण और फिर लघु, गुरु होते उ० --चक्रतीर्थ मह परम प्रकासी । वस सुदर्सन प्रभु छवि हैं। जैसे-भौननि लगत न कतहुँ ठिकना। राम विमुख रासी!-रघुराण (शब्द॰) । २. नैमिषारण्य का एक कुड ।

रहि सुख मिल कहां । ' २३. धोखा। भुलावा।

विशेप-महाभारत तथा पुराणों में अनेक चक्रतीयों का उल्लेख .जाल । फरेव। है। काशी, कामरूप, नर्मदा, श्रीक्षेत्र, सेतुबंध रामेश्वर प्रादि यो०-चक्रधर- बाजीगर । प्रसिद्ध प्रसिद्ध तीर्थों में एक एक चक्रतीर्थ का वर्णन है। २४. चक्रव्यूह । २५. सैनिकों द्वारा राइफल या बंदुक से एक साथ स्कंदपुराण में प्रभास क्षेत्र के अंतर्गत चक्रतीर्य का बड़ा गोली चलाना । बाढ़ । राउंड। २६. एक विशेष पद (को०)। माहात्म्य लिखा है । उसमें लिखा है कि एक बार विष्णु ने चक्रक--संज्ञा पुं० [सं०] १. नव्य न्याय में एक तर्क । २. एक प्रकार बहुत से असुरों का संहार किया जिससे उनका चकं रक्त ते का सर्प । ३. युद्ध की एक रीति (को०)। - रंग उठा। उसे धोने के लिये विष्णु ने तीयों का आह्वान . चक्रक-वि० १. पहिए जैसा । २. गोल या वर्तुंलाकार (को०] । किया। इसपर कई कोटि तीयं बही या उपस्थित हुए पीर पक्रकारक-संज्ञा पुं० [सं०] १. नखी' नामक गंधद्रव्य । २. हाथ विष्णु की आज्ञा से वहीं स्थित हो गए। . ... का नाखून । . चतुड-संक्षा पुं० [सं० चक्रतुण्ड] एक प्रकार की मछती जिसका चकुल्थ -संश.श्री० [सं०] चित्रपी लता । पिठबन। . मुहे गोल होता है:1, ... :- पक्रकम-संा पुं० [सं०] घटना के बार बार होने का क्रम [को०] । चक्रदंड-मा पुं० [सं० चक्रदएड. ] एक प्रकार की कसरत जिसमें चक्रगडु-संबा पुं० [सं० चक्रगएड] गोल तकिया (को। जमीन पर दंड करके झट दोनों पर समेट लेते है और फिर चक्राज-संज्ञा पुं० [मं०] चकवंड़। दाहिने पैर को दाहिनी ओर और बाएं को बाई पोर चक्कर गीत-संहा स्त्री० [सं०] परिधि या गोलाई में गमन करना [को॰] । देते हुए पेट के पास लाते हैं। चक्रगत-संवा पुं॰ [सं०] दे 'चक्रतीर्थ' [को०] । चक्रदंतो—संशा बी० [सं० चक्रदन्ती] १. दंतीवृक्ष। २. जमालगोटा। चक्रगुच्छ - संवा पुं० [सं०] अशोक वृक्ष।। चक्रदंष्ट्र-संशा पुं० [सं०] सूबर । साप्ता-संघा पुं० [सं० चक्रगोप्त । १. रय का रक्षक। चक्रधर'-वि० [सं०] जो चक्र धारण करे। . २. राज्यरक्षक । ३. सेनापति [को०] । चकवर-संका पुं० १. वह जो चक्र धारण करे । २. विष्ण, भगवान् ।