पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३७०

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चक्रधारा १४४७ चक्रवत ३. धोकृष्ण । ४. बाजीगर । ऐंद्रजालिक । ५. कई ग्रामों या अनुसार वह एक स्थान से चलकर फिर उसी स्थान पर प्राप्त नगरों का अधिपति । ६. सर्प । साँप । ७. गाँव का पुरोहित । होता है। इसे परिवर्त भी कहते हैं। . . ८. नट राग से मिलता जुलता पाडव जाति का एक चक्रभ्रम- संज्ञा पुं० [सं०] सान । खराद [को०' । . . राग जो पडज स्वर से प्रारंभ होता है और जिसमें पंचम चक्रभ्रमर-संवा पुं० [सं०] एक प्रकार का नृत्य । स्वर नहीं लगता । यह संध्या समय गाया जाता है। चक्रभ्रमि--संद्या भी. [सं०] दे० 'चक्रभ्रम' (को०] । ' चत्र घारा- संजा श्री० [सं०] चक्र की परिधि को०)। चक्रभ्रांति--संञ्चा श्री० [ चक्रभ्रान्ति ] चक्र की गति । चक्र का चक्रधारी- संज्ञा पुं॰ [दे० चक्रघारिन्] दे० 'चक्रधर'। '. 'घूमना [को०] । चक्रनख- संघा पुं० [सं०] व्याघ्रनख नामक औषधि । वधनहीं। - चक्रमंडल-संघा पुं० [सं० चक्रमर डल] एक प्रकार का नत्य जिसमें चश्नदी-संज्ञा स्त्री० [सं०] गंडकी नदी। नाचनेवाला चक्र की तरह घूमता है। - चक्रनाभि- संज्ञा स्त्री० [सं०] पहिए का वह स्थान जिसमें धुरा धूमता विशेष- इस प्रकार के नृत्य में शरीर के प्रायः सब अंगों का है। पहिए के बीच का स्थान [को॰] । . संचालन होता है। . . . . चक्रनाम-'संक्षा पुं० [ सं० चकनामन् ] १. माक्षिक धातु : सोना- चमंडलो--संज्ञा पुं० [सं० चक्र मण्डलिन्] अजगर साँप ।.. . मक्खी। २. चकवा पक्षी। चकमन --संडा पुं० [सं० चङ्क्रमण ] दे० 'चंक्रमण' 1. उ० - चक्रनायक- संज्ञा पुं० [सं०] व्याघनख नाम की प्रोषधि। 'केसोदाम' कुसल कुलालचक्र. चक्रमन चातुरी चित के चारु चत्रनेमि--संधा जी० [सं०] पहिए का घेरा [को०] । आतुरी चलत भाजि ।-केशव ग्रं०.पृ०.११८।। चक्रपथ - संघा पुं० [सं०] १. गाड़ी की लीक । २. गाड़ी चलने का मार्ग। चक्रमर्द--संघा पुं० [सं०] चकवड़।. .. चक्रपद्याट-संश्चा पुं० [सं०] चकवेंड [को०] । चक्रमर्दक-संक्षा पुं० [सं०] दे० 'चक्रपर्द' को०)। .... चत्र परिव्याध--संज्ञा पुं० [सं०] पारग्वध या अमलतास का पेड़ [को०] । चक्रमीमांसा--संज्ञा स्त्री० [सं०] १. वैष्णवों की चक्र मुद्रा धारण चक्रपर्णी-संधाबी० [सं०] पिठवन । करने की विधि । २. विजयेंद्र स्वामी रचित एक ग्रंथ जिसमें , चक्रपाणि--संक्षा पुं० [सं०] हाथ में चक्र धारण करनेवाले, विष्णु । चत्र-मुद्रा-धारण की विधि आदि लिखी है। चक्रपाद-संशा पुं० [सं०] १. गाड़ी। रथं । २. हाथी। चक्रमुख-संज्ञा पुं० [सं०] सूबर।। चक्रपादक-संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'चक्रपाद' [कोग चक्रमुद्रा--संज्ञा स्त्री० [मं०] १. 'चक्र आदि विष्णु के आयुधों के चक्रपानि@--संघा पुं० [सं० चकापारिण ] दे० 'पक्रपाणि' । उ०-- चिह्न जो बैष्णव अपने वाह तथा और अंगों पर छापते हैं। . कहै पद्माकर पवित्र पन पालिये कों चौरे चक्रपानि के चरित्रन विशेष-चक्र मुद्रा दो प्रकार की होती है, तप्त मुद्रा और शीतल कों चाहिए।-पद्माकर ग्रं०, पृ०२१८॥ मुद्रा । जो चिह्न माग में तपे हुए चक्र नादि के ठप्पों से चकपाल-संघा पुं० [सं०] १. किसी प्रदेश का शासक । सूबेदार । शरीर पर दागे जाते हैं, उन्हें तप्त मुद्रा कहते हैं । जो चंदन चकलेदार । २. वह जो चक्र धारण करे । ३. वृत्त। गोलाई। आदि से शरीर पर छापे जाते हैं, उन्हें शीतल मुद्रा कहते ४. शुद्ध राग का एक भेद । ५. सेनापति (को०) । ६. व्यूहरक्षक हैं । तप्त मुद्रा का प्रचार रामानुज संप्रदाय के वैष्णवों में (को०)। ७. क्षितिज (को॰) । विशेष है । तप्त मुद्रा द्वारका में ली जाती है। जैसे,—मू हे चक्रपूजा-संवा श्री० [सं०] तांत्रिकों की एक पूजाविधि । . मूड़, कंठ वनमाला मुाचद्रक दिए । सब कोउ कहत गुलाम चक्रफल--संवा ० सं०] एक अस्त्र जिसमें गोल फल लगा रहता है। श्याम को सुनत सिरात हिए।--सूर (शब्द०)। . चक्रवंध-संज्ञा पुं० [सं० चकबन्ध] एकप्रकार का चित्रकाव्य जिसमें एक २. तांत्रिकों की एक अंगमुद्रा जो पूजन के समय की जाती है। चक्र या पहिए के चित्र के भीतर पद्य के अक्षर बैठाए जाते हैं। इसमें दोनों हाथों को सामने खूब फैलाकर मिलाते और चक्रबंधु-संज्ञा पुं० [सं० चक्र बन्धु] सूर्य। .. अंगूठे को कनिष्ठा उंगली पर रखते हैं।. .. . चक्रवांधव-संशा पुं० [सं० चबान्यव] सूर्य। : ... चक्रमेदिनी-संवा स्त्री० [सं०] रात्रि (को०)। विशेप- सूर्य के प्रकाश में चकवा चकई एक साथ रहते हैं। ' चक्रयंत्र--संज्ञा पुं० [सं० चक्रपन्न ज्योतिष का एक यंत्र। .. '.. चक्रयान--संज्ञा पुं० [सं०] पहिए से चलनेवाला यान । वह सवारी. चक्वाड--संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'चक्रवाल' [को०] 1 " चक्रवाल-संशा पुं० [सं०] १. मंडल । घेरा । २. समूह । या गाड़ी जिसमें पहिए हों [को० । . ज । ३. चक्ररद-मं० पुं० [सं०] सुपर को०। . क्षितिज । ४. ३. 'चक्रवाल'। ५. चकग पक्षी [को०]। चक्ररिष्टा - संज्ञा स्त्री० [सं०] बक । बगला। चत्रवालधि संशा पुं० [सं०] कुत्ता (को०]। . चक्रलक्षरगा-संघात्री० [सं०] गुरुच । गुड ची।। चभत-- सं० [सं०] १. वह जो चक्र धारण करे । २. विष्णु । . चक्रलिप्ता- संज्ञा स्त्री० [सं०] ज्योतिष में राशिचक्र का कलात्मक चक्रभेदिनी--संज्ञा स्त्री० [सं०] रात । रात्रि। भाग अर्थात २१.६०० भागों में से एक भाग। . .' १. विशेप--रात में चकवा चकई का जोड़ा अलग हो जाता है। . चक्रवत--संभा पुं० [सं० चक्रवतिन् ] ६० 'चक्रवर्ती' । उ०--मांडा वक्रभोग-संहा पुन [सं०] ज्योतिष में ग्रह की वह गति जिसके कमधे मिसलतां चक्रवत देखए चाम -राज रू०, पृ. २६५ !