पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३७१

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चक्राकी . १४४६ ती - संश पुं० [सं० चक्रवर्ती] चक्रवर्ती । राजा ! उ०- धर विशेष—इसकी रचना इतनी चक्करदार होती थी कि इसके

काज मिसलत धार, चक्रवतिय जन विचार । दिस मकस्यल भीतर प्रवेश करना अत्यंत कठिन होता था। महाभारत में

- पति देव, व्रत अलत चव पंडवेस 1-राज ८०, पृ० ३० । ... द्रोणाचार्य ने यह ब्यूह रचा या जिसमें अभिमन्यु मारे गए वील-वि० [सं० चक्रवतिन चक्रवर्ती। उ० -चूडो वीरम थे। इसका प्राकार इस प्रकार माना जाता है। पर वत्ती घारसारमुह लई घरत्ती।-राज,पृ०१४

वतिनी-संच श्री० [सं०] १. किसी दल या समूह की अधीश्वरी।
... २. जनी नामक नंघद्रव्य । पानड़ी। ३. अलक्तक । पालता

०) । ४. जटामासी (को०)। - बवर्ती-वि० [सं० चक्रवतिन्] [ ली० चक्राउनी ] अासमुद्रांत भूमि पर राज्य करनेवाला । सार्वभौम ।। ___ चश्वती-संवा पुं०१. एक चक्र का अधश्वर। एक समुद्र से लेकर - दुसरे समुद्र तक की पृथ्वी का राजा । पासमुद्रांत भूमि का राजा । उ--चक्रवति के लक्षण तोरे। देखत दया लागि . अति मोरे ---तुलसी (शब्द॰) । २. किसी दल का अधिपति । चशल्य-संशा की. [सं०] १. सफेद घुघुची। २. काकतुडी। 5. समूह का नायक । ३. वास्तुक नामक शाक । वथुप्रा । चक्रवणी-संशा स्त्री० [सं०] अचगी । मेढ़ासींगी। .चम्चाक-संवा पुं० [सं०] [ली. चक्रवाकी ] चकवा पक्षो। चक्रसंज्ञ--सी० पुं० [मं०] १.वंग धातु । रांगा । २. चकवा पक्षो। ... यो.-चक्रवाकबंधु सूर्य । चक्रसंवर-श पुं० [सं०] एक बुद्ध का नाम।। -चाबाट संवा पं० [सं०] १. हद । सीमा। २. चिरागदान । ३. चक्रसाह्वय-संवा पुं० [सं०] चक्रवाक । चकवा [को०] ! कार्य में लीन होना [को०। चक्रस्वामी-पंचा पुं०० चक्रस्वामिन् दे० 'चहस्त' [को०]1 : वाद-संवा पुं० [सं०] दे० 'चक्रवाल। चक्रहस्त-संगा पुं० [सं०] विष्णु [को०)। " बात-संवा पुं० [सं०] वैग से चक्कर खाती हुई वायू । वातचक्र। चक्रांक-संज्ञा पुं० [सं० चकाङ्क] चक्र का चिह्न जो वैष्णव अपने बवंडर । उ०—तृशावर्त विपरीत महाबल सो नृप राय बाहु आदि पर दनवाते हैं । पायो । चक्रवात ह सकल घोप मैं रज धूघरह छायो । यो०-चकांकपुच्छ=(१) मोर । मयूर । (२) मोरपंख। मयूरपंख। सूर (शब्द०)। चगंकित'-वि० [सं० चक्राङ्कित] जिसने च का चिह्न दगवाया.. वान्शा पुं० [सं०] एक पौराणिक पर्वत का नाम जो चौथे हो । जिसने चक्र का छापा लिया हो। . समुद्र के बीच स्थित माना गया है। चक्रांकित-संवा पुं० वैष्णवों का एक संप्रदायभेद । इस संप्रदाय के _ विशेप-यहां विष्ण भगवान ने यत्रोव और पंचजन नामक लोग चक्र का चिह्न दगवाते हैं। दत्यों को मारकर चक्र और शख दो यायध प्राप्त किए थे। चक्रांकी - संशा स्त्री० [सं० चकाङ्की] चक्रावाकी। चकई [को०] । वाल-संवा पुं० [सं०] १. एक पराणप्रसिद्ध पर्वत जो भमंडल चकांग-संज्ञा पुं० [सं० चकाङ्ग] १. चकवा । २. रय या गाड़ी। के चारो घोर स्थित प्रकाश और अंधकार (दिन रात) ३. हंस । ४. कुटकी नाम की प्रोपधि । ५. एक प्रकार का फा विभाग करनेवाला माना गया है। लोकालोक पर्वत । शाक ! हिलमोचिका। २. मंडल । घेरा । ६ दे० 'चक्रवाल। चक्रांगा - संज्ञा श्री० [सं० चक्राङ्गा] १. काकड़ासिंगी। २. सुदर्शन . चक्रविरहित-संज्ञा स्त्री० सं० चक्र] ३० 'चक्रप्रवृत्ति'। लता। पवृत्ति संभ श्री [0] एक वर्ण वृत्त का नाम जिसके प्रत्येक चक्रांगी-संज्ञा स्त्री० [सं० चक्रानी] १. कुटकी। २.हंसिनी । मादा. चरण में एक भगए, तीन नगरा और अत में लघु गुरु होते हैं। हंस । ३. एक प्रकार का शाक । हुलहुल । हुरहुर। हिल- पश्वृद्धि-- बी० [सं०] एक प्रकार का सूद या व्याज जिसमें मोचिका । ४. मंजी०। ५. काकड़ासींगी। वृषपर्णी । उत्तरोत्तर व्याज पर भी व्याज लगता जाता है। सूददर सूद।। मूसाकरनी। - विशेष मनु ने इसे अत्यंत निंदनीय ठहराया है। चक्रांत -बापुं० [सं०] किसी अनुचित कार्य या किसी के अनिष्ट- २. गाड़ी ग्रादि का भाड़ा। साधन के लिये कई मनुष्यों की गुप्त अभिसंधि । पव-संज्ञा पुं० [संचक्रवर्ती, हिचस्कवं] दे० 'चक्क' । उ०- चक्रांतर-संशा पुं० [सं० चक्रान्तर] एक बुद्ध का नाम । - दास पलटू कहै संत सोइ चक्रवं भया यह त जब भर्म भागी। चक्रांश-संज्ञा पुं० [सं०] राशिचक्र का ३६० वां ग्रंश। -पलटू०, भा०२, पृ० २६।। चका-संहा मी० [सं०] १.. नागरमोथा। २. काकड़ातींनी। पत्रव्यूह-संवा पुं० [सं०] प्राचीन काल के युद्ध समय में किसी चक्राकार-वि० [सं०] पहिए के प्राकार का। मंडलाकार । नौल । व्यक्ति या वस्त की रक्षा के लिये चारो घोर कई घरों चक्राका-संवा सी० [सं०] १. हँसिनी । मादा हंस । २. चक्रवाकी। मैं सेना की कुडलाकार स्थिति । चकई।