पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३७३

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१४५० चघड़ ध-संशा पुं० [सं० चलन्ध] आँख ढकना [को० । चखाचखी-संक्षा नौ• [फ० चख (=झगड़ा)] लॉगडाँट । विरोध। ... क्षुहल-संज्ञा पुं० [सं०] अजगी [को०)। वैर! - कमत-वि० [सं०] दृष्टिवर्धक [को॰] । क्रि० प्र०-चलना होना। चखाना- क्रि० स० [हिं० 'चखना' का प्रे० रूप] खिलाना । स्वाद

धर्मल--संज्ञा पुं० [सं०] आँब का मल । कीचड़ [को०)।

दिलाना।

सर्व निका--संज्ञा पुं० [सं०] महाभारत के अनुसार शाकद्वीप की

-संशा सी० [हिं० चख (=याँख) । दे॰ 'चख' । उ०—हैं चखि .. : एक नदी। . . . . . . - चकृति चखि सुर-नर-मुनिवर दुहु दिसि नेह किए बरन।-नंद० .. चक्षुर्वन्य-वि० [सं०] नेत्र रोगवाला [को०)। ग्रं॰, पृ० ३७२ । क्षुर्वहन-संशा पुं० [सं०] अजगी । मेढ़ातींगी। चखिया-वि० [फा० चख (=गड़ा)]झगड़ालू । तकरार करनेवाला। चक्षुर्विषय-संज्ञा पुं० [सं०] १. दृष्टिक्षेत्र स्थिति । दृश्यता । २. दृष्टि झकझक करनेवाला । .' का विषय | कोई दृश्य पदार्थ । ३. क्षितिज [को०]। चखु@-संश पुं० [सं० चक्षु] दे० 'चक्षु' । उ०—सखिन कहा हो पान - हन--संशा पुं० [सं०] महाभारत के अनुसार एक प्रकार का सर्प पियारी। मारहु चबु सर गिरा भिखारी।इंद्रा०, पृ०६२। "जिसे देखते ही जीव जंतुओं की आँखें फूट जाती हैं। चखैया - संज्ञा पुं० [हिं० /चख+ ऐया (प्रत्य॰)] चखनेवाला । .. चक्षुर्हा-वि० [सं० चक्षुर्हन] जिसके देखने मात्र से आँख फूट जाय स्वाद लेनेवाला । वस्तु का स्वाद लेते हुए खानेवाला । उ०- परब्बी चबया चट चार सच्च।-५० रातो, पृ० २२ । चक्षुष-संक्षा पुं० [सं०] 'चक्षुस्' का समासगत रूप । चखोड़ा -संवा पुं० [हिं० चख-+ोड़ ] मस्तक पर काजल की चक्षुष्कर्ण-संश पुं० [सं०] साँप । सर्प [को०] । लंबी रेखा जो बच्चों को नजर से बचाने के लिये लगाई क्षुष्पति--संया पुं० [सं०] सूर्य ।। जाती है। दिठौना । डिठीना। उ०—(क) लट लटकनि प्मान्--वि० [सं० चक्षुष्मत्] १. आँखोंवाला । २. सुंदर प्रांबों सिर चार चखोड़ा सुठि शोभा सोहै शिशु भाल । - सूर ... बाला [ो। (शब्द०)। (ख) अजन दोउ दृग भरि दीनो । भुव चार चक्षुप्प-वि० [सं०] १. जो नेत्रों को हितकारी हो ( पोषधि चखोड़ा कोनो ।-सूर (शब्द॰) । ... आदि)। २. सदर । प्रियदर्शन । ३ नेत्रों से उत्पन्न । चौंडाOt-सहा offe. चन्बोटा। 2. 'चोट . नेत्र संबंधी । .. . चखौती-संक्षा सौ. [हिं० चखना] चटपटा खाना । तीक्ष्ण स्वाद चक्षुष्य-संच पुं० १. केतकी । केबड़ा। २. शोभांजन । सहजन का का भोजन । .: पेड़ । ३. अंजन । सुरमा। ४. खपरिया ! तूतिया। चगड़-वि० [देश॰] चालाक । चतुर।

चक्षुष्या-संशश की. मिं०] १. वनकूलथी। चाकसू । २. मेढ़ासींगी। चगताई-संश्था पुं० [तु० चनताई] मध्य एशिया के निवासी तुको का

.. . अजगी । ३. सुंदरी स्त्री (को०)। एक प्रसिद्ध वंशजो चगताई खां से चला था । वावर, अकबर,

चक्षुसू--संश पुं० [सं०] १. अाँख। २. प्राक्सस या जेहूं नदी जो मध्य आदि भारत के मोगल बादशाह इसी वंश के थे।

एशिया में है। चगताई खो-संज्ञा पुं० [ तु० चग़ताई खाँ ] प्रसिद्ध मोगल विजेता चख' -संथा पुं० [सं० चक्षुस् ] आँख। उ०-मन समुद्र भयो सूर चंगेज खां का एक पुत्र जो प्रत्यंत न्यायशील और धामिकया। है . को, सीप भये चख लाल !-भारतेंदु ग्रं०, भा० ३, पृ०७३ ! विशेप---चंगेज खाँ ने १२२७ ई० में इसे बलख बदख्शा, काशगर । मुहा०-चख से मसि चुरानाg=0 'ग्राख का काजल चुराना। आदि प्रदेशों का राज्य दिया था। सन् १२४१में इसकी मृत्यु उ--ग्रस बड़ चोर कहत नहि आवै। चोरि के चखन ते हुई । वावर इसी के वंश में था। मसिहि चराब।- नंद. ग्रं॰, पृ० २४६ । चगत्ता-संज्ञा पुं० [हिं० चकता दे० 'चकत्ता'। ख-संथा पुं० [फा० या अनु०] [वि० चखिया ] झगड़ा। चगथा@-संज्ञा पुं० [हिं० चकता=मोगल दे० 'चकत्ता' । उ.-.-. - तकरार । कलह । टंटा। हलकार भड़ा ललकार हुवै । चगथां मुख तेज सरेज चुवै।- रा० रु०, पृ० १६६। ... यो०- चख चल = तकरार । बकवक । झकझक । कहासुनी। चगर--संज्ञा पुं॰ [देश॰] १. घोड़ों की एक जाति । २. एक प्रकार चखचीवt-संज्ञा बी० [हिं० चकचौध] दे॰ 'चकचौंध' ।। की चिड़िया । चखना- क्रि० स० [सं० चय] स्वाद लेना । स्वाद लेने के लिये चगुनी-संवा बी० [देश॰] एक प्रकार की मछली जो संयुक्त प्रांत, . . . मुह में रखना। स्वाद या मजा लेते हुए खाना । उ०- बंगाल और बिहार की नदियों में पाई जाती है। वह १८ साहब का घर दूर है जैसे लंव खजूर । चड़े तो चाबै प्रेम रस इंच लंबी होती है। . . गिर तो चकनाचूर (शब्द०)। संयो॰ क्रि०-डालना ।—लेना। . चपड़ - वि० [देश॰] चतुर। रगड़। धूर्त । चालाक। उ०-चपड़ों की चालों को मिथ्या और तिरस्करणीय प्रमाणित कर जनसाधारण सावि•[हिं० चखना ].१. चखनेवाला । स्वाद लेनेवाला। ..... ..२. प्रेमी। के नम को मिटाएं।-प्रेमघन०, माग २, पृ० २१२ । चिम