पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३७७

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टोरापन बढ़ती अयर डोर बंसी सुनिल छवि जल वसुधा बाल । रुप चटोरा विभक्ति के साथ ही क्रि० वि० यत् होता है, अतः इसके लिंग मीन दृग प्राइ फंसत ततकाल । -मुबारक (शब्द॰) । का विचार व्यर्थ है। चटोरापन--संज्ञा पुं० [हिं० चटोरा+पन (प्रत्य॰)] अच्छी अच्छी चड़कपूजा-संचा मी० [हिं० चरखपूजा) दे० 'चरखपूजा'। चीजें खाने का व्यसन । स्वादलोलुपता। चड़चड़-संथा पुं० [अनु॰] सूखी लकड़ी के टूटने या जलने का शब्द । "चट्टी-वि० [हिं० चाटना] १. चार पोंछकर खाया हुआ। २. चड़बड़-संवा श्री• [अनु॰] हटे । बक बक । निरर्थक प्रलाप ।

समाप्त। नष्ट । गायब। उ०-दया चट्ट हो गई, धर्म सि गयो

मुहा०-चड़बड़ घड़बड़ करना=ववाद करना। . घरगि मैं-(शब्द॰) । चड़स-संज्ञा पुं० [हिं० चरस ] दे० 'चरस' । उ०-प्रलक डोरि , बट्टा-पुं० [सं० चेटक (दास) या प्रा. चट' शिष्य या । तिल चड़स वो निरमल चिबुक निवारण । सौं नित माली अनुकरणात्मक चट्टा बट्टा का अंश] 1 चेला । शिग्य । समर प्रेम वाग पहचारण । वांको ० प्र०, भा० ३, पृ० ३६ । ___ टा संज्ञा पुं० [सं० कट (=घटाई) ] वांस की चटाई । चड़सी-संशा पुं० [हिं० चरस चरस पीनेवाले लोग । चरसी। - ऋथा-संवा पुं० [देशः] बटियल मैदान । खुला मैदान । ऐसा मैदान । जिसमें पेड़ आदि न हो । चड़ाक'--संधश पुं० [अनु॰] किसी वस्तु के टूटने का या फूटने या चट्टा--संहा पुं० [हिं० चकत्ता] शरीर पर कुष्ठ आदि के कारण फटने से होनेवाला शब्द । - निकला हुप्रा चक्रता । दाग । चड़ाक-वि० [प्रानुध्व०] भग्न ! भंजित । उ०-रस का परिपाक _ कि०प्र०-निकलना।--पड़ना। न हो गया । चढ़ता चाप चड़ाक हो गया ।-साकेत, पृ० ३५६ । - चट्टान-संशा सी० [हिं० चट्टा] पहाड़ी भूमि के अंतर्गत पत्थर का चड़ाना -क्रि० स० [हिं० चढ़ाना ] दे० 'चढ़ाना' । उ०-धरि चिपटा बड़ा टुकड़ा। विस्तृत शिलापटल । शिलाखंड । प्रानए बोभन वरुपा मेंथा चड़ावए गाइक चुडुपा ।-कीर्ति, - चट्टावट्टा-संचा पुं० [हिं० बट्ट ( चाटने का खिलौना) पृ०४४। .. (+वट्टा- ) अनुकरणात्मक समानभिन्न उच्चारणात्म चड़ी-संग्स बी० [सं० घरण ?] वह लात जो उछलकर मारी जाय । . द्विक्ति] १. छोटे बच्चों के खेलने के लिये काठ के खिलौनों क्रि० प्र०--जमाना --मारना ।—लगाना । का समूह जिसमें चट्ट झुनझने और गोले इत्यादि रहते हैं। चड्डा-संज्ञा पुं० [देश॰] जांच की जड़ । जंघे का कपरी भाग। २.गोले और गोलियाँ जिन्हें बाजीगर एकर्थली में से निकाल- चडा--वि० [सं० जड] गावदी। मूर्ख । . फर लोगों को तमाशा दिखाते हैं। चड्डो-संवा त्री० [देश॰] १. एक प्रकार का लंगोट । २. बच्चों मुहा---एक ही चली के चट्टव-एक ही गूद्र के मनुष्य । एक की जांघिया। ही स्वभाव और रुचि के लोग एक ही मेल के आदमी। एक चड्ढना--क्रि० प्र० [हिं० चढ़ना] दे० 'चढ़ना'। उ०--बिन हा विचार के लोग । चट्ट ब लड़ाना= इघर की उधर मग सर्क पंछी न चढ़।--ह० रासो, लगाकर लड़ाई कराना । चटकुला छोडना । ऐसी बात कहना चड्ढी-संशा स्त्री० [हिं० चढ़ना] लड़कों का वह खेल जिसमें एक जिसमें कुछ लोग आपस में लड़ जायें । जैसे-तुम्हें बहुत चट्ट लड़का दूसरे की पीठ पर चढ़कर चलता है। इसमें जो लड़का बट्टे लड़ाना पाता है। हारता है, उसी की पीठ पर सवारी की जाती है। . चट्टा--संहाली देश १. टिकान । पड़ाव । मंजिल । उ- . क्रि० प्र०-चढ़ना। सो कहु प्रागे द्वीप लखाई। तहँ एक चटी परम सुहाई।- नुहा०-चढ़ी गांठना-सवार होना । सवारी करना । चढी रघुराज (शब्द०)। देना=(१) हारकर पीठ पर चढाना। (२) गुदाम युन २. फर्रुखाबाद के जिले में पैर में पहनने का एक गहना । कराना। महा-संवा स्त्री० [ हिं० चपटा या अनु० चटचट ] एंडी की ओर २. कच्छा । कछौटी। . खुला हुया जूता । स्लिपर । चटी। चढउतर-संघा सौ. [चढ़ना+ उतरना ] चढ़ना उतरना । पावा- चट्टी--संशमी [हि चाटा (-चपत)] हानि ! घाटा । टोटा। जाही। माना जाना । उ०-ऋतुओं की चढ़ उतर कित नुकसान । तावान ।। तुममें तूफान उठा कर पाई ?--हिम०, पृ०७७॥ मुहा०-घट्टो भरना हानि पूरी करना । चढत--संज्ञा स्त्री० [हिं० चढ़ना] किसी देवता की चढ़ाईहई वस्त। २. दंडं । जुरमाना। देवता की भेंट। मुहा०-चट्टी घरना=दंड लगाना। चढ़ता--वि० [हिं० चढ़ना] १. निकलता और ऊपर प्राता हुमा । पट्ट'-वि० [हिं० चाट] स्वादलोलुप । चटोरा। वराबर ऊपर की ओर जाता हुमा । जैसे,--पड़ता चांद । -संघा पुं० [हि चट्टान या अनु01 चट] पत्थर का बड़ा खरल। २. प्रारंभ होता और बढ़ता हमा। अग्रसर होता हमा। पद-संभा पुं० [हिं० चाटना ] १. काठ का एक खिलौना जिसे जैसे,-चढ़ती जवानी, चड़तो वैस । . . लड़के नुह में डालकर चाटते हैं। चढ़ती-संबाबी [हिं० चढ़ना ] १. दे० 'चढ़त' । २. अभ्युदय । संवा पुं० [देश०] एक प्रकार की दूव जिसे वरया भी कहते हैं। उन्नति । १०-पूजी पाई साथ दिनोदिन होती बढ़ती। धा [अनु॰] सुखी लकड़ी भादि के फटने का शब्द ।। सतगुरु के परताप भई है, दौलत चढ़ती। पलटू०, भा० १. विशेष- चट पर यादि शब्दों के समान इसका प्रयोग भी 'रे पृ० ३६ दना