पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३७८

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१४५७ चढ़पट चढ़न यो०-चड़ती कला उभरता या निखरता हया सौंदर्य । उ०-- . गया है। १०. स्वर का तीव्र होना । सुर ॐचा होना। और उस मुई वेसवा की इस जमाने में ऐसी चढ़ती कला थी आवाज तेज होना । ११. नदी या प्रवाह में उस ओर को और रती दुलंद जो कहती थी वहीं यह करते थे।-सर०, .. चलना, जिधर से प्रवाह आता हो। धारा का बहाव के . विरुद्ध चलना । १२. ढोल, सितार आदि की डोरो या तारका चढ़नए संज्ञा स्त्री० [हिं० चढ़ना चढ़ने की क्रिया या भाव। कस जाना । तनना । जैसे,--ढोल चढ़ना, ताशा चढ़ना । . चढ़नदार-संशा पुं० [हिं० चढ़ना+फा० दार [प्रत्प०)। वह मनुष्य मुहा०-नस चढ़ना-नस का अपने स्थान से हट जाने के कारण जिसे व्यापारी गाड़ी, नाव आदि पर माल के साथ. रक्षा के तन जाना। लिये भेजते हैं ।--(लश०) । १३. किसी देवता, महात्मा ग्रादि को भेंट दिया जाना। देवापित . चढ़ना--कि० अ० [सं० उच्चलन,प्रा० उच्चडन, चनड्ढ] नीचे से ऊपर होना । जैसे, माला फूल चढ़ना । बलि चढ़ना । बकरा चढ़ना। .. को जागा । चे स्थान पर जाना। 'उतरना' का उलटा । उ० --बात यह चित से कभी उतरे नहीं । हैं उतरते फूल - जैसे,—सीढ़ी पर चढ़ना। संयो० क्रि०--जाना। चढ़ने के लिये 1-चुभते०, पृ० ११ । १४. सवारी पर बैठना। , . सवारी करना । सवार होना । जैसे,—घोड़े पर चढ़ना । । मुहा०--सूरज या चाँद का चढ़ना=सूर्य या चंद्रमा का उदय हो गाड़ी पर चढ़ना। कर क्षितिज के ऊपर आना । दिन चढ़ना=(१) दिन फा प्रकाश फैलना । (२) दिन या काल व्यतीत होना । जैसे,-- संयो॰ क्रि०--जाना ।--बैठना। . . चार घड़ी दिन चढ़ा । वि० दे० 'दिन'। १५. किसी निर्दिष्ट कालविभाग जैसे,—वर्ष, मास, नक्षत्र प्रादि, ' २. ऊपर उठना। उड़ना । 30--गगन चढ़ रज पवन प्रसंगा। का प्रारंभ होना । जैसे,-असाढ़ चढ़ना, महीना चढ़ना, दशा तुलसी (शब्द०)। ३. नीचे तक लटकती हई किसी वस्तु ..: चढ़ेना। उ०-(क) चढ़ा असाड़ दुद धन गाजा ।--जायसी का सिकुड़ या खिसककर ऊपर की ओर हो जाना। ऊपर की (शब्द०)। (ख) चढ़.ति दसा यह उतरति जाति निदान । और सिमटना । जैसे,—आस्तीनचढ़ना, वाहीं चढ़ना, पायजामा कहउँ न कबहू' करकस भौंह कमान ।—तुलसी (शब्द०)। चढ़ना, पार्यंचा चढ़ना, मोहरी चढ़ना। ४. एक वस्तु के ऊपर । विशेष-वार, तिथि या उसने छोटे कालविभाग के लिये 'चढ़ना' दूसरी वस्तु का सटना । आवरण के रूप में लगना । ऊपर से का प्रयोग नहीं होता। टॅकना । मढ़ा जाना । जैसे,--किताब पर जिल्द या कागज १६. किसी के ऊपर ऋण होना । कर्ज होना । पावना होना । . चढ़ना, छाते पर कपड़ा चढना, तकिए पर खोल या गिलाक जैसे,—(क) व्याज चढ़ना । (ख) इधर कई महीनों के बीच चढ़ना, गोट चढ़ना। ५. उन्नति करना । बढ़ना। • में उसपर सैकड़ों रुपये महाजनों के बढ़ गए । १७. किसी मुहा०-चढ़ बढ़कर या' बढ़ चढ़कर होना श्रेष्ठ होना । अधिक पुस्तक, बही या कागज आदि पर लिखा जाना । टंकना। महत्व का होना। चढ़ा बढ़ा या नढ़ा चढ़ा होनापिठ दर्ज होना । (यह प्रयोग ऐसी रकम, वस्तु या नाम के लिये होना । अधिक बड़ा या अच्छा होना। अधिक होना । विशेष होता है जिसका लेखा रखना होता है। जैसे,—(क) ५ रुपए होना । चढ़ बनना-मनोरथ सफल होना । सुयोग मिलना । आज आए हैं, वे बही पर चढ़े कि नहीं? (ख) रजिस्टर पर लाभ का अवसर हाथ पाना । जैसे,--उनकी आजकल खूब : लड़के का नाम चढ़ गया । १८. किसी वस्तु का बुरा और चढ़ बनी है। चढ़ बजना=बात बनना पौ बारह होना । 'उद्वेगजनक प्रभाव होना । बुरा असर होना। आवेश होना । खूब चलती होना । उ०-अधर रस मुरली लूटि करावति । जैसे,--क्रोध चढ़ना, नशा चढ़ना, ज्वर चढ़ना । आपुन बार वार लै अंचवति जहाँ तहां ढरकावति । आजू .. मुहा० . पाप या हत्या चढ़ना=पाप या हत्या के प्रभाव से बुद्धि महा चढ़ि बाजी वाकी जोई कोई कर बिराजै । करि सिंहासन का ठिकाने न रहना। वैठि अधर सिर छ घरे वह गाज। सूर (शब्द०) ...१६. पकने या आँचखाने के लिये चल्हे पर रखा जाना । जैसे- ६. (नदी या पानी का) बाढ़ पर भाना । बढ़ना । जैसे,- दाल चढ़ना, भातं चढ़ना, हाँड़ी चढ़ना, कड़ाह चढ़ना । २०. (क) बरसात के कारण नदी खूब चढ़ी थी । (ख) प्राज लेपहोना । लगाया जाना । पोता जाना। जैसे,-(अंग पर) तीन हाथ पानी चढ़ा । ७. आक्रमण करना । धावा. करना। दवा चढ़ना, वारनिश चढ़ना, रोगन चढ़ना, रंग चढ़ना। चढ़ाई करना । किसी शत्रु से लड़ने के लिये दल बल सहित मुहा०-रंग चढ़ना-रंग का किसी वस्तु पर पाना । रंग का जाना। खिलना । वि० दे० 'रंग' 1 उ०-सूरदास खल कारी कामरि कि० प्र०-प्राना।-जाना ।—दौड़ना।... चढ़तन दुजो रग। सर (शब्द०)। २१. किसी मामले को ५. बहुत से लोगों का दल बाँधकर किसी काम के लिये जाना। ..लेकर अदालत तक जाना । कचहरी तक मामला ले जाना। साज बाज के साथ चलना । गाजे बाजे के साथ कहीं जाना । जैसे,-चार प्रादमी जो कह दें, वही भान लो; कचहरा चढ़न उ०-प्रापके साथ मैं सारे इंदरलोक को समेट कुवर उदयभान :.:. क्यों जाते हो ?. ... को व्याहने चहूँगा।- इंशाअल्ला ( शब्द०)।६. महँगा चढ़पट -कि० वि० [हिं० चटपट ] शीघ्र । जल्दी। वि० ५० होना। भाव का बढ़ना । जैसे,--माज कल घी बहुत चढ़ चटपट' । उ०--सोमेस मुअन विरचंत रन चढ़ पट घट भट्टा