पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३८४

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• चतुष्क . चतुर्भुज चतुर्भुज-- संज्ञा पुं० १. विष्ण । २. यह क्षेत्र जिसमें चार भुजाएं और चतुर्विश'-संह पुं० [सं०] एक दिन में होनेवाला एक प्रकार का . याग । चार कोण हों। जैसे, चतुर्विंश-वि० चौबीसा ।। 'चतुविशति--संज्ञा स्त्री० [सं०] चौवीस । यो०- सम चतुर्भुज-चार भुजाओं वाला वह क्षेत्र जिसमें चार चतुविद्य-वि० [सं०] चारो वेदों का ज्ञाता [को०] । समकोण हों और जिसकी चारो भुजाएँ समान हों। चविद्या' संज्ञा स्त्री० [सं०] चारी वेदों की विद्या । .. चतुविद्या--चारो वेद जाननेवाला। - चतुर्वीज-संज्ञा पुं० [सं० चतुर् + वीज ] काला जीरा, अजवाइन, '.. 'मेथी और हालिम इन चार प्रकार के दानों या बीजों का चतुर्भुजा-संज्ञा स्त्री० [सं०] १. एक विशिष्ट देवी । २. गायत्री रूप- समूह ।- (वैद्यक)। . धारिणी महाशक्ति । चतुर्वीर-संक्षा पुं० [सं०] चार दिनों में होनेवाला एक प्रकार का सोम । चतुर्भुजी'- संज्ञा पुं॰ [सं० चतुभुज+ई (प्रत्य॰)] १. एक वैष्णव .... याग। सम्प्रदाय जिसके प्राचार व्यवहार आदि रामानंदियों से मिलते चतर्वेद-संक्षाgo [सं०] परमेश्वर । ईश्वर । २. चारो वेद । जुलते होते हैं। चतुर्वेद:--वि० चारों वेद जाननेवाला। विशेष-लोग कहते हैं, इस संप्रदाय के प्रवर्तक किसी साधु ने चतर्वेदी--संक्षा पुं० [सं०चतुवें दिन] १. चारो वेदों का जाननेवाला एक बार चार भुजाएँ धारण की थीं, इसी से उसके संप्रदाय पुरुप । २. ब्राह्मणों को एक जाति । का नाम चतुर्भूजी पड़ा। २. इस संप्रदाय का अनुयायी। चतुव्यूह संज्ञा पुं० [सं०] १ चार मनुष्यों अथवा पदार्थों का समूह। । जैसे,--(क) राम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुध्न । (ख) कृष्ण, चतुर्भुजी- वि० चार भुजापोंवाला । जैसे, चतुर्भुजी मूर्ति । बलदेव, प्रद्युम्न और अनिरुद्ध । (ग) संसार, संसार. का हेतु, . चतुर्मास-संझा पुं० [सं० चतुर्मास बरसात के चार महीने। अषाढ़, मोक्ष और मोक्ष का उपाय । २. विष्णु। . . सावन, भादों और कुमार का चौमासा । चतुर्मुख'- संज्ञा पुं० [सं०] १. एक प्रकार का चौताला ताल जिसमें 'विशेष-विष्णसहस्रनाम के भाष्यकार के अनुसार विष्णु के शारीरपुरुप, छंदपुरुप, वेदपुरुप और महापुरुपये चार रूप हैं। कम से एक लघु (लघु की एक मात्रा), एक गुरु (गुरु की दो मात्राएँ), एक लघु (लघु की एक मात्रा) और एक प्लुत और पुराणों के अनुसार ब्रह्मा ने सृष्टि के कार्यों के लिये वासु- , (प्लुत की तीन) मात्रा होती है। इसका बोल यह है-तांह। . देव, संवर्पण, प्रद्युम्न और अनिरुद्ध इन चार रूपों में अवतार तकि तकि ताहऽथकि थरि । तकि तकि दिधि गन थोड़े। २. लिया था; इसलिये उन्हें चतुव्यूह कहते हैं। नत्य में एक प्रकार की चेष्टा । ३. विष्ण । . ३. योग शास्त्र । ४. चिकित्सा शास्त्र । चतुर्मुख -- वि० [ मी० चतुमुखी ] जिसके चार मुख हों। चार चतुयिण, चतुयिन-वि० [सं०] १. चार वर्षों का । २. चार • मुहवाला। - बरसों में पैदा हुआ (को०)। चतमुख-क्रि० वि० चारों और। चतोता-संशा पुं० [सं०] चतुर्होतृ । वेद में वरिणत चारो होम फरने. चतुति - संज्ञा पुं० [सं०] विराट्, सूत्रात्मा, प्रध्याकृत और तुरीय वाला व्यक्ति [को०] । इन चारो अवस्थाओं में रहनेवाला, ईश्वर । चतुर्होत्र--संज्ञा पुं० [मं०] १. परमेश्वर । २. विष्णु । ... चतुर्मेध---संज्ञा पुं० [सं०] वह जिसने चार बलिदान किए हों। चारो “चतुल--संजः पुं० [सं०] स्थापन करनेवाला ! स्थापकं । । । __ के नाम ये हैं-प्रश्वमेध, पुरुषमेघ, सर्वमेध तथा पितृमेघ को०] । चतुश्चक्र संचा पुं० [सं.] एकप्रकार का चक्र जिसके अनुसार तांत्रिक चतयुग---संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'चतुयुगी' को०)। ::: : लोग मंत्रों के शुभ या अशुभ होने का विचार करत है। 'चतयुगी-- संशा खी० [सं०] चारों युगों का समय । उतना समय चतुश्चत्वारिंश वि० [सं०] चौवालीसा ।। जितने में चारो युग एकबार-बीत जायें। ४३२०००० वर्ष का सगय । चौजुगी । चौकड़ी। .: .:::.....: चतुश्चत्वारिंशत्-संवा औ० [सं०] चौवालीस की संख्या। चतुर्वक्त्र-संज्ञा पुं॰ [सं०] चार मुंहवाले, ब्रह्मा। . . चतुश्चरण'- वि० [सं०] १. चार, पैरोंवाला । २. चार, विभागों चतुर्वर्ग- संधा पुं० [सं०] अर्थ, धर्म काम और मोक्ष । 7... या भागोंवाला [को०। .. चतर्वर्ण-संभा पुं० [सं०] ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र । : ... चतुश्चरण-संधा पुं० जानवर [को०] ।. चतुर्वाही-संज्ञा पुं० [सं०] चार घोड़ों की गाड़ी। चौकड़ी। चतशृग - संज्ञा ० [म. चतुरशृङ्ग] १. वह जिसके चार सींग हो। कातुर्विध --वि० [सं०] चार रूपोंवाला । चौतरफा [को०]। ..: २ पुराणों के अनुसार कुशद्वीप के एक वर्षपर्वत का नाम। चतविधा-कि० वि० चार रूपों में (को०। चतुष्क--१. वि० [सं०] जिसके.चार अंग या पार्श्व हों। चौपहल ।।