पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३८५

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तो - तृप्क'-संक पुं०१. एक प्रकार का घर। २. एक प्रकार की रमापति तुम मम देव । संमं दिशि देखो यह यश लेव। २. छड़ी या डंडा चार पद का गीत । - चतरकर, चतुष्करी-संवा पुं० [सं०] वह जंतु जिसके चारो पैरों के चतुप्पणी-संथा सी० [सं०] १. छोटी अमलोनी । २. सुपना नामक ...मागे के भाग हाथी के पैर के समान हों। पंजेवाले जानवरं । साग जो पानी के किनारे होता है और जिसमें चार चार - चतुष्कणं-वि० [सं०] १. (वात) जिसे दो प्रादमी जानते हों। २. पत्तियां होती है। .. (बात) जो गुप्त न हो (को०) 1 चतुष्पाटी-संवा स्त्री० [स०] नदी। चतुष्करणी-संवा सी०सं०] कातिकेय की अनुचरी एक मातृका का नाम ।' चतुष्पाठी--मंशा सी० [सं०] विद्यार्थियों के पढ़ने का स्थान। प्कल-वि० [सं०] चार कलानोंवाला। जिसमें चार मात्राएँ हों। पाठशाला। जसे,-छंदशास्त्र में चतुष्कल गण, संगीत में चतुप्कल ताल। चतुष्पाणि'-वि० [सं०] जिसके चार हाथ हों। चार हायोंवाला। चतुष्काण्ड-- अव्यं० [सं०] चारो और से । चारो तरफ से (को०] । चतुष्पाणि-संश पुं० विष्णु । तृप्की-शा सी[#०] १. पुष्करिणी का एक भेद । २.मसहरी। चतुप्पाद-वि० [सं०] दे० 'चतुष्पद' को ३. चौकी। चतुष्पार्श्व -वि० [पं०] चौतरफा । चौपहला 1 [को०] 1 ' चकाग-१ सिं०] चार कोणवाला। चौकोर । चौकोना। चतुष्फल-वि० [सं०] जिसमें चार फल या पहल हों। चौपहला । .. चतुष्कोण-वि० संवा पु० वह जिसमें चार कोण हों। चतुष्फला-संसा की० [१०] नागवला नामक औषधि । चतुष्टय-- संज्ञा पुं० [सं०] १. वार की संख्या। २. चार चीजों चत्तुस्तन'-संशझी० [सं०] चार स्तनोंवाली, गाय । का समूह । जैसे,--ग्रंतःकरण चतुष्टय । ३. जन्मकुंडली में चतुस्तन'-वि० चार स्तनोंवाली [को०] । केंद्र, लग्न और लग्न से सातवा तथा दसवां स्थान । चतुस्तना'--संक्षा औ० [सं०] दे॰ 'चतुस्तन' [को०) 1 भतृप्टोम--संवा मं०] १. चार स्तोमवाला एक यज्ञ । २. चतस्तना-वि०६. 'चतस्तन' कि०] । . अश्वमेध यज्ञ का एक अंग। ३. वायु। चतुस्तनी'-संझा बी० [सं०] दे० 'चतुम्तना" [को०)। । चतुष्पंचाश-वि० [सं० चतुप्पन्छाश ] चौबना । चतस्तनी-वि० ६. 'चतुस्तना [को०] । तृपचाशत्-संवा श्री [म. चतुष्पञ्चाशत चौवन की संख्यां चतुस्ताल---संघा पुं० [सं०] एक प्रकार का चौताला ताल जिसमें - या अंक। . तीन द्रत और एक लघु होता है। इसका बोल यह है-" चतुप्पत्री-संज्ञा पुं०म० ससना नाम का सांग विचितप्पी' (१) धा० धरि घिमि० धिरि या । अथवा (२) धा० अधि०' चतुप्पय- संज्ञा पुं० [सं०] १. चौराहा । चौमहानी । २. ब्राह्मण। गण धो ई। . अतृप्पथरता-संहा सी० [सं०] १. कार्तिकेय की एक मातृका का नाम। चतुस्त्रिश-वि० [सं०] चौंतीसवां । चतप्पद ---या मि.] १. चार पैशवाला जीव या पशु । चतुस्संप्रदाय -संशा पुं० [सं० चतुस्सम्प्रदाय] एवों के चार संप्रदाय चौपाया। - घी, माध्व, रुद्र और सनक । यो०- चतुष्पदवकृत। - चतुस्त्रिशत्-संत्रा मौ० [सं०] चौंतीस की संख्या या अंका २. ज्योतिप में एक प्रकार का करण। फलित ज्योतिष के चतुस्सन-संधा पुं० [४०] १. सनक, सनत्कुमार, सनंदन और सनातन अनुसार इस करण में जन्म लेनेवाला दुराचारी, दुर्बल और ये चारो ऋषि । २. विष्ण । निर्धन होता है। ३. वैद्य, रोगी, श्रीपध पौर परिचारक चतस्सम-संबा पुं० [सं०] १. एक औपध जिसमें लौंग जीरा, आजवा- इन चारों का समूह । इन और हड़ सम भाग होते हैं। यह पाचक, भेदक और चतुष्पद-वि० चार पदोंवाला। जिसमें अथवा जिसके चार पद हों। प्रामशूलनाशक होती है। २. एक गंधद्रव्य जिसमें २ भाग तुप्पदवेकृ -संज्ञा पुं० [सं०] एक जाति के चौपायों का दूसरी जाति कस्तूरी, ४ भाग चंदन, ३ भाग कुंकुम और ३ भाग कपूर का . के चौपायों से गमन करना, उनको स्तनपान कराना अथवा रहता है। इसी प्रकार का और कोई नियमविरुद्ध कार्य करना । विशेपफलित ज्योतिष में इस प्रकार की क्रिया को अशुम चतुस्सीमा-संवा बी• [सं०] चौहद्दी [को॰] । . पर अमंगलसूचक माना है। और ऐसा करनेवाले पशुओं यो चतस्सूत्री-संज्ञा स्त्री॰ [सं०] व्यासदेव कृत वेदांत के पहले चार सूत्र चतुरता के त्याग का विधान किया गया है। जो बहुत कठिन हैं और जिनपर भाष्यकारों का बहुत कुछ चप्पदा-संज्ञा स्त्री० [सं०] चौपैया छंद, जिसका प्रत्येक चरण ३० मतभेद है । चतुःसूत्रों पर प्राचार्य शंकर का भाव्य सर्गप्रसिद्ध . मात्राओं का होता है जैसे--मे प्रगट कृपाला, दीन दयाला, है। ये चारों सूत्र पढ़ने के लिये लोग प्रायः बहुत अधिक . कौशल्या हितकारी । हपित महतारी, मुनिमनहारी, अद्भुत परिश्रम करते हैं। . .. रूप निहारी।--तुलसी। .. . चतुरात्र-संज्ञा पुं० [सं०] चार रात्रियों में होनेवाला एक प्रकार तपदी--संध चौ० [सं०] १. चौपाई छंद जिसके प्रत्येक चरण में का यज्ञ। .. १५ मात्राएँ और अंत में गरु लघ होते हैं। जैसे,--राम चतौना@t-क्रि० स० [हिं० बताना चेतावनी देना। सती