पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३८९

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परी'.. १४६८ - चपेट परी-संश मी० [हिं० चपटा] एक कदन्न या घास जिसमें चिपटी दूसरा और त्रीया गए जगण हो वही घपला है। जैसे,-- ..... चिपटी फलियां लगती हैं । खेसारी । चिपटया। रामा भजी सप्रेमा, सुभक्ति पही सुभुक्तिहू पही। इसके परला-संक पुं० [देश॰] एक प्रकार की घास जिले कूरी भी तीन भेद हैं। (क) मुखच पला। (ख) जघनचपला। (ग) महाच पला। 'चपल-वि० सं०] १. कुछ काल तक एक स्थिति में न रहनेवाला । ४. पुंश्चली स्त्री । ५. पिप्पली । पीपल । ६. जीभ । जिहा ।७. बहुत हिलने डोलनेवाला । चंचल । तेज । फुरतीला । चुलबुला। विजया । भाग । ८. मदिरा। ६. प्राचीन काल की एक २०-(क) मोजन करत चपल चित इत उत अवसर पाय ।, . प्रकार की नाव जो ४८ हाय लंबी, २४ हाथ चौड़ी और -तुलसी (शब्द०)। (ब) जस अपजस देखति नहीं देखति २४ हाथ केची होती थी और केवल नदियों में चलती थी। .. . " सांवर गात । कहा करों लालब भरे, चपल नैन ललचात ।-- चपला...- संशा मी० [हिं० चप्पढ़] जहाज में लोहे या लकडी की पट्टी .. बिहारी (शब्द०)। २. वहत काल तक न रहनेवाला। . जो पतवार के दोनों ओर उसकी रोक के लिये लगी रहती ' दगिक । . उताबला। हड़बड़ी मचानेवाला। जल्दगज। . है। (ला)। । ४. अभिप्रायसाधन' में उद्यत । अवसर न चूकनेवाला । चपलाई ---संज्ञा स्त्री० [सं० चपल] चपलता। उ०--रही विलोकि .., " चालाक । धृष्ट । उ०-मधुप तुम्ह कान्ह ही की कही क्यों न पारि चार छवि परमिति पार न पाई री। मंजुल तारन - कही है? यह बतकही चपल चेरी की निपट चरेरी और की चपलाई चितु चतुरानन करप री।-सूर (शब्द०)। ही है।-तुलसी (शब्द०)। . " " चपलान-संज्ञा पुं० [हिं० चप्पड़] जहाज की गलही के अगल बगल . 'चपल-संदा पुं० १. पारा। पारद । २. मछली। मत्स्य । ३. के कुदे जो धक्के सम्हालने के लिये लगाए जाते हैं-(लश०)। चातक । पपीहा । ४. एक प्रकार का पत्थर । ५. चौर नामक चपलाना'@-कि० अ० [सं० चपल] चलना । हिलना । डोलना। सुगंधद्रव्य । ६. राई। ७. एक प्रकार का चूहा। चपलाना-क्रि० स० चलाना । हिलाना । डोलाना । - यो० चपलगति-तेज चाल । चपलचितचंचल वित्त । चपली संज्ञा स्त्री० [हि चपटा] जूती । चट्टी। चपलस्पर्श तीव्र स्पर्धा । चपवाना-क्रि० स० [हिं० चपना प्रे० रूप] चापने या दाबने का चालक-वि० [.] १. अस्थिर ! चंचल । २. बिना सोचे समझे कार्य करना । दबवाना ।

कार्य करनेवाला । अविचारी। जन-गण-मन की चंचलता के चपाक --क्रि० वि० [अनु०] १. अचानवा । २. चटपट | झटपट ।

ये चपलक अमिव्यंजन पाए। मेरे आँगन खंजन पाए । क्वाति, पृ०८। चपाकि@-क्रि० वि० [हिं० चपाक] दे॰ 'चपाक' । उ०--करत चपलता-संवा को [सं०] १. चंचलता । तेजी । जल्दी । उतावली ।। करत बंधव न जाने अंध, प्रावत निक्ट दिन यागिली - . . २. वृष्टता । ढिठाई। उ०---चूक चपलता मेरिये तू बड़ी चपा कि दै।--सुदर० ग्रं०, भा०२, पृ० ४१२ । ' वड़ाई। वंदि छोर विरदावली निगमागम गाई।--तुलसी चपाट-मथा पुं० [हिं० चपाट] वह जूता जिसकी एड़ी उठी न हो। ' (शब्द०)। . चपोरा जूता। चपलत्व संज्ञा पुं० [सं०] उपलता । चंचलता। चपाती-संक्षा ली [सं० चपंटी] वह पतली रोटी जो हाय से वेलकर चपलफाटा-संवा पुं० [संचपल+हि० फट्टा-धज्जी ] जहाज के बढ़ाई जाती है। गेटी। फर्श के समतों के बीच की खाली जगह में खड़े बैठाए हुए महा० चपाती सा पेट वह पेट जो बहुत निकला हुमा न हो। तस्ते या पच्चड़, जिनसे मस्तूल आदि फंसे रहते हैं। कृशोदर। _ 'चपलस संज्ञा पुं० दिश०] एकचा पेड़। चपातीसुमा-वि० [हिं० चपाती+फा० सुम-1-हिं० आ (प्रत्य॰)] विशप--इसके भीतर की लकड़ी पीलापन लिए भूरी और रोटी के से सुमवाला (घोड़ा)। . बहुत ही मजबूत होती है। इससे सजावट के सामान, नाय के चपाना-वि० [हिं० चपना] १. एक रस्सी के सूत को दूसरी रस्सी संदूक, नाव के तन्ने प्रादि बनते हैं। वह ज्यों ज्यों पुरानी के सूत के साथ बुनकर जोडना या फैमाना । रस्सी जोड़ना । ... होती है, त्यो त्यो कड़ी और मजबूत होती जाती है। चपला - वि० सी० [सं०] चंचला । फुरतीली । तेज। २. दबाने का काम कराना । दबवाना । ३. लज्जा से दवामा। ... चपला- संहा ० सिंह १. लक्ष्मी। २.विजली । चंचला । ३. लज्जित करना । झिपाना । शरमिंदा करना । - चपेकना--क्रि० स० [हिं० चिपकाना] दे० 'चिपकाना'। विशप-जिस पायर्या दल के प्रथम गण के अंत में गुरु हो, दूसरा चपेट--संशा स्त्री० [हिं० चपामा (=दवाना) १. रगड़ के साथ वह 1. गण जगण हो, तीसरा गण दो गुरु का हो, नौथा गगा जगण दवाव जो किसी भारी.वस्तु के वेगपूर्वका चलने से पड़े।

हो, पांचवें गण का आदि गुरु हो, छठा गण जगण हो, .

झोंका । रगड़ा। धक्का । आयात । घिस्सा । उ-चारिह ... सातवां इमरण न हो, अंत में गुरु हो, उसे चपला कहते हैं । चरन की चपेट च पिट चापे विपटिगो उचकि चारि आमुल परतु केदारभट्ट और गंगादास का मत है कि जिस भार्या में प्रचुल गो। --तुलसी (शब्द०)। २. झापड़ । यप्पड़ । तुरंत। प्रार्या छंद का एक भेद। वि .