पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/३९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

खगेंद्र संचर खागेंद्र--संज्ञा पुं० [सं० खगेन्द्र ] गरुड़ (को०)। वीथी में यायपीय, घबमाता, मीन, भास्कर, संपाति, हद खगेश-संज्ञा पुं॰ [स०] गरुड़। और ग्राय सात मंटल है। इन सब को लेकर बारह यीवियाँ खगोल-संशा पुं० [सं०] १. आकाशमंडल । और ८४ मंटल हैं। इनमें से प्राचीन भारतीय विद्वानों को: विशेष-यद्यपि अाकाश की कोई प्राकृति नहीं है, तथा पिपरिमित शिशुमार ( यिष्ण पुराग ), त्रिशंकु ( बाल्मीकि), सप्तषि - दृग्रश्मि के कारण वह गोलाकार देख पड़ता है । जिस प्रकार इत्यादि मंडलों का पता था । इन बीपियों को क्रमश: मेप, .. विद्वानों ने पृथ्वी की गोलाई में विपुवतरेखा, प्रक्षांश और वृष, मिथुन, आदि पोथियां भी कहते हैं। गूर्य के मार्ग में देशांतर रेखाओं तथा ध्रव की कल्पना की है, ठीक उसी प्रकार अट्ठाईस नाम पड़ते हैं, जिनके नाम अश्विनी प्रादि हैं। सूर्य खगोल में भी रेखानों और ध्रवों की कल्पना की गई है। .. मैप प्रादि घारह वीथियों में क्रममा होकर जाठा हुमा दिखाई ज्योतिषियों ने वारामों के प्रधान तीन भेद किए हैं-जात्र, पड़ता है, जिसे राणि या लग्न कहते हैं । ग्रह और उपग्रह नक्षत्र वह है जो सदा अपने स्थान पर २. यगोल विद्या। 'अटल रहे। ग्रह वह तारा है जो अपने सौर जगत् के नक्षत्र सगोलक-संडा पुं० [सं०] गोल' फो। की परिक्रमा फरे। और उपग्रह वह है जो अपने ग्रह की खगोलमिति- संपा की[सं०] गणित ज्योतिष का यह अंग जिसमें ही परिक्रमा करता हुआ उसके साथ गमन फरे । जिस तरह तारों, नक्षों की नाप जोग और गति, स्पिति यादि का . हमारे सौर जगत् का नक्षत्र हमारा सूर्य है, नसी तरह प्रत्येक विचार किया जाता है [को०). अन्य सौर जगत् का नक्षम उसका सूर्य है। पृथिवी की दैनिक खगोलविद्या-संपा स्त्री० [सं०] यह विद्या जिससे घगोल प्रर्यात ग्रह . और वृत्ताकार गतियों के कारण इन नक्षत्रों के उदय में विभेद । पड़ता रहता है । यद्यपि गगनमंडल सदा पूर्व से पश्चिम को मादि की गति का मान प्राप्त हो । ज्योतिप। घूमता हुआ दिखाई पड़ता है, पर फिर भी वह धीरे धीरे खग्ग@-संशा सी[सं० सपा प्रा०प्रम तलवार । उ०- पूर्व की पोर खसकता जाता है । इसलिये ग्रहों की स्थिति में हयं धग लग कटि तुट्टि चानं ।-पृ० रा०, ६६।१३७॥ भेद पढ़ा करता है। प्राचीन ग्रार्य ज्योतिषियों ने कुछ ऐस तारों खग्गड-संघापु० [सं०] एक प्रकार या तत् । नरगुल या सरकंडा [को०)। का पता लगाया था जो अन्यों की अपेक्षा अत्यत दूर होने के .कारण अपने स्थान पर मचल दिखाई पड़ते थे। उन लोगों खग्रास-संशा पुं० [सं०] ऐसा ग्रहण जिसमें सूर्य या चंद्र का सारा में ऐसे कई तारों के योग से अनेक प्राकृतियों को फल्पना की मंटल बैंक जाय । पूरा ग्रहस। . . .: .थी। इनमें वे प्राकृतियां जो सूर्य के मार्ग के पास पास पडती खचन-शा पु० [सं०] वि० सचित] १. बांधने याजदने की क्रिया। थीं, अट्ठाईस थीं। इन्हें वे नक्षत्र कहते थे । इन तारों से जड़ा उ.-सर्वसाधारण के मनोरंजना रत्न मो जैसे फुदन .. हमा गगन मंडल अपने ध्र वों पर घूमता हा माना गया है। में खचित करना परता है, वैसे ही काव्य को रक्त गुणों से । समस्त खगोल को माधुनिक ज्योतिविदों ने बारह वीषियों में ... अलंकृत करना चाहिए।-(णब्द०)1२. अंकित करने या विभक्त किया है, जिनमें प्रत्येक बीथी के अंतर्गत भनेक मंडल होने की किया। चित्रित होने की क्रिया 13०-ध्यान रूपी हैं । प्रथम वीथी में पशु त्रिकोण, मेष, निमि, यशकुट और चित्रालय में कौन कौन चिम पचित हो गए.-(सन्द०)। यमी ये छह मंडल हैं । द्वितीय मे चित्र क्रमेल, ब्रह्म, वप, खचना ' ७ व सचना -कि० अ० [सं० पवन धिना, जड़ना ] १. जड़ा ० प्र० घटिका, सुवर्णथिम और माढक ये छह महल हैं। तृतीय में जाना। उ.---मनि दीप राजहि भवन भाजहि देहरी विद्रुम . मिथुन, कालपुरुष, शश, कपोत, मृगव्याध, अर्णवयान, चित्रपट, रची। मनिबंम भीति विरंचि विरची कनकमनि मरकत .. मन और चत्वाल नाम के ना मंडल है। चतुर्थ में वन बधी । सुदर मनोहर मंदिरायत अजिर प्रस्फटिकन रचे । । मार्जार, कर्कट, शुनी, एक गि, कृफलास भोर पतत्रिमीन प्रति द्वार द्वार कापाट पुरट बनाइ यह वचन बचे।--तुलसी मंडल नाम के छह मडल हैं। पचम वीथी मे सिंहशावक । (शब्द०)। २. अंकित होना । चित्रित होना। उ०-देत सिंह, हृदसर्प, पष्ठीश और वायुयंक नाम के पांच मंडल है। ... मायरि फूज मंडप पुतिन में बेदी रची। बठे जो श्यामा श्याम पष्ठ में सप्तपि, सारमेय, करिमुद, कन्या, करतल, फास्य, बय लोक की शोभा खची। सूर (शब्द०)। ३. रम त्रिशंकु और मक्षिका पाठ मंडल है। सप्तम में शिशुमार, जाना । अड़ जाना। उ०-प्राजु हरि ऐसो रास रच्यो।- भूतेश, तुला, शार्दूल, महिषासुर, वृत्त. और धूम्राट नामक गतगुन मद अभिमान अधिक मचि ले लोचन मन वह • सात मंडल हैं । अष्टम में हरिकुल, किरीट, सर्प, वृश्चिक पौर खच्यौ ।-पूर०, १०१११३६ । ४. मटक रहना । फंसना । दक्षिण त्रिकोण पांच मंडल है। नवम वीपी में तक्षक, वीणा, १०-नैना पंकज पंज पचे। मोहन मदन श्याम मुख निरखत : । सघारि, धनुष, दक्षिण किरीट, दूरवीक्षण और वेदि, सात भ्र वन विलास रचे ।—सूर (शब्द०)। मडल है। दशम में वक, शृगाल, वाण, गझर, श्रविष्ठा, खचना@-क्रि० स०१. अंकित करना। २. जड़ना. . मषार, मण वीसघु, मयूर और मष्टांश नाम के दस मडल खचमस-संवा पु० [सं०] चंद्रमा (को०] । हैं। एक फालि, गोधा, पक्षिराज, 'ययवतर, कुम, खचर-संघा पुं० [सं०] १. सूर्य । २. मेघ । ३. ग्रह । ४. नक्षत्र । क्षिण माँसारस और चंचूभूत पाठ मंडबई।पौर द्वावध ..५, वायु । ६. पक्षी । ७. बाण । तीरशE राक्षस । ६, संगीद..